(२७५) नदी के ठेठ निम्न भाग में बहावलपुर राज्य की सीमा तक था जहाँ "जोहियावार" नाम अब तक यौधेयों से अपना संबंध सिद्ध करता है। रुद्रदामन् ( सन् १५० ई० के लगभग) के ममय भी यह सबसे बड़ा प्रजातंत्री राज्य था। उस समय यौधेय लोग उसके पड़ोसी थे और निम्न सिंध तक पहुँचे हुए थे। मालव और यौधेय राज्यों के मध्य में आयु नायनों का एक छोटा सा राज्य था जिनके ठीक स्थान का तो अभी तक पता नहीं चला है: परंतु फिर भी उनके सिक्कों से सूचित होता है कि वे लोग अलवर और आगरा के पास ही रहते थे। माद्रक लोग यौधेयों के ठीक उत्तर में रहते थे और उनका विस्तार हिमालय के निम्न भाग तक था। भेलम और रावी के बीच का मैदान ही मद्र देश था' और कभी कभी व्यास नदी तक का प्रदेश भी मद्र देश के अंतर्गत ही माना जाता था | व्यास और यमुना के मध्यवाले प्रदेश में वाकाटकों के सामंत सिंहपुर के वर्मन और नाग राजा नागदत्त के प्रदेश थे। समुद्रगुप्त के शिलालेख में प्रजातंत्रों का जो दूसरा वर्ग है, उसमें आभीर, प्रार्जुन, सहसानीक, काक और खर्परिक लोगों के नाम दिए गए हैं । समुद्रगुप्त से पहले इनमें से कोई प्रजातंत्र अपने स्वतंत्र सिक्के नहीं चलाता था, और इसका सीधा-साधा कारण यही था कि वे मांधाता (माहिष्मती ) में रहनेवाले पश्चिमी मालवा के वाकाटक-गवर्नर के और पद्मावती के नागों के अधीन थे। वास्तव में गणपति नाग धारा का अधीश्वर ( धाराधीश) कहलाता था। हम यह भी जानते हैं कि सहसानीक और काक लोग मिलसा के आस-पास रहते थे। भिलसा से प्रायः बीस मील १. श्रारफियालाजिकल सर्वे रिपोर्ट, खं० २, पृ० १४ । २. रायल एशियाटिक सोसाइटी का जरनल, सन् १८६७, पृ० ३०।
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