(१८२) ही हैं। यथा नचना के मंदिर और जासो के भैरव लिंग' जो भूमरा और नकटी के (भार-शिव ) एक मुख लिंगों से भिन्न हैं, (जिनके चित्र श्री बनर्जी ने Arch Memoirs नं० १६, प्लेट १५ A. S. V. C. सन् १९१६-२०, प्लेट २६ में दिए हैं )। कला की दृष्टि से ये सभी लिंग एक ही प्रकार या वर्ग के हैं, चाहे देवता के ध्यान अलग ही क्यों न हों। चाहे इन कलाओं और गुप्त कला में सिद्धांत संबंधी कोई बहुत बड़ा अंतर न हो, पर उद्देश्य और भाव की दृष्टि से ये बिलकुल अलग और स्वतंत्र वर्ग के ही हैं। यद्यपि कनिंघम ने लोगों को सचेत करने के लिये कह दिया है-'यद्यपि यह संभव है कि इस प्रकार के मंदिरों के आरंभिक नमूने गुप्त शासन के कुछ दिन पहले के हों।' (A. S. R. खंड ६, पृ० ४२)। तो भी वाकाटकों और गुप्तों के जितने अवशिष्ट मंदिर आदि हैं, वे सभी गुप्तों के समय के ही कहे जाते हैं। परंतु वाका- टकों और गुप्तों के मंदिरों आदि में अंतर संप्रदाय संबंधी है। नाग-वाकाटकों के सब मंदिर शिव-संबंधी या शैव-संप्रदाय के हैं और गुणों के मंदिर विष्णु के अथवा वैष्णव-संप्रदाय के हैं। एरन और देवगढ़ के वैष्णव मंदिरों के जो भग्नावशेष हैं, वे सब गुप्तों के माने जा सकते हैं; और नचना तथा जासो के सब मंदिर और तिगोवा के सब नहीं तो अधिकांश भग्नावशेष निस्संदेह रूप से वाकाटकों के हैं। १. देखो अंत में परिशिष्ट क । २. खोह के पास नकटी नामक स्थान में एकमुख लिंग। इसका चेहरा यौवन काल का है, जैसा मत्स्यपुराण २५८, ४ के अनुसार होना चाहिए।
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