(२१३) कि उस अभिलेख में उसने अपने पिता का गोत्र दिया है। क्योंकि उसके पति का गोत्र भिन्न (विष्णु-वृद्ध) था। कौमुदी महोत्सव से हमें इस संबंध में एक और बात यह मालूम होती है कि वह कारस्कर जाति का था। बौधायन में कहा है कि कारस्कर एक छोटी जाति है और इस जाति के लोगों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए; और यदि वे जायँ भी तो उनके यहाँ से लौट- कर उन्हें प्रायश्चित्त अथवा अपनी शुद्धि करनी चाहिए'। बौधा- यन में कारस्कर लोग पंजाबी अरट्रों के मेल में रखे गए हैं और अरट्ट का शब्दार्थ होता है-"प्रजातंत्री" । उनका ठीक निवास. स्थान हेमचंद्र ने बतलाया है और शाल्वों की व्याख्या करते समय कहा है कि वे कार नामक तराई के रहनेवाले हैं। कारपथ या कारापथ नामक स्थान हिमालय के नीचेवाले प्रदेश में था। शाल्व लोग मद्रों के एक विभाग के थे और स्यालकोट में रहते थे, जहाँ वे सियाल कहलाते थे और यह सियाल "शाल्व' से ही निकला है; और यह “शाल्य" भी लिखा जाता है। और यह नाम अब तक प्रचलित है। इसलिये कारस्कर लोग पंजाब के रहनेवाले थे और मद्रों के एक उप-विभाग थे। हमें यह भी ज्ञात है कि मद्र लोग वाहीक और जार्तिक भी १. बौधायन-कृत धर्म-सूत्र १. १. ३२. २. हेमचंद्र-कृत अभिधान-चिंतामणि ४, पृ० २३. शाल्वस्तु कार- कुक्षीया । ३. रघुवंश, १५. ६०. विल्सन का विष्णु-पुराण, खंड ३, पृ० ३६०. ४. विल्सन और हाल का विष्णु-पुराण, खंड ५, पृ० ७०.
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