( ३०२) अर्थात--प्रांधों और श्री-पार्वतीयों ने (अर्थात् दोनों ने) १०५ वर्षों तक राज्य किया था। इसके विपरीत वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में यह पाठ है-- अंध्रा भोक्ष्यन्ति वसुधाम् शतं' द्वे च शतं च वै। अर्थात्-आंध्र लोग वसुधा का दो ( राजवंश) एक सौ (वर्ष) और एक सौ (वर्ष) क्रमशः भोग करेंगे। यहाँ यह बात स्पप्त है कि वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में "आंध्र" शध्द के अंतर्गत दो राजवंशों का अंतर्भाव किया गया है-एक तो अधीनस्थ या भृत्य आंध्र जो साम्राज्यवाली उपाधि धारण करते थे और दूसरे आंध्र श्रीपार्वतीय । वायु और ब्रह्मांड दोनों ही पुराणों में इनका राज्य-काल एक सौ वर्ष कहा गया है। परंतु मत्स्यपुराण में एक सौ पाँच वर्ष कहा गया है। डा० हॉल ( Dr. Hall ) की ब्रह्मांडपुराणवाली प्रति में और मि० पारजिटर की वायुपुराणवाली प्रति में जो वस्तुतः ब्रह्मांडपुराण की-सी प्रति है, एक वंश के लिये सौ वर्ष और दूसरे के लिये १. Purana Text पृ० ४६, टिप्पणी ३३ । कुछ हस्तलिखित प्रतियों में 'शते' शब्द को इस प्रकार बदल दिया गया है कि उसका श्रन्वय "दो" के साथ होता है; परंतु वास्तव में यह 'द्वे' शब्द वर्षों के लिये नहीं, बल्कि राजवंशों के लिये श्राया है । २. विल्सन और हॉल का वायुपुराण ४, २०८ Purana Text, पृ० ४६, टि० ३४ ।
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