( २७८ ) थे। मालवों की तरह वे लोग भी पहले पंजाब में रहते थे। यौधेयों और मालवों ने ही सिंध की पश्चिमी सीमा पर भी और इधर मथुरा की तरफ पूर्वी सीमा पर भी कुशन-शक्ति को आगे बढ़ने से रोक रखा था। ये लोग साधारणतः शूर अथवा वीर कहलाते थे। भागवत ने यौधेयों को आभीरों के उपरांत और मालवों से पहले रखा है अर्थात् उन्हें इन दोनों के बीच में स्थान दिया है; और इससे यह सूचित होता है कि वे आभीरों के उत्तर में और मालवों के उत्तर-पश्चिम में अर्थात् राजपूताने के पश्चिमी भाग में रहते थे। विष्णुपुराण में कहा है- “सौराष्ट्र-अवंती-शूरान् अर्बुद-मरुभूमि- विषयांश्च व्रात्या द्विजा आभीरशूद्र (इसे 'शूर' समझना चाहिए) आद्याः भोक्ष्यन्ति ।" विष्णुपुराण में अवंती के उपरांत “शूद्र" शब्द आया है। परंतु उसका एक और पाठ "शूर" भी है और इसका समर्थन स्वयं विष्णुपुराण में ही एक और स्थान पर' और हरिवंश से भी होता है। हाँ, शौद्रायणों का भी एक प्रजातंत्र था और यह “शौद्रायण" शब्द निकला तो “शूद्र" शब्द से ही है, परंतु यहाँ “शूद्र" से शूद्रों की जाति का अभिप्राय नहीं है, बल्कि शूद्र नाम का एक व्यक्ति था, जिसने शौद्रायणों का प्रजातंत्र स्थापित किया था। परंतु स्पष्ट रूप से यही जान पड़ता है कि उपाधि सार्थक करने के कारण उन्हें गर्व था।” (कीलहान के अनु- वाद के अाधार पर) १. विल्सन द्वारा संपादित विष्णुपुराण, (अँगरेजी) खंड २, पृ० २३३, "शूर भाभीराः" मिलाश्रो हरिवंश, १२.८३७ का शूर भाभीराः । २. देखो विल्सन के विष्णुपुराण खंड २, पृ० १३३ में हाल ( Hall) की लिखी हुई टिप्पणी । ३. देखो जायसवाल-कृत हिंदू-राज्यतंत्र, पहला भाग, पृ० २५७ ।
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