पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१८७

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(१५७) राजवंश का अधिकार था जो अपने आपको नल का वंशज बत- लाता था। उनकी राजधानी विदूर में थी जो आज-कल का बीदर जिनमें वैवाहिकाः (इसे भूल से वाह्लीकाः पढ़ा था) भी सम्मिलित थे और विंध्यशक्ति के वंशज भी थे (मिलायो टीकाकार-तत्पुत्राः विंध्य- शक्त्यादीना पुत्राः) । विष्णुपुराण का पाठ इस प्रकार है-तत्पुत्राःत्रयो- दशैव वाहलीकाः त्रयः ततः पुष्यमित्रपमित्रपद्ममित्रास त्रयोदशा । मेकलाश्च (विलसन कृत V. P. ४, २१३)। इसमें संततिः शब्द का संबंध मूलतः मेकलों से था और त्रय पुष्यमित्रवर्ग के 'दश' ग्रंक का (६७४ ) प्रयोग उन राजाओं के लिये किया गया था जो वायुपुराण के पाठ में विंध्यशक्ति के बाद और मेकलों के पहले थे । अर्थात् इन दोनों शब्दों को उसने तीन वाहीकों ( वस्तुतः वैवाहिकों) और दस पुष्यमित्रों, पढुमित्रों और पद्ममित्रों के साथ मिला दिया था । और जब इस प्रकार तेरह की संख्या पूरी हो गई, तब मेकलों के संबंध में, जो वास्तव में वंशज थे, लिख दिया और मेकल भी ( मेकलाश्च )। भागवत में भी विष्णुपुराण का ही अनुकरण किया गया और उसका का १३ संतानों का उल्लेख करके रह गया । इससे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि विष्णुपुराण के कर्ता को मेकलों के बाद और उनके साथ 'सतति' शब्द मिला था। विष्णुपुराण ने सप्त को कोशला के साथ मिला दिया-सप्तकोस- लाया । ( टीकाकार ने भी यही पाठ ठीक मान लिया था।) विलसन की हस्तलिखित प्रति में भी यही पाठ मिला थो। (देखो जे० विद्या- सागर का संस्करण पृ० ५८४. विलसन ४, २१३-१४)। भूमिका में वायुपुराण इसे पंचकोसलाः कहता है - वैदिशाः पंचकोशलाः; पर मेकलाः कोसलाः का उल्लख वह अलग करता है (पारजिटर कृत P. T. पृ० ३) । इन दोनों के मिलाने पर सप्तकोसलाः के सात प्रांत