(२३२ ) विशेषण ) और गुहान ( जो विष्णुपुराण में भी इसी रूप में मिलता है)। ६ १२१. इसके उपरांत उस समय के नीचे लिखे राजवंशों के नाम दिए गए हैं जो गुप्त-वंश के अधीन स्वतंत्र राज्य नहीं थे-(क) कनक जिसका राज्य स्त्री- राष्ट्र, भोजक (ब्रह्मांड०), त्रैराज्य (विष्णु०), और मुपिका (विष्णु०) पर था। (ख) सुराष्ट्र और अवंती के आभीर लोग। (ग) शूर लोग। (घ) अर्बुद के मालव लोग । इनमें से ख, ग और घ यद्यपि हिंदू और द्विज तो थे, परंतु ब्रात्य (ब्रात्यद्विजाः) थे और उनके राष्ट्रीय शासक ( जनाधिपाः ) बहुत कुछ शूद्रों के समान (शूद्रप्रायाः ) थे। (ङ) सिंधु (सिंधु नदी के आस-पास का प्रदेश) और चंद्रभागा, कौंती ( कच्छ ) और काश्मीर ऐसे म्लेच्छों के अधि- कार में थे जो अनार्य शुद्र थे (अथवा कुछ हस्तलिखित प्रतियों के अनुसार अंत्याः अथवा सबसे निम्न वर्ग के और अछूत थे)। ये लोग म्लेच्छ शूद्र थे, अर्थात् ऐसे म्लेच्छ (शकों से अभिप्राय है) थे जो हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार शूद्रों का पद तो प्राप्त कर चुके थे, परंतु फिर भी म्लेच्छ ( अर्थात् विदेशी) ही थे (६१४६ ख)। इस अवसर पर पुराणों में हिन्दू-शूद्रों से ये म्लेच्छ-शूद्र अलग रखे गए हैं। विष्णुपुराण में तो इन्हें स्पष्ट रूप से म्लेच्छ शूद्र ही कहा है । विष्णु पुराण में सिंधु तट के उपरांत दार्विक १. Puran Text पृ० ५५, पाद-टिप्पणी ३० ।
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