(१३८) भोज का पुत्र था, यह गुहा-मंदिर या चैत्य बनवाकर बौद्धों के पूजन-अर्चन के लिये उत्सर्ग कर दिया था । A.S. W. I. ४, १२४। ( ड ) अजंता के गुहा-मंदिर का शिलालेख, जो बुहलर का चौथा लेख है, राजा हरिपेण के किसी अधीनस्थ और करद राजा के वंश के लोगों का बनवाया हुआ है। इसमें उनकी दस पीढ़ियों तक की वंशावली दी है और कहा गया है कि यह गुहा-मंदिर (नं० १७) बनवाकर भगवान् बुद्धदेव के नाम पर उत्सर्ग किया गया था। इस पर हरिषेण के शासन-काल का वर्ष दिया है जिसने अपनी प्रजा के हित के काम किए थे (परिपालयति क्षितींद्र-चंद्र हरिपेणे हितकारिणी प्रजानाम् )। A. S. W. I. ४, १३० ठ (1) २१, A. S. W. I. ४, १२८ । इनके अतिरिक्त दो और अभिलेख हैं जो, मेरी समझ से, वाकाटकों के हैं और जिनका वर्णन आगे चल कर किया जायगा। ६६२. शिलालेखों और पुराणों के आधार पर वाकाटकों की जो वंशावली बनती है, वह यहाँ दी जाती वाकाटक वंशावली है। इस वंशावली में जिन लोगों के नाम गोल कोष्ठक के अंदर दिए गए हैं, वे वाकाटक राजा के रूप में सिंहासनासीन नहीं हुए थे। १. इनमें से एक दुरेहा ( जासो) का स्तंभ है। देखो अंत में परिशिष्ट क। इसमें स्पष्ट रूप से इस वंश का नाम है और लिपि के विचार से यह सबसे पहले का है।
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