( ३०८) में भी की है। उसमें उसने यह प्रतिज्ञा भी की थी कि-"मैं अपनी प्रतिज्ञा (अर्थात राज्याभिषेक के समय की हुई शपथ' ) का सदा सत्यतापूर्वक पालन करूँगा।" रुद्रदामन ने जो शपथ या प्रतिज्ञा की थी और अपने जूनागढ़वाले शिलालेख में उसने जो सार्वजनिक घोषणा की थी, उसका आशय यही था कि जब तक मुझमें दम रहेगा, तब तक मैं एक सच्चे हिंदू राजा की भाँति व्यवहार और आचरण करूँगा और इस बात के उदाहरण-स्वरूप उसने कहा था कि जब मैंने सुदर्शन सागर नाम की झील फिर से बनवाने का विचार किया, तब मेरे मंत्रियों ने उसका इसलिये विरोध किया कि उसमें बहुत अधिक धन व्यय होगा । उस समय मैंने उनका निर्णय मान लिया और अपने निजी धन से उसे फिर से बनवा दिया। इस राजा का आचरण और व्यवहार वैसा ही था, जैसा किसी पक्के से पक्के और कट्टर हिंदू राजा का हो सकता था और इसी- लिए हम यह भी मान सकते हैं कि यह बहुत ही लोकप्रिय नेता बन गया होगा । वह संस्कृत का अच्छा जानकार और शास्त्रों का बड़ा पंडित था और उसने संस्कृत को ही अपने यहाँ फिर से राजभाषा का स्थान दिया था। सातवाहन राजा को उससे बहुत बड़ा खटका हो गया था और उसने दक्षिणापथ के अधीश्वर को दो बार परास्त भी किया था। परंतु फिर भी हिंदू धर्म-शास्त्र के अनुसार उसने भ्रष्ट राजा (अर्थात् अपने पराजित शत्रु ) को फिर से उसके राज-पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था। उसके शासन के कारण सातवाहन साम्राज्य में एक नया संघटन हुआ था। १. सस्य प्रतिज्ञा श्रात् वह प्रतिज्ञा जो राजा को अपने राज्याभिषेक के समय करनी पड़ती थी। देखो Hindu Polity दूसरा भाग, पृ० ५०।
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३३६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।