(२८६) द्वीपस्थ भारत ६ १४६ क. भारशिव-वाकाटक-काल में द्वीपस्थ भारत भी भारतवर्ष का एक अंश ही माना जता था। उसकी यह मान्यता हमें सबसे पहले मत्स्यपुराण में मिलती द्वीपस्थ भारत और है। यों तो हिमालय या हिमवत पर्वत उसकी मान्यता और समुद्र के बीच में ही भारतवर्ष है, परंतु वास्तव में भारतवर्ष का विस्तार इससे बहुत अधिक था, क्योंकि भारतवासी (भारती प्रजा) आठ १. मत्स्य पुराण, अध्याय ११३, श्लोक १-१४ (साथ ही मिलाश्रो वायुपुराण १, अध्याय ४५, श्लोक.६६-८६)। यदिदं भारतं वर्षे यस्मिन् स्वायम्भुवादयः । चतुर्दशैव मनवः (१) श्रथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः (५) न खल्वन्यत्र मानां भूमौ कर्मविधिः स्मृतः । उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमवद्दक्षिणं च यत् । वर्ष यद्भारतं नाम यत्रेयं भारती प्रजा ।। ( वायु० ७५ ) भारतस्यास्य वर्षस्य नवभेदान्निबोवत ।। (७) समुद्रांतरिता ज्ञेयास्ते त्वगम्याः परस्परम् (वायु० ७८) इंद्रद्वीपः कसेरुश्च ताम्रपर्णी गभस्तिमान् । नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः ।। (८) श्रयं तु नवमस्तेषां द्वीपः सागरसंवृतः । (6) इसके उपरांत भारतवर्ष के नवें द्वीप या विभाग का वर्णन श्रारम्भ होता है जिसमें समस्त वर्चमान भारत या जाता है और जिसे यहाँ मानवद्वीप कहा गया है।
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