( ७७ ) माने जाते थे और राजपूतों के साथ विवाह-संबंध स्थापित करने में इन्हें कठिनता होती थी। आज तक उसकी नीति ये लोग समाज में कुछ निम्न कोटि के ही माने जाते हैं। बुंदेलखंड में उनके नाम से एक बनाफरी बोली भी प्रचलित है। विवस्फाटि ने भागवत के अनुसार पद्मावती में अपना केंद्र स्थापित किया था और सब पुराणों के अनुसार मगध तक अपने राज्य का विस्तार किया था। पुराणों में उसकी वीरता की बहुत प्रशंसा की गई है और कहा गया है कि उसने पद्मावती से बिहार तक का सारा प्रदेश और बड़े बड़े नगर जीते थे। पुराणों में यह भी कहा है कि वह युद्ध में विष्णु के समान था और देखने में हीजड़ा सा जान पड़ता था । प्रसिद्ध इतिहास-लेखक (Gibbon) ने हूणों के संबंध में जो बात कही है। वही बात पुराणों ने बहुत पहले से इन बनाफरों के संबंध में भी कही है। अर्थात् - इन लोगों के चेहरों पर दाढ़ियाँ प्रायः होती ही नहीं थीं, इसलिये इन लोगों को न तो कभी युवावस्था की पुरुषोचित शोभा ही प्राप्त होती थी और न वृद्धावस्था का पूज्य तथा आदरणीय रूप ही । अतः ऐसा जान पड़ता है कि वनस्पर की आकृति हुणों की सी थी और वह देखने में मंगोल सा जान पड़ता था। उसकी नीति विशेष रूप से ध्यान में रखने योग्य है। उसने अपनी प्रजा में से ब्राह्मणों का बिलकुल नाश ही कर दिया था-प्रजाश्च अब्राह्म- भूयिष्टाः। उसने उच्च वर्ग के हिंदुओं को बहुत दबाया था और निम्न कोटि के लोगों तथा विदेसियों को अपने राज्य में उच्च पद प्रदान किए थे। उसने क्षत्रियों का भी नाश कर दिया था और एक नवीन शासक-जाति का निर्माण किया था । उसने अपनी प्रजा को अब्राह्मण कर दिया था। जैसा कि
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