( ३०६) ६१६०. बस इन्हीं सब परिस्थितियों में चुटु कुल या छोटे कुल का उदय हुआ था और उसके साथ ही साथ कुछ और भी अथीनस्थ या भृत्य-कुलों का भी उदय हुआ था। जो चुटुकुलानंद सिक्के मिलते हैं, वे संभवतः इसी काल के माने जा सकते हैं । यह चुटु या छोटा कुल पश्चिमी समुद्र-तट की रक्षा करता था। उनकी राजधानी बनवसी (कनारा) प्रांत की वैजयंती नाम की नगरी में थी। उनका शिलालेख हमें उत्तर में कन्हेरी नामक स्थान में मिलता है और उनके सिक्के दक्षिण में करवार नामक स्थान में मिलते हैं जो बनवसी प्रांत में समुद्र-तट पर है। उनके जो सिक्के चुटुकुलानंद (नंबर जी० पी० २)' कहे जाते हैं, उन पर के अक्षर यद्यपि सन् १५० ई. से भी अधिक पुराने जान पड़ते हैं, परंतु फिर भी उनमें “कु” का जो रूप है, जिसका सिरा कुछ मोटा है और उनमें जिस रूप में "न" के ठीक ऊपर अनुस्वार लगाया गया है और "स" का जो रूप है, वह बाद का है। ऐसा जान पड़ता है कि अक्षरों के पुराने रूप उन दिनों सिक्कों में प्रायः रख दिए जाते थे और कुल मिलाकर वे सब सिक्के सौ बरसों के दरमियान में बने थे। यहाँ यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि ये सिक्के चुटु-कुल के किसी राजा या व्यक्ति के नाम से नहीं बने थे, बल्कि उन सब पर उनकी राजकीय उपाधि या चुटु-कुल का ही नाम दिया जाता था। [रानो चुटुकुडानंदस- अर्थात् चुटु-कुल को आनंद देनेवाले ( का सिक्का)]। और मुंडराष्ट्र के गवर्नर या शासक मुंडानंद के सिक्कों में भी हमें १. C, A. D. पृ० २२, प्लेट ८, G. P. २, G. P. ३, २३५ ।
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