परंतु फिर भी वे गुप्तीय नहीं हैं।' उन पर की मूर्तियाँ और बेल-बूटे बनानेवाले कारीगर एक ही थे। चतुर्मुख शिव के मंदिर का शिखर बहुत ऊँचा है और उसके पार्श्व कुछ गोलाई लिए हैं और उसकी ऊँचाई लगभग ४० फुट है। वह एक ऊँचे चबूतरे पर बना है। उसमें खंभे या सभामंडप नहीं हैं ( देखो परिशिष्ट क)। ४६ क. भूमरा-मंदिर का पता स्व० श्री राखालदास बनर्जी ने लगाया था । यह मंदिर उन्हें पश्चिमी बघेलखंड की नागौद रियासत के उच्चहरा-गुप्त वाकाटक- काल के शिलालेखों का उच्छ-कल्प- नामक स्थान में मिला था और उन्होंने इसका समय ईसवी पाँचवीं शताब्दी निश्चित किया है। यह भूमरा मंदिर १. इस चतुर्मुख मंदिर के संबंध में विद्वानों ने बहुत सी अटकल. पच्चू बातें कहीं हैं । वे कहते हैं कि चतुर्मुख का शिखरवाला मंदिर संभवतः : बाद का बना हुअा है । परंतु वे लोग यह बात भूल जाते हैं कि ये दोनों मंदिर एक ही योजना के अंग हैं और दोनों की मूर्तियाँ एक ही छेनी की बनी हैं । दोनो ही मंदिर अपने मूल रूप मे और पहले मसाले से बने हुए वर्तमान हैं । वे एक ही योजना के अंग हैं । एक में पर्वतों में रहनेवाली पार्वती है और उसकी दीवारें पर्वतों के अनुरूप बनी हैं; और दूसरे में कैलास के सूचक शिखर के नीचे चतु- मुख लिंग है। ये मंदिर बिलकुल एकांत में बने थे और इसीलिये मूचियों और मंदिरों को तोड़नेवालों के हाथों से बच गए । देखो अंत में परिशिष्ट । २. Archaeological Memoir सं० १६, पृ. ३, ७ । इसमें भग्नावशेष के चित्र भी है; और उस भग्नावशेष में की कुछ वस्तुएँ अब
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/१३६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।