२७७ ) गुजरात पर उन दिनों पश्चिमी क्षत्रप राज्य करते थे। परंतु पुराणों से भी और समुद्रगुप्त के शिलालेख से भी यही सिद्ध होता है कि काठियावाड़ अथवा गुजरात में क्षत्रपों का राज्य नहीं था । काठि- यावाड़ पर से पश्चिमी क्षत्रपों का अधिकार नाग-वाकाटक काल में ही उठा दिया गया था। इस विषय पर पुराणों से बहुत कुछ प्रकाश पड़ता है। ६ १४६. भागवत में कहा गया है कि सुराष्ट्र और अवंती के आभीर और अरावली के सूर तथा मालव लोग अपना स्वतंत्र प्रजातंत्र रखते थे। उनके शासक "जना. पौराणिक प्रमाण धिपः" कहे गए हैं, जिसका अर्थ होता है-जन या जनता के (अर्थात प्रजातंत्र) शासक । भागवत में माद्रकों का उल्लेख नहीं है। जान पड़ता है कि आर्यावर्त्त युद्धों के परिणामस्वरूप माद्रक लोग समुद्रगुप्र के साम्राज्य में सम्मिलित हो गए थे, और जब प्रजातंत्रों का अधीश्वर परास्त हो गया था, तब उनमें से सबसे पहले माद्रकों ने ही गुप्त सम्राट की अधीनता स्वीकृत की थी । भागवत के शूर वही प्रसिद्ध यौधेय हैं । "शूर" शब्द (जिसका अर्थ 'वीर' होता है) “यौधेय' शब्द का ही अनुवाद और समानार्थक है। और यही यौधेय उनकी प्रसिद्ध और लोक-प्रचलित उपाधि या जातिनाम था। इससे दो सौ वर्ष पहले रुद्रदामन इस बात का उल्लेख कर गया था कि यौधेय लोग क्षत्रियों में अपनी 'वीर' उपाधि से प्रसिद्ध थे। पुराणों के अनुसार यौधेय लोग अच्छे और पुराने क्षत्रिय १. सर्वक्षत्राविष्कृत-वीरशब्दजातोसेकअविधेयानाम् । (एपिना- फिया इंडिका, खंड ८, पृ० ४४ ) अर्थात् "यौधेय लोग बहुत कठिनता से अधीनता स्वीकार करते थे और समस्त क्षत्रियों में अपनी 'वीर'
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