( ७६ ) आदमियों को बुलाने की नीति का अवलंबन किया था। चक- पुलिंद वास्तव में शक पुलिंद हैं, क्योंकि भारत में प्रायः शक से चक शब्द भी बना लिया जाता है, जैसा कि गर्ग संहिता में। किया गया है। उनके साथ यपु या यवु विशेषण लगाया जाता है और वे पुलिंद यपु और पुलिंद अब्राह्मणानाम् कहे गए हैं। दूसरे शब्दों में यही बात यों कही जाती है कि वे भारतीय पुलिंद नहीं थे बल्कि अब्राह्मण और शक पुलिंद थे। ये लोग वही पालद या पालक-शाक जान पड़ते हैं जिन्होंने स्वयं अपने सिक्के चलाने के कारण और समुद्रगुप्त तथा चंद्रगुप्त के सिक्कों को ग्रहण कर लेने के कारण चौथी शताब्दी तथा पाँचवीं शताब्दी के प्रारंभ में कुछ विशेष महत्त्व प्राप्त कर लिया है। ६३५. इस कुशन क्षत्रप के शासन का जो वर्णन ऊपर दिया गया है, उससे हमें इस बात का बहुत कुछ पता लग जाता है कि भारत में कुशनों का शासन किस प्रकार का था। काश्मीर के इतिहास राजतरंगिणी में कुशनों के शासन के संबंध में जो कुछ कहा गया है ( १, १, १७४-८५), उससे इस मत की और भी पुष्टि हो जाती है। उन दिनों काश्मीर में जो नागों की उपासना प्रचलित थी, उसे कुशनों ने बंद कर दिया था और उसके स्थान पर बौद्ध धर्म का प्रचार किया था । एक बौद्ध धर्म ही ऐसा था जिसके द्वारा विदेशी शक १. J. B. O. R. S. खंड १४, पृ० ४०८ । २. पारजिटर P. T. पृ० ५२; ३५ वी तथा और पाद-टिप्पणियाँ। ३. J. B. O. R. S. खंड १८, पृ० २०६. [अफगानिस्तान में उचरी पुलिंद भी थे जो संभवतः अाजकल पोविंदाह कहलाते हैं । देखो मत्स्यपुराण ११३-४१ । ]]
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