(२३४) ही है। उसमें तीनों प्रांतों के अलग-अलग नाम नहीं हैं; और जान पड़ता है कि उसमें “मेदिनी" शब्द के अंतर्गत ही सारे साम्राज्य का अंतर्भाव कर दिया गया है। उसमें कहा गया है- गोप्ता भोक्ष्यन्ति मेदिनीम् । अर्थात् गुप्त के वंशज ( यह गोप्ताः ( वास्तव में संस्कृत गौप्ताः का प्राकृत रूप है) पृथ्वी का शासन करेंगे। साधारणतः पुराणों का जब किसी साम्राज्य से अभिप्राय होता है, तब वे मेदिनी, मही, पृथ्वी, वसुंधरा अथवा पृथ्वी के इसी प्रकार के किसी और पर्याय का प्रयोग करते हैं । यदि हम विष्णुपुराण में दिए हुए क्रम को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि वह बिलकुल इलाहाबाद-वाले शिलालेख का ही क्रम है। एक ओर तो कोसल, ओडू, पौंड ताम्रलिप्ति और समुद्र-तट का मेल शिलालेखवाले कोसल और महाकांतार ( पंक्ति १६ ) से मिलता है और दूसरी ओर सम-तट (पंक्ति २२) से मिलता है । जान १. इस प्रयोग का समर्थन और स्पष्टीकरण इस बात से हो जाता है कि समुद्रगुप्त ने अपने इलाहाबादवाले शिलालेख (पंक्ति २४ ) में समस्त भारत के लिये पृथ्वी और धरणी शब्दों का प्रयोग किया है। इसका मतलब है-सारा देश । भागवत के वर्तमान पाठ में (अनु- गंगामाप्रयागं गोप्ता भोक्ष्यन्ति मेदिनीम् ) अनुगंगा शब्द इस प्रकार श्राया है कि मानों वह मेदिनी का विशेष्य हो । कदाचित् इससे कचर्चा यह सूचित करना चाहता था कि जो गुप्त लोग पहले अनुगंगाप्रयाग के शासक थे, वे आगे चलकर सारे साम्राज्य का अथवा अनुगंगा-प्रयाग और साम्राज्य का भोग करने लगे थे। २. महाभारत में कांतारकों के राज्य का जो स्थान निर्देश किया गया है, उससे पता चलता है कि वह भोजकट-पुर ( बरार ) से पूर्व कोसल तक वेणा (वैन-गंगा) की तराई के उस पार और पूर्वी कोसल ( दक्षिणवाले पाठ के अनुसार प्राकोटक) से पहले पड़ता था ।-
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