( १५३ ) वह पूरी तरह से नरेंद्रसेन और हरिषेण के अधिकार में आ गया था। इस विस्तृत प्रभुत्व का महत्व उस समय स्पष्ट हो जायगा, जब हम वाकाटक-सरकार का सविस्तार वर्णन करेंगे, जिसका पुराणों में पूरा पूरा वर्णन है और उसी के साथ जब हम यह भी वर्णन करेंगे कि गुप्तों ने दक्षिण में किस प्रकार और कहाँ तक विजय प्राप्त की थी और समुद्रगुप्त की अधीनता में किस प्रकार वहाँ का पुनर्घटन हुआ था । और इन सब बातों का भी पुराणों में पूरा पूरा उल्लेख है। ६७१. वाकाटक-काल तीन मुख्य विभाग हैं-(१) साम्राज्य-काल (२) गुप्तों के समय का वाकाटक-साम्राज्य-काल काल और (३) गुप्तों के बाद का काल ( नरेंद्रसेन से लेकर हरिषेण के समय तक और संभवतः उसके उपरांत भी)। ६७२. वाकाटक-साम्राज्य का आरंभ प्रवरसेन प्रथम के शासन-काल से होता है और रुद्रसेन प्रथम के शासन के साथ उसका अंत होता है । परंतु समुद्रगुप्त के प्रथम युद्ध के कारण (६१३२ ) रुद्रसेन प्रथम को इतना समय ही नहीं मिला था कि वह अपने वाकाटक प्र-पिता का सम्राट् पद ग्रहण कर सकता। सम्राट प्रवरसेन के सिक्के पर संवत् ७६ अंकित मिलता है जिससे जान पड़ता है कि उसने अपने राज्य का आरंभ अपने पिता के समय से ही मान लिया था, क्योंकि स्वयं उतने केवल ६० वर्षों तक ही शासन किया था। समुद्रगुप्त ने भी गुप्त राज्य-वर्षों की गणना करते समय' इसी प्रकार अपने पिता के १ मिलायो G. I. पृ. ६५-अब्द-शते गुप्त-नृप-राज्य-भुक्तो ।
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