( १६५ ) आरंभ भार-शिवों के अंतिम समय में और वाकटकों के प्रारंभिक समय में हुआ होगा। ये लोग यादव थे और शिलालेख में कहा गया है कि ये लोग देश के उस विभाग में युग ( कलियुग ) के आरंभ से ही बसे हुए थे । महाभारत सभापर्व, १४, श्लोक २५ और उसके आगे इस बात का उल्लेख है कि उस समय यादव लोग मथुरा छोड़कर चले गये थे और उनके इस देशांतर-गमन से शिलालेख की उक्त बात का समर्थन भी होता है। जिस समय यादव लोग मथुरा, शूरसेन और उसके आस-पास के प्रदेश छोड़कर पंजाब में जा बसे थे, उसी समय शाल्व और कुण्दि लोग भी मथुरा से चलकर पंचाव में जा बसे थे। जान पड़ता है कि टक्क लोग, जो बाद में शाल्व देश से चलकर मालवा में जा बसे थे, सिंहपुर के यादव और मथुरा के यादव नाग सब एक ही बड़ी यादव जाति की शाखाओं में से थे और इसी से यह रहस्य भी खुल जाता है कि मथुरा के प्रति इन लोगों का इतना अधिक प्रेम क्यों था। इस प्रकार सिंहपुर का वंश भार-शिवों के वंश से संबद्ध था। वाकाटकों ने भी यह संबंध बनाए रखा था । जान पड़ता है कि नाग सम्राटों ने कुशनों को पीछे हटाने के लिये ही सिंहपुर राज्य की स्थापना की थी और इस काम में यह राज्य किले का काम देता था। सिंहपुर के प्रारंभिक राजाओं के संबंध में शिलालेख में कहा है कि उनमें आर्यत्रतता और वीरता यथेष्ट थी। भार-शिवों की तरह वे लोग भी शैव थे। उनका राज्य कम से कम युवानच्वंग के समय (सन् ६३१ ई० ) तक अवश्य वर्तमान था, क्योंकि उसने इसका उल्लेख किया है। जान पड़ता है कि गुप्तों ने इस राज्य को इसलिये बना रहने दिया था कि एक तो यहाँ के राजवंश का महत्त्व अधिक था और दूसरे भार-शिवों के समय में कुशनों को उत्तरी आर्यावर्त से
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