प्रकरण २२.


संशय

अज्ञपुरुष श्रद्धा रहित संशय युत विनशाय॥
बिनाश्रद्धा दुहुं लोकमैं ताकों सुख न लखाय॥*[]

श्रीमद्भगवद्‌गीता॥

लाला ब्रजकिशोर उठकर कपड़े नहीं उतारनें पाए थे इतने मैं हरकिशोर आ पहुंचा.

"क्यों! भाई! आज तुम अपने पुराने मित्रसै कैसे लड़ आए?" ब्रजकिशोरने पूछा.

"इस्सै आपको क्या? आपके हां तो घीके दिए जल गए होंगे" हरकिशोरने जबाव दिया.

"मेरे हां घीके दिये जलने की इस्मै कौन्सी बात थी?" ब्रजकिशोरने पूछा.

"आप हमारी मित्रता देखकर सदैव जला करते थे आज वह जलन मिट गई"

"क्या तुमारे मनमैं अबतक यह झूंटा वहम समा रहा है?" ब्रजकिशोरने पूछा.

"इस्मैं कुछ संदेह नहीं" हरकिशोर हुज्जत करनें लगा. "मैं ठेठसै देखता आता हूं कि आप मुझको देखकर जल्ते हैं मेरी और मदनमोहनकी मित्रता देखकर आपकी छातीपर सांप लोटता है. आपनें हमारा परस्पर बिगाड़ करानें के लिये कुछ थोड़े उपाय किये? मदनमोहनके पिताको थोड़ा भड़काया? जिस दिन मेरे लड़के की बरातमैं शहरके सब प्रतिष्ठित मनुष्य आए थे उन्को देखकर आपके जीमैं कुछ थोड़ा दुःख हुआ? शहरके सव प्रतिष्ठित मनुष्योंसै मेरा मेल देखकर आप नहीं कुढ़ते? आप मेरी तारीफ़ सुनकर कभी अपनें मनमैं प्रसन्न हुए? आपनें किसी काममैं मुझको सहायता दी जब मैंने अपने लड़के के विवाहमैं मजलिस की थी आपने मजलिस करनेंसै मुझे नहीं रोका? लोगोंके आगे मुझको बावला नहीं बताया? बहुत कहनें सै क्या है? आज ही मदनमोहनका मेरा बिगाड़ सुन्कर कचहरीसै वहां झटपट दोड़गए और दो घंटे एकांतमैं बैठकर उस्को अपनी इच्छानुसार पट्टी पढ़ा दी परन्तु मुझको इन बातोंकी क्या परवा है? आप और वह दोनों मिल्कर मेरा क्या करसक्ते हो? मैं सब समझलूंगा"

