पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/२०४

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( १७४) सन् २४० या २५८ ई. तक मुरुंड ही भारत का राजा माना जाता था और इसी मुरुंड ने इंडो-चाइना के एक हिंदू राजा को युएह-ची घोड़े भेजे थे; और इसका अभिप्राय यह है कि यद्यपि उस समय तक मुरुंड गंगा और यमुना के बीच का अंतर्वेद छोड़कर चला गया था, तो भी वह भारत का सम्राट और भारत में शासन करनेवाला ही माना जाता था। ६ ८५. वाकाटक सम्राट ने तीन बहुत बड़े कार्य किए थे। भार-शिव साम्राज्य के प्रायः अंतिम चालीस वर्षों में उसका पिता विंध्यशक्ति बहुत बड़े बड़े युद्ध करता रहा तीन बड़े कार्य अखिल था और वही भारशिवों के साम्राज्य का भारतीय साम्राज्य की संस्थापक था। प्रवरसेन ने भी उसकी कल्पना, संस्कृत का पुनरु- शक्ति और आदर्श प्राप्त किया था और द्धार, सामाजिक पुनरुद्धार एक स्पष्ट राजनीतिक सिद्धांत स्थिरकिया था। (१) उसने निश्चित किया था कि सारे भारत में एक हिंदू-साम्राज्य होना चाहिए और शास्त्रों की मर्यादा की फिर से स्थापना होना चाहिए। (२) सन् २५० ई० के लगभग संस्कृत के पक्ष में एक बड़ा साहित्यिक आंदोलन आरंभ हुआ था और पचास वर्षों में वह आंदोलन बढ़कर उस सीमा तक पहुँच गया था, जिस सीमा पर गुप्ता ने उसे अपने हाथ में लिया था। सन् ३४० ई० के लगभग कौमुदी-महोत्सव नामक १. जायसवाल का The Murunda Dynasty नामक लेख F1 The Malaviya Commemoration Volume go १८५ में छपा है | मुरुंड कुशनों की राजकीय उपाधि थी। (J. B. O. R. S. खंड १६, पृ० २०३ । )