(१८३) प्रचार नाग राजाओं ने किया था। इस संबंध मे हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस रूप में नागर शब्द का प्रयोग और स्थानों में भी हुआ है। गंगा की तराई बुलंदशहर में रहनेवाले ब्राह्मण नागर ब्राह्मण कहलाते हैं। जो मुसलमानों के समय में मुसलमान हो गए थे और अहिच्छत्र के पास रहनेवाले जाट लोग नागर जाट कहलाते हैं । इनमें से उक्त ब्राह्मण लोग नागों के पुरोहित थे और इस नागर शब्द में जो 'र' लगा हुआ है, वह नागों के साथ उनका संबंध सूचित करता है। स्थापत्य शास्त्र में इसी नागर शैली की तरह देशी भाषा में एक और शैली कहलाती है जिसका नाम वेसर शैली है; और नागर शैली से उसमें अंतर यह है कि उसमें नागर की अपेक्षा फूल-पत्ते और बेल-बूटे आदि अधिक होते हैं। संस्कृत शब्द वेष है जिसका अर्थ है-पहनावा या सजावट । और प्राकृत में इसका रूप वेस अथवा बेस हो गया है और उसका अर्थ है-फूल-पतों या बेल-बूटों से युक्त १. एफ० एस० ग्राउस ने J. B. A. S. १८७९, पृ. २७१ में लिखा है-"नगर के मुख्य निवासी नागर ब्राह्मणों की संतान हैं जो औरंगजेब के समय से मुसलमान हो गए हैं और जिनकी यह धारणा है कि हमारे पूर्वज जनमेजय के पुरोहित थे और उन्होंने जनमेजय का यज्ञ कराया था और इसी के पुरस्कार स्वरूप उन्हें इस नगर और इसके अासपास के गाँवों का पट्टा मिला था ।" 8. 215 ( Rose ) Glossary of the Tribes & Castes of the Punjab & the N. W. F. Provinces १९१९, खंड १, पृ. ४८।
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