(३१५) के कुछ अंश पर मयूरशर्मा ने अधिकार कर लिया था और उस पर अपना राज्य स्थापित किया था, और वह इसलिये राजा मान लिया गया था कि वह हारितीपुत्र मानव्य का वंशधर था' । इस प्रकार ईसवी तीसरी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में चुटुओं को पल्लवों ने दवा लिया था और जिस पल्लव राजा ने इस प्रकार चुटुओं को दबाया था, वह शिवस्कंद वर्मन् पल्लव से ठीक पहले हुआ था; अर्थात् वह शिवस्कंद वर्मन् का पिता था जिसने एक अश्वमेध यज्ञ किया था ( देखो ६१८३)। १६३. कौंडिन्य लोग ईसवी दूसरी शताब्दी के प्रारंभ में ही क्षेत्र में आ गए थे। ये लोग कदाचित् उमी वंश के वंशधर थे जिसने अपना एक वंशधर चंपा (इंडो- कौडिन्य चाइना ) में कौंडिन्य राज्य स्थापित करने के लिये भेजा था। जान पड़ता है कि साम्राज्य-भोगी सातवाहनों के समय में ये लोग उत्तरी भारत से बुलाए गए थे। यह वंश बहुत ही प्रतिष्ठित था। दो मलवल्ली अभि- लेखों में इनका नाम बहुत सम्मानपूर्वक आया है और इनका राज-वंश के साथ संबंध था। चंपा में कौंडिन्यों के संबंध में जो अनुश्रुति है, उसका हमें यहाँ ऐतिहासिक समर्थन मिलता है। चंपा में जो उपनिवेश स्थापित हुआ था, उसे बसाने के लिये कौंडिन्यों के नेतृत्व में दक्षिण भारत से कुछ लोग गए थे। फिर समुद्रगुप्त के शासन-काल में एक और कौंडिन्य चंपा गया था, जहाँ उसने समाज- सुधार किया था। बहुत कुछ संभावना इसी बात की जान पड़ती है कि उसका संबंध भी इसी वंश के साथ रहा होगा। इन १. एपि० इं० खंड ८, पृ० ३१, ३२, शिलालेख की पंक्तियाँ ६,७ ।
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