इसका बार-बार उल्लेख किया गया है। इन उल्लेखों में कहा गया है कि इस राजनीतिक विवाह के पूर्व भार-शिवों के राजवंश ने गंगा-तट पर, जिसका अधिकार उन्होंने अपना पराक्रम प्रदर्शित करके प्राप्त किया था, दस अश्वमेध यज्ञ किए थे और उनका राज्याभिषेक गंगा के पवित्र जल से हुआ था। भार-शिवों ने शिव को अपने साम्राज्य का मुख्य या प्रधान देवता बनाया था । भार-शिवों ने गंगा-तट पर जिस स्थान पर दश अश्वमेध यज्ञ किए थे, वह स्थान मुझे काशी का दशाश्वमेध नामक पवित्र घाट और क्षेत्र जान पड़ता है जो भगवान शिव का लौकिक निवासस्थान माना जाता है । भार-शिव लोग मूलतः बघेलखंड के निवासी थे और वे गंगातट पर उसी रास्ते से पहुँचे होंगे, जिसे आजकल हम लोग "दक्षिण का प्राचीन मार्ग" कहते हैं और जो विंध्यवासिनी देवी के विंध्याचल नामक कस्बे (मिरजापुर, संयुक्तप्रांत ) में आकर समाप्त होता है। बनारस का जिला कुशन साम्राज्य के एक सिरे पर था। वह उसकी पश्चिमी राजधानी से बहुत दूर था। यदि विंध्य पर्वत से उठनेवाली कोई नई शक्ति मैदानों में पहुंचना चाहती और यदि वह बघेलखंड के रास्ते से नहीं बल्कि बुंदेलखंड के किसी भाग में से होकर जाती तो वह गंगा-तट पर नहीं बल्कि यमुना-तट पर पहुँचती । वाकाटकों के मूल निवास-स्थान से भी इस बात का कुछ सूत्र मिलता है। प्राचीन काल में वागाट (वाकाट ) नाम का एक कस्वा था और उसी के नाम पर वाकाटक वंश ने अपना नाम रखा था। हमने इस कस्बे का पता लगाया है और वह बुंदेलखंड में ओछड़ा राज्य के उत्तरी भाग में है; और ऐसा जान पड़ता है कि वाकाटक लोग भार-शिवों के पड़ोसी थे। १ दुरेहा (जासो राज्य, बघेलखंड ) में एक स्तंभ है जिस पर ।
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