(२५३ ) बदला चुकाने के लिये पल्लव लोग अपने सेनापतियों और सामंतों को लेकर दक्षिण की ओर से चढ़ाई करेंगे और इधर बुंदेलखंड से रुद्रसेन आकर बिहार पर आक्रमण करेगा, तो मैं बीच में दोनों ओर से भारी विपत्तियों में फँस जाऊँगा। इसी बात को बचाने के लिये समुद्रगुप्त ने यह सोचा होगा कि पहले पल्लवों और उनके सहायकों आदि से ही एक एक करके निपट लेना चाहिए । वह बहुत तेजी से छोटा नागपुर संभलपुर और बस्तर होता हुआ सीधा वेंगी जा पहुँचा जो पल्लवों का मूल केंद्र था और कोलायर झील के किनारेवाले युद्ध-क्षेत्र में जा डटा। यह बहुत पुराना रास्ता है जो सीधा आंध्र देश को जाता है । समुद्र- गुप्त पूर्वी समुद्र तटवाले मार्ग से नहीं गया था, क्योंकि उसके मंत्री हरिषेण ने दक्षिणी बंगाल और उड़ीसा के किसी नगर या कस्बे का उल्लेख नहीं किया है। इसी कोलायर झील के किनारे फिर सातवीं शताब्दी में राजा पुलकेशिन द्वितीय के समय में एक भीषण युद्ध हुआ था' समुद्रगुप्त के मंत्री और सेनापति हरिषेण ने अपनी सूची में जिन शासकों के नाम गिनाए हैं, यदि उन पर हम विचार करें तो तुरंत पता चल जाता है कि ये सब शासक और राजा लोग आंध्र तथा कलिंग प्रदेश के ही थे जो कुरालु या कोलायर झील के आस-पास पड़ते थे। जान पड़ता है कि वे एक साथ मिलकर ही समुद्रगुप्त का सामना करने के लिये आए थे (देखो ६ ५३५ क) और वहीं वह अंतिम निपटारा करनेवाला युद्ध हुआ था । उस समय समुगुप्त ने कोई बहुत अच्छी साम- १. एपिग्राफिया इंडिका, ६, पृ० ३ और ६ । २. यह सूची (पंक्ति १९ ) इस प्रकार है-(१) कौसलफ माहेंद्र, (२) महाकांतोरक व्याघ्रराज; ( ३ ) कौरालक मण्टराज; (४)
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