(८७) यह वर्णन अनेक अंशों में उस वर्णन से मिलता है जो शक शासन-काल के भारतवर्ष के संबंध में गर्ग संहिता में दिया है। यह वर्णन देखने में ऐसा जान पड़ता है कि किसी प्रत्यक्षदर्शी का किया हुआ है। इस वर्णन में जिन आंध्र, शक, पुलिंद, बैक्ट्रियन (अर्थात् कुशन ) और आभीर आदि राजाओं के नाम आए हैं, उनसे सूचित होता है कि यह वर्णन के शासन- काल के अंतिम भाग का है। हम ऊपर यह बात कह आए हैं कि कुशनों ने हिंदू मंदिर नष्ट कर डाले थे। इस मत की पुष्टि महाभारत में आए हुए निम्नलिखित वाक्यों से भी होती है। समस्त हिंदू जगत् म्लेच्छ बना दिया गया था। सब जातियाँ या वर्ण नष्ट कर दिए गए थे और उनकी जगह केवल एक ही जाति या वर्ण रह गया था। श्राद्ध आदि कर्म बंद हो गए थे और लोग हिंदू देवताओं के स्थान में उन स्तूपों आदि की पूजा करते थे जिनमें हड्डियाँ रखी होती थीं। वर्णाश्रम प्रथा दबा दी गई थी ! इस दमन का परिणाम यह हुआ कि लोगों के आचार भ्रष्ट होने लगे। इन्हीं अध्यायों में विस्तारपूर्वक यह भी बतलाया गया है कि लोगों का कितना अधिक नैतिक पतन होगया था। शकों के शासन का उद्देश्य ही यह था कि जैसे हो, हिदुओं का हिंदुत्व नष्ट कर दिया जाय और उनकी राष्ट्रीयता की जड़ खोद दी जाय । शकों ने खूब समझ-बूझकर सामाजिक क्रांति उत्पन्न करने का प्रयत्न किया था। उनकी योजना यह थी कि उच्च वर्ग के लोगों और कुलीनों का दमन किया जाय, क्योंकि वही लोग राष्ट्रीय संस्कृति तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता के रक्षक थे। इस प्रकार के लोग ब्राह्मणों और क्षत्रियों का सब प्रकार से दमन करते थे। हिंदू राजाओं की सैनिक शक्ति से शक लोग नहीं घबराते
पृष्ठ:अंधकारयुगीन भारत.djvu/११३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।