पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२२५

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( १६५) ६६६. वाकाटक प्रदेश मानों उत्तर और दक्षिण का मिलन- स्थान था। वाकाटक राजमंत्री हस्तिभोज और उसके परिवार के लोग दक्षिण भारत के रहनेवाले थे। और स्वयं पल्लव लोग भी वाकाटकों की एक शाखा ही थे, इसलिये इन दोनों राज्यों में स्वभावतः परस्पर आदान-प्रदान और गमनागमन होता रहा होगा । वाकाटक गुहा-मंदिरों में जो बीच बीच में पल्लव ढंग की मूर्तियाँ श्रादि देखने में आती हैं, उसका कारण यही है । इसके अतिरिक्त कुछ मूर्तियों में जो द्रविड़ शैली की अनेक बातें पाई जाती हैं, उसका कारण भी यही है। ६ १०८. यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हमें केवल तीन गुफाओं का लिखित इतिहास मिलता है। पर हम बिना किसी प्रकार की आपत्ति के कह सकते हैं कि जो गुफाएँ गुप्तों की कही और समझी जाती हैं, वे सब वाकाटकों की मानी जानी चाहिए। क्योंकि गुप्तों का प्रत्यक्ष शासन कभी अजंता तक नहीं पहुंचा था और अजंता का स्थान बराबर वाकाटकों के अधिकार में ही था। १०० क. परवर्ती वाकाटक लोग यद्यपि स्वयं बौद्ध नहीं थे, पर फिर भी धर्म संबंधी बातों में उन्होंने अपनी प्रजा को पूरी स्वतंत्रता दे रखी थी और उनकी प्रजा में से जो लोग बौद्ध धर्म पालन करना चाहते थे, वे सहर्ष ऐसा कर सकते थे। ६१०१. जान पड़ता है कि वाकाटकों के पास घुड़सवार सेना बहुत प्रबल थी; और अजंतावाले वाकाटक घुड़सवार शिलालेख में जहाँ विंध्यशक्ति के सैनिक बल का उल्लेख है, वहाँ इस बात की भी चर्चा है। जान पड़ता है कि वाकाटकों की सैनिक शक्ति इन