( 15 ) हम आगे छलकर बतलावेंगे (६१४६ ख ), कुशनों ने भी बाद में इसी नीति का अवलंबन किया था। वे अपने राजनीतिक उद्देश्यों की सिद्धि के लिये समाज पर अत्याचार करते थे और बड़े धांध होते थे-दूसरे धर्मवालों को बहुत कष्ट देते थे। कैवत्तों में से, जो भारत के आदिम निवासियों में से एक छोटी जाति है और खेती-बारी करती है और जिसे आजकल केवट कहते हैं, उसने शासकों और राजकर्मचारियों का एक नया वर्ग तैयार किया था और इसी प्रकार पंचकों में से भी, जो शूद्रों से भी निम्न कोटि के होते हैं और अस्पृश्य माने जाते हैं, उसने अनेक शासक और राजकर्मचारी तैयार किए थे। उसने मुद्रकों को भी बिहार से बुंदेलखंड में बुलवाया था जो पहले पंजाब में रहा करते थे और चकों तथा पुलिदों या चक-पुलिंदों या पुलिंद यवु लोगों को भी अपने यहाँ बुलाकर रखा था। शासन आदि के कार्यों के लिये उत्तर से पूर्व में प्रथम वर्ग के जो लोग बुलाए गए थे, उनका महत्त्व इस विचार से है कि उससे सूचित होता है कि उसने धन देकर भारत के एक भाग से दूसरे भाग में १. पारजिटर P. T., पृ० ५२, पाद टिप्पणी ४८ । विष्णुपुराण में कहा है-कैवर्त यदु (यवु) पुलिंद अब्राह्मणानाम् (न्यान् ) राज्ये स्थापयिष्यथि उत्साद्यखिल क्षत्र-जाति । मागवत में कहा है-करिष्यति अपरान् वर्णान् पुलिंद-यवु,मद्र- कान् । प्रजाश्च अब्रह्म भुयिष्ठाः स्थापयिष्यति दुर्मतिः ।। वायुपुराण में कहा है--उत्साद्य पार्थिवान् सर्वान् सोऽन्यान् वर्णान् करिष्यति । कैवर्तान् पंचकांश्चैव पुलिंदान् अब्रह्मणानांस्तथा ॥ दूसरे पाठ-कैवासाम् सकांश्चैव पुलिंदान् । और-कैवान् य पुमांश्चैव श्रादि।
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