पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३२६

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( २६८) चल जाय कि उत्तरी भारत पर उसका क्या प्रभाव पड़ा था और दक्षिण तथा उत्तर में किस प्रकार का संबंध था; और तब इस बात का विचार करें कि गुप्तों के साम्राज्य- साम्राज्य-युगों की वाद पर उसका क्या प्रभाव पड़ा था। पौराणिक योजना आंध्रों के समय से लेकर उसके आगे के इतिहास का वर्णन करते समय पुराण बराबर यह बतलाते चलते हैं कि साम्राज्य के अधिकार के अधीन कौन-कौन से शासक राजवंश थे। इस प्रकार का उल्लेख उन्होंने तीन राजवंशों के संबंध में किया है-आंध्र (सातवाहन), विंध्यक ( वाकाटक ) और गुप्त-राजवंश । यहाँ यह बात देखने में आती है कि जब साम्राज्य का केंद्र मगध से हटकर दूसरे स्थान पर चला जाता है अथवा जब साम्राज्य का अधिकार कावायनों के हाथ से निकलकर सातवाहनों के हाथ में चला जाता है तब पुराण उन साम्राज्य-भोगी राजकुलों का वर्णन उनके मूल निवास स्थान से प्रारंभ करते हैं, उनकी राजवंशिक उपाधियों से नहीं करते हैं। पुराणों में सातवाहनों को आंध्र कहा गया है, जिसका अर्थ यह है कि वे आंध्र देश के रहनेवाले थे। इसी प्रकार वाकाटकों को उन्होंने विध्यक कहा है, अर्थात वे विंध्य देश के रहनेवाले थे, और पुराण जब फिर मगध के वर्णन की ओर आते हैं, तब वे फिर गुप्तों का वर्णन उनकी राजवंशिक उपाधि से करते हैं। अब हम यह देखना चाहते हैं कि आंधों के साम्राज्य- संघटन के विषय में पुराणों में क्या कहा गया है, क्योंकि वाका- टकों और गुप्तों से संबंध रखने वाले पौराणिक उल्लेखों का विवे- चन हम पहले कर ही चुके हैं। ६ १५३. वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में कहा गया है कि