पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२८८

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में हम देखते हैं कि बुंदेलखंड उस समय तक वाकाटकों के अधि- कार में था। एरन के ठीक दक्षिण में भी और पूर्व में भी कई प्रजातंत्र राज्य थे ( देखो १४५)। एरन पर समुद्रगुप्त प्रत्यक्ष रूप से तो शासन करता ही नहीं था, लेकिन फिर भी वहाँ उसने विष्णु का जो मंदिर बनवाया था, उससे कई बातों का पता चलता है। एरनवाले शिलालेख से पता चलता है कि उस समय तक समुद्रगुप्तने "महाराजाधिराज" की उपाधि नहीं ग्रहण की थी और उसमें उसकी निश्चित वंशावली नहीं दी है। परंतु उसकी २१ वी से २६ वी पंक्ति में जो छठा और सातवाँ श्लोक दिया गया है, उससे पता चलता है कि वहाँ पर ममुद्रगुप्त ने एक सैनिक विजय के उपरांत यद्ध का वैसा ही स्मृति-चिन्ह बनवाया था, जैसा श्रागे चलकर उसके पोते ने भीतरी नामक स्थान में बनवाया था। यह अभिलेख इलाहाबादवाले स्तंभ के अभिलेख से पहले का है। इस शिलालेख के "अंतक' शब्द पर खास जोर दिया गया है और कहा गया है कि सभी राजा (पार्थिवगणस सकलः ) पराजित हुए थे और राज्याधिकार से वंचित हो गए थे। और यह भी कहा गया है कि वहाँ राजा समुद्रगुप्त का "अभि- पेक" हुआ था। उसमें समुद्रगुप्त का इस प्रकार वर्णन किया गया है कि उसकी शक्ति का कोई सामना नहीं कर सकता था-वह "अप्रतिवार्यवीर्यः" हो गया था और उसकी यही उपाधि आगे चलकर उसके सिक्कों पर अंकित होने लगी थी । २१ वी पंक्ति में उसकी सैनिक योग्यता का विशेष रूप से वर्णन किया गया है और कहा गया है कि उसके शत्रु निद्रित रहने की अवस्था में भी मारे भय के चौंक उटते थे। अपनी अपनी कीर्ति के चिह्न-स्वरूप उसने एक शिलान्यास किया था ( पंक्ति २६); और जान पड़ता है कि यह उसी विष्णु के मंदिर का शिलान्यास होगा, जो