पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/३०

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( ६ ) असाधारण रूप से घटनापूर्ण है। डा० फ्लीट ने वाकाटक शिलालेखों आदि का अनुवाद करते समय प्रथम प्रवरसेन की महत्वपूर्ण उपाधि “सम्राट" और "समस्त भारत का शासक"" तक का उल्लेख नहीं किया है जो उपाधियाँ उसने चार अश्वमेध यज्ञ करने के उपरांत धारण की थीं और जो किसी राजा के सम्राट पद पर पहुँचने की सूचक हैं। ६३. जैसा कि हम अभी आगे चलकर बतलावेंगे, वाकाटक राजवंश के सम्राट प्रवरसेन का राज्याभिषेक सम्राट समुद्रगुप्त से एक पीढ़ी पहले हुआ था और वाकाटक सम्राट और प्रवरसेन केवल आर्यावर्त का ही नहीं, उसके पूर्व की शक्ति बल्कि यदि समस्त दक्षिण का नहीं तो कम से कम उसके एक बहुत बड़े अंश का सम्राट अवश्य था और वह समुद्रगुप्त से ठीक पहले हुआ था। वह इसी ब्राह्मण सम्राट वाकाटक प्रवरसेन का पद था जो समुद्रगुप्त ने उसके पोते रुद्रसेन प्रथम से प्राप्त किया था और यह वही रुद्रसेन है जिसका उल्लेख इलाहाबादवाले स्तंभ में समुद्रगुप्त की राजनीतिक जीवनी में दी हुई सूची के अंतर्गत रुद्रदेव के नाम से हुआ है और जो आयावर्त का सर्वप्रधान शासक कहा गया है। १. 'सम्राट' की व्याख्या के सम्बन्ध में देखो मत्स्य पुराण, अध्याय श्लोक १५ । वही श्लोक ९-१४ में भारतवर्ष की सीमाएँ, जो विस्तृत या विशाल भारत और द्वीपों से युक्त भारत की सामाग्री से भिन्न हैं, [देखो ६ १४६ (क)] दी हुई हैं और सम्राट वास्तव में “समस्त. कृत्स्नम्" या भारत का सर्व प्रधान शासक होता था । २ देखो आगे ६ ६४. ११३,