पीछे हटाने में इनसे बहुत सहायता मिली होगी। पुराणों में इनका उल्लेख नहीं है, क्योंकि ये लोग वाकाटकों के आर्यावर्तीय साम्राज्य में थे जो उत्तराधिकार-रूप में उन्होंने भार-शिवों से प्राप्त किया था। सिंहपुर अर्थात् जालंधर के राजाओं ने कभी अपने सिक्के नहीं चलाए थे। मद्र लोग सिंहपुर राज्य के पश्चिम में थे। ६७६. सन् २८० ई. के लगभग कुशन लोग दो ओर से भारी विपत्ति में पड़े थे। वरहान द्वितीय ने, जो सन् २७५ से २६२ ई० तक सासानी सिंहासन पर था, वाकाटक काल में कुशन सीस्तान को अपने अधीन कर लिया था। हम यह भी मान सकते हैं कि जिस प्रवरसेन प्रथम ने चार अश्वमेध यज्ञ किए थे और जिसने कम से कम चार बार बड़ी बड़ी चढ़ाइयाँ की होंगी, उसने कुशन शक्ति को दुर्बल और नष्ट करनेवाली भार-शिवों की नीति का अवश्य ही पालन किया होगा। सन् ३०१ और ३०६ ई० के बीच में कुशन लोग हुर्मजद द्वितीय के संरक्षण और शरण में चले गए थे, क्योंकि हुर्मजद द्वितीय ने काबुल के राजा अर्थात् कुशन राजा की कन्या के साथ विवाह किया था। यह ठीक वही समय था जब कि प्रवरसेन प्रथम बहुत प्रबल हो रहा था और इसी समय कुशन राजा ने भारत को छोड़ दिया था और यहाँ से उसके साम्राज्य की राजधानी सदा के लिये उठ गई थी। वह अपनी रक्षा के लिये भारत से पीछे हटकर अफगानिस्तान में चला गया था और उसने अपने आपको पूरी तरह से सासानी राजा के हाथों में सौंप दिया था। पश्चिमी पंजाब में उस समय उसका जो थोड़ा-बहुत राज्य किसी तरह बचा रह गया था, उसका कारण यही था कि उसे सासानी राजा का संरक्षण प्राप्त था। और उसे
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