( २०८) का पतन हो गया ( ई० पू० ३१ ) तब उसके बाद पाटलिपुत्र और मगध में सातवाहनों का राज्य पचास वर्षों से अधिक न रहा होगा। लिच्छवी-वंश के जयदेव द्वितीय का जो नेपालवाला शिलालेख है और जिस पर श्रीहर्प संवत् १५३ (=सन् ७५८ ई.) दिया है, उसमें कहा गया है कि जयदेव प्रथम से २३ पीढ़ियाँ पहले उसका पूर्व पुरुप सुपुण्य लिच्छवी हुआ था जिसका जन्म पुष्पपुर नगर में हुआ था । डा० फ्लीट ने हिसाब लगाकर जयदेव प्रथम का समय लगभग सन ३३० ई० से ३५५ ई० तक निश्चित किया है। ( यदि इन तेईस राजाओं की लंबी सूची के प्रत्येक राजा के लिये हम औसत में लगभग पंद्रह वर्षों का भी समय रख लें तो हम कह सकते हैं कि सुपुष्प ईसवी पहली शताब्दी के आरंभ में हुआ था। पाटलिपुत्र पर अधिकार करने के लिये लिच्छवियों ने सातवाहन सम्राट से आज्ञा प्राप्त की होगी। अथवा कई शताब्दियों से लिच्छवी लोग मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर अधिकार करना चाहते थे, और इसलिथे यह भी संभव है कि उन्होंने स्वतंत्र रूप से ही उस पर अधिकार कर लिया हो। उत्तरी भारत में केड- फिसस और वेम केडफिसस के आ पहुँचने के कारण सातवाहन सम्राट् के कामों में अवश्य ही गड़बड़ी पड़ी होगी, और इसी कारण पाटलिपुत्र में जो स्थान रिक्त हुआ था, उसकी पूर्ति करने १. इंडियन एंटिक्वेरी, खंड ९, पृ० १७८; फ्लीट-कृत Gupta Inscriptions की प्रस्तावना, १० १८४-१८५ | २. फ्लीट-कृत Gupta Inscriptions की प्रस्तावना, पृ० १३५, १६१ और इंडियन एंटिक्वेरी, खंड १४, पृ० ३५० ।
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