पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३०७

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(२७६ ) भागवत और विष्णुपुराण का इस अवसर पर शूरों से ही अभि- प्राय है और यह "शूर" शब्द यौधेयों के लिये ही है। भागवत और विष्णुपुराण में प्रार्जुनों, सहसानीकों, काकों और खर्परों का कोई उल्लेख नहीं है। ये सब नाग वर्ग के थे और पूर्वी मालवा में थे। ६१४६ क. इसके उपरांत म्लेच्छ-राज्य आता है, जो भागवत के अनुसार इसके बाद वाला राज्य है। यह कुशन राज्य था। यहाँ समुद्रगुप्त के शिलालेख के लिये पुराण मानों भाष्य का काम देते हैं। यथा- सिन्धोरटं चन्द्रभागां कौन्ती काश्मीर मंडलम् भोक्ष्यन्ति शूद्राश्च प्रान्त्याद्या (अथवा व्रात्याद्या) म्लेच्छाश्च आब्रह्मवर्चसः । [Purana Text, पृ० ५५] अर्थात्-सिंधु के तट पर और चंद्रभागा के तट पर कौंती ( कच्छ' ) और काश्मीर मंडल में वे म्लेच्छ लोग शासन करेंगे जो शूद्रों में सबसे निम्न कोटि के और वैदिक वर्चस्व के विरोधी हैं। विष्णुपुराण में कहा गया है-"सिंधुतटदाकोर्वीचंद्रभागा- काश्मीर-विषयान् ब्रात्यम्लेच्छा-शूद्रायाः” ( अथवा म्लेच्छादयः शूद्राः) भोक्ष्यति ।" यहाँ विष्णुपुराण यह सिद्ध करना चाहता है कि सिंधु-चंद्रभागा की तराई (सिंध-सागर दोआब ) और दार्वी- कोर्वी (दाऊक तराई अर्थात् खैबर का दर्रा और उसके पीछे का १. बंगाल एशियाटिक सोसाइटी का जरनल, सन् १८५१, पृ० २३४ ।