( ७ ) ६४. जैसा कि वाकाटकों के संबंध के शिलालेखों तथा ताम्रलेखों आदि से और पुराणों से भी प्रकट होता है, समुद्रगुप्त से पहले प्रायः साठ वर्ष तक वाकाटाकों के हाथ में सारे साम्राज्य का शासन और सर्वप्रधान एकाधिकार था; और वही अधिकार उनके हाथ से निकलकर समुद्रगुप्त के हाथ में चला आया था। हम यह बात जान-बूझकर कहते हैं कि वाकाटकों के हाथ में सारे साम्राज्य का शासन और सर्वप्रधान एकाधिकार था क्योंकि उन लोगों ने वह एकाधिकार उन भार-शिवों से प्राप्त किया था जिनके राजवंश ने गंगा-तट पर दश अश्वमेध यज्ञ किए थे और इस प्रकार बार-बार आर्यावर्त में अपना एकछत्र साम्राज्य होने की घोषणा की थी। यहाँ यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि ये अश्वमेघ यज्ञ कुशन' साम्राज्य का नाश करके किए गए थे। इन साम्राज्य-सूचक कृत्यों का यह सनातनी हिंदुओं के ढंग से लिखा हुआ इतिहास है और यह सिद्ध करता है कि कुशन साम्राज्य का किस प्रकार नाश हुआ था और कुशन लोग किस प्रकार उत्तरोत्तर नमक के पहाड़ों की तरफ उत्तर- पश्चिम की ओर पीछे हटाए गए थे ६५. सम्राट् प्रवरसेन ने अपने लड़के गौतमीपुत्र का विवाह भार-शिव वंश के महाराज भवनाग की कन्या के साथ किया था। वाकाटक राजवंश के इतिहास में भार-शिव यह घटना इतने अधिक महत्त्व की थी कि यह उस वंश के इतिहास में सम्मिलित कर ली गई थी वाकाटकों के सभी राजकीय लेखों आदि में 1 १ हमने इस शब्द का विदेशी रूप "कुशन" ही ग्रहण करना ठीक समझा है।
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