( ४ ) नहीं मिलता कि उसकी मृत्यु के उपरांत उत्तरी भारत में कोई सर्व प्रधान शक्ति वर्तमान थी।" (पृ० २६०) (ख) 'संभवतः बहुत से राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता स्थापित की थी और ऐसे राज्य स्थापित किए थे जिनका थोड़े ही दिनों में अंत हो गया था परंतु तीसरी शताब्दी के संबंध में ऐतिहासिक सामग्री का इतना पूर्ण अभाव है कि यह कहना असंभव है कि वे राज्य कौन थे अथवा कितने थे।" (पृ. २६०) (ग) “कुशन तथा आंध्र राजवंशों के नाश (सन् २२० या २३० ई० के लगभग) और साम्राज्य-भोगी गुप्त राजवंश के उत्थान के बीच का समय, जो इसके प्रायः एक सौ वर्ष बाद है, भारतवर्ष के समस्त इतिहास में सबसे अधिक अंधकारमय युगों में से एक है।" (पृ० २६२) दूसरे शब्दों में, जैसा कि डा० विंसेंट स्मिथ ने पृ. २६१ में कहा है, भारतवर्ष के इतिहास में यह काल बिलकुल सादा या अलिखित है-उसके संबंध की कोई बात ज्ञात नहीं है। आज तक सभी लोग यह निराशापूर्ण बात बराबर चुपचाप मानते हुए चले आए हैं। इस संबंध में जो कुछ सामग्री उपलब्ध है, उसका अध्ययन और विचार करने पर मुझे यह पता चलता है कि ऊपर कही हुई इन तीनों बातों में से एक भी बात न तो मानी जा सकती है और न वह भविष्य में फिर कभी दोहराई जानी चाहिए । जैसा कि हम आगे चलकर बतलावेंगे, इस विषय की सामग्री पर्याप्त है और इस समय के दो विभागों के संबंध का इतिहास हिंदू इतिहासवेत्तामा ने वैज्ञानिक क्रम से ठीक कर रखा है।
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