( ७४ ) प्राचीन दक्षिणपथ का नागपुरवाला अंश दोनों मिलकर एक हिंदुस्तानी प्रदेश बने रहे हैं और निवासियों, भाषा तथा संस्कृति के विचार से पूरे उत्तरी हो गए हैं और आर्यावर्त का विस्तार वस्तुतः निर्मल पर्वत-माला तक हो गया है। साठ वर्षों तक नाग लोग जो निर्वासित होकर वहाँ रहे थे, उसी के इतिहास का यह परिणाम है। एक ओर तो नागपुर से पुरिका होशंगाबाद तक और दूसरी ओर सिवनी से होते हुए जबलपुर तक उन्होंने पूर्वी मालवा से भी, जहाँ से उनका राज्याधिकार हटाया गया था और बघेलखंड रीवाँ के साथ भी अपना संबंध बराबर स्थापित रखा था और फिर इसी बघेलखंड से होते हुए वे अत में गंगा-तट तक पहुँचे थे। उनका यह नवीन निवास स्थान आगे चलकर गुप्तों के समय में वाकाटकों का भी निवास स्थान हो गया था; और इसी से अजंटा का वैभव बढ़ा था जो अपने मुख्य इतिहास काल में बराबर भार-शिवों और वाकाटकों के प्रभाव और प्रत्यक्ष अधिकार में बना रहा। अजंटा की कला मुख्यतः नागर भार- शिव और वाकाटक कला है । सन् २५०-२७५ ई० के लगभग शातवाहनों के हाथ से निकलकर यह अजंटा भार-शिव वाकाटकों के हाथ में चला आया था । ६३२. स्कंदगुप्त के शासन-काल तक कुछ नाग करद राजा थे, क्योंकि इस बात का उल्लेख मिलता है कि स्कंदगुप्त ने नागों के एक विद्रोह का कटोरतापूर्वक दमन किया था । चंद्रगुप्त द्वितीय ने कुबेर नाग नाम की एक नाग राजकुमारी के साथ विवाह किया था जो महादेवी थी और जिसके गर्भ से प्रभावती गुप्त उत्पन्न हुआ था । यदि यह नागकुमारो ध्रुवदेवी नहीं थी तो १. G. I. पृ० ५६, (जूनागढ़ पंक्ति) ३ ।
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