( २३३ ) देश का भी नाम दिया गया है। और इसका पूर्वी अफगानिस्तान से अभिप्राय है, जिसमें आजकल दरवेश खेलवाले और दौर लोग निवास करते हैं: और जो खैबर के दर्रे से लेकर उसके पश्चिम ओर है। महाभारत में हमें दार्विक के स्थान पर "दार्वीच" रूप मिलता है। ६ १२५. इस प्रकार पुराणों से हमें यह पता चलता है कि आर्यावर्त में गुप्तों के अधीन जो प्रांत थे, उनके अतिरिक्त उनके तीन और ऐसे प्रांत थे जिन पर उनकी गुप्तों के अधीनस्थ प्रांत ओर से नियुक्त गवर्नर या शासक शासन करते थे। इनमें से अंतिम दो प्रांत (ग) और (घ ) (देखो ऊपर पृ० २७२ ) दक्षिणी भारत में थे। और दूसरा प्रांत ( ऊपर पृ० २७२ का 'ख' ) भी विंध्यपर्वत के दक्षिण में था । यह प्रांत पश्चिम की ओर दक्षिणी-भारत के प्रवेश-द्वार पर था । हिंदू दृष्टिकोण से यह प्रांत भी दक्षिणापथ में ही अर्थात् विंध्य पर्वत के दक्षिण में था, परंतु आजकल के शब्दों में हम यहाँ इसे (१) डेकन प्रांत कहेंगे। गवर्नरों या शासकों के द्वारा जिन प्रांतों का शासन होता था, उनमें यह प्रांत विष्णुपुराण में तीसरा प्रांत बतलाया गया है, परंतु वायुपुराण और ब्रह्मांडपुराण में इसका नाम तीनों प्रांतों में सबसे पहले आया है। विष्णुपुराण में सबसे पहले (२) कोसल, उड़ीसा, बंगाल और चंपा के प्रांत का नाम आया है और बाकी दोनों पुराणों में कोसल आदि का प्रांत दूसरे नंबर पर है। और इसके उपरांत सभी पुराणों के अनुसार (३) कलिंग-माहिपिक-महेंद्र प्रांत है । भागवत की बात इन सबसे अलग १. हॉल और विलसन द्वारा संपादित विष्णुपुराण, २,१७५ पाद-टिप्पणी।
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