पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१८२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १५२) साथ वह विवाह-संबंध स्थापित करता था; और इसी का यह परिणाम हुआ था कि उसने अपनी कन्याओं का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया था और कदंब-राजा की एक कन्या का विवाह अपने वंश के एक राजकुमार के साथ किया था। स्वयं उसने भी कुबेर नागा के साथ विवाह किया था जो एक नाग राजकुमारी थी और जो प्रभावती गुप्ता की माता थी। ध्रुवदेवी भी और कुवेर नागा भी क्रमशः गुप्त और वाकाटक लेखों में महादेवी कही गई हैं। यदि ध्रुवदेवी, जिसके पूर्वजों का पता नहीं है, यही कुबेर नागा नहीं है, तो यही कहा जा सकता है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने सिंहासन पर बैठने के उपरांत शीघ्र ही उसके साथ विवाह किया था और तब ध्रवदेवी के उपरांत कुबेर नागा महादेवी हुई होगी। जब नाग राजकुमारी के गर्भ से उत्पन्न एक राजकुमार उस वाकाटक राजवंश में चला गया, जो नागों का उत्तराधिकारी था, तब गुप्तों और वाकाटकों की पुरानी शत्रुता का अंत हो गया। इसके उपरांत वाकाटक फिर धीरे धीरे प्रबल होने लगे और नागों के अधीन उन्हें जितनी स्वतंत्रता मिली थी, उतनी और किसी दूसरे राज्य को नहीं मिली थी। प्रभावती की मृत्यु के उपरांत और गुप्त साम्राज्य का पतन हो जाने पर नरेंद्रसेन की अधीनता में वाकाटक लोग फिर बरार- मराठा-प्रदेश के, जिसमें कोंकण भी संमिलित था, सर्व-प्रधान राजा हो गए और उनका साम्राज्य कुंतल, पश्चिमी मालवा, गुज- रात, कोशल, मेकल और आंध्र तक हो गया। हरिषेण के समय में भी उनके राज्य की यही सीमा बनी रही। पश्चिम में और दक्षिण में कदंब राज्य के कुंतल देश तक गुप्तों का जो राज्य था, १. The Kadamba Kula, पृ० २१-२२ ।