(१४७) और (ख) दामोदरसेन प्रवरसेन द्वितीय की अभिभाविका के रुप में ७. प्रवरसेन द्वितीय, वयस्क होने पर ८. नरेंद्रसेन (5 वर्ष की अवस्था में सिहा- सन पर बैठा था) १. पृथिवीपेण द्वितीय १०. देवसेन ( इसने सिंहासन का परित्याग ४०५-४१५३० ४१५-४३५, " ४३५-४७० ४७०-४८५" किया था) ११. हरिषेण ४८५-४६०, ४६०-५२०, हास से मिलान ६६६. ऊपर जो क्रम दिया गया है, वह मुख्यतः पुराणों के आधार पर है और ज्ञात ऐतिहासिक घटनाओं से अर्थात् चंद्रगुप्त प्रथम और समुद्रगुप्त के शासन- प्रारंभिक गुप्त इति काल से इसका मिलान या समर्थन हो जाता है। सिक्कों के अनुसार भी और कौमुदी-महोत्सव के अनुसार भी चंद्रगुप्त ने लिच्छवियों की सहायता से पाटलिपुत्र पर अधिकार प्राप्त किया था। मगध में जो राजवंश शासन करता था, वह अवश्य ही भार-शिवों के साम्राज्य का अधीनस्थ रहा होगा; क्योंकि उस साम्राज्य का अस्तित्व सन् २५० ई० के लगभग आरंभ हुआ था और उस राजवंश को चंद्रगुप्त प्रथम ने राज्यच्युत कर दिया था। चंद्रगुप्त प्रथम ने सन् ३२० ई० से लिच्छवियों के नाम से अपने सिक्के बनाने प्रारंभ किये थे, और इसका अभिप्राय यह है १. मुझे ऐसा जान पड़ता है कि उसके पहले के सिक्के उन्हीं सिक्कों में मिलते हैं जिन्हे पांचाल सिक्के कहते हैं और जिनके चित्र कनिंघम
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१७७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।