लाला ब्रजकिशोर ये बातें सुन, सुनकर मुस्कराते जाते थे. वह अब धीरज सै बोले "भाई! तुम बृथा वहम का भूतबनाकर इतना डरते हो. इस वहमका कुछ ठिकाना है? तुम तत्काल इन बातोंकी सफाई करते चलेजाते तो मनमैं इतना वहम सर्वथा नहीं रहता. क्या स्वच्छ अतःकरण का यही अर्थ है? मुझको जलन किस बात पर होती? तुम अपना सब काम छोड़कर दिन भर लोगोंकी हाज़री साधते फिरोगे, उन्की चाकरी करोगे, उन्को तोहफ़ा तहायफ़ दोगे? दस, दस बार मसाल लेकर उन्के घर बुलानें जाओगे तो वह क्यों न आवेंगे? अपनें गांठ की दौलत ख़र्च करके उन्को नाच दिखाओगे तो वह क्यों न तारीफ़ करेंगे? परन्तु यह तारीफ़ कितनी देरकी, वाह वाह कितनी देर की? कभी तुमपर आफ़त आ पड़ेगी तो इन्मैंसै कोई तुह्मारी सहायता को आवेगा? इस ख़र्चसै देशका कुछ भला हुआ? तुह्मारा कुछ भला हुआ? तुह्मारी संतान का कुछ भला हुआ? यदि इस फ़िजूल ख़र्चीके बदले लड़के के पढ़ानें लिखानें मैं यह रुपया लगाया जाता, अथवा किसी देश हितकारी काममैं ख़र्च होता तो निस्संदेह बड़ाई की बात थी परन्तु मैं इस्मैं क्या तारीफ़ करता, क्या प्रसन्न होता क्या सहायता करता मुझको तुह्मारी भोली, भोली बातोंपर बडा आश्चर्य था इसी वास्ते मैंने तुमको फ़िजूल ख़र्ची से रोका था, तुमको बावला बताया था परन्तु तुह्मारी तरफ़की मेरी मनकी प्रीतिमैं कुछ अंतर कभी नहीं आया, क्या तुम यह विचारते हो कि जिस्सै संबंध हो उस्की उचित अनुचित हरेक बातका पक्षपात करना चाहिये? इन्साफ़ अपनें वास्ते नहीं केवल औरोंके वास्ते है? क्या हाथ मैं डिम-डिमी लेकर सब जगह डोंडी पीटे बिना सच्ची प्रीति नहीं मालूम होती? इन सब बातोंमैं कोई बात तुह्मारी बडाईके लायक़ हो तो घर फूंक तमाशा देखना है. इसी तरह इन सब बातोंमें कोई बात मेरे प्रसन्न होनें लायक़ हो तो तुमको प्रसन्न देखकर प्रसन्न होना है मैं यह नहीं कहता कि मनुष्य ऐसे कुछ काम न करे समय, समय पर अपने बूते मूजिब सबकाम करनें योग्य हैं परंतु यह मामूली काररवाई है जितना वैभव अधिक होता है उतनी ही धूमधाम बढ़ जाती है इस लिये इस्में कोई ख़ास बात नहीं पाई जाती है. मैं चाहता हूं कि तुम सै कोई देश हितैषी ऐसा काम बनें जिस्मैं मैं अपने मन की उमंग निकाल सकूं मनुष्य को जलन उस मौके़ पर हुआ करती है जब वह आप उस लायक न हो परन्तु तुम को जो बडाई बड़े परिश्रम सै मिली है वह ईश्वर की कृपा सै मुझ को बेमहनत मिल रही है फिर मुझ को जलन क्यों हो? तुम्हारी तरह खुशामद कर के मदनमोहन सै मेल किया चाहता तो मैं सहज मैं करलेता परन्तु मैंने आप यह चाल पसंद न की तो अपनी इच्छा सै छोड़ी हुई बातों के लिये मुझ को जलन क्यों हो? जलन की वृत्ति परमेश्वर नें मनुष्य को इसलिये दी है कि वह अपनें सै ऊंची पदवी के लोगों को देखकर उचित रीति से अपनी उन्नति का उद्योग करे परन्तु जो लोग जलन के मारे औरों का नुक्सान कर के उन्हें अपनी बराबर का बनाया चाहते है वह मनुष्य के नाम को धब्बा लगाते हैं. मुझ को तुम सै केवल यह शिकायत थी और इसी विषय मैं तुम्हारे विपरीत चर्चा करनी पड़ी थी कि तुमनें मदनमोहन सै मित्रता कर के मित्र के करनें का काम न किया तुम को मदनमोहन के सुधारनें का उपाय करना चाहिये था परन्तु मैंने तुम्हारे बिगाड की कोई बात नहीं की. हां इस वहम का क्या ठिकाना है? खाते, पीते, बैठते, उठते, बिना जानें ऐसी सैंकड़ों बातें बन जाती हैं कि जिन्का विचार किया करें तो एक दिन मैं बाबले बन जायँ. आए तो आए क्यों, गए तो गए क्यों, बैठे तों बैठे क्यों हँसे तो हँसे क्यों, फलाने से क्या बात की फ़लाने सै क्यों मिले? ऐसी निरर्थक बातों का विचार किया करें तो एक दिन काम न चले. छुटभैये सैकडों बातें बीच की बीच मैं बनाकर नित्य लड़ाई करा दिया करें पर नहीं अपनें मन को सदैव दृढ रखना चाहिये निर्बल मन के मनुष्य जिस तरह की ज़रा जरासी बातों मैं बिगड़ खड़े होते हैं दृढ मन के मनुष्य को वैसी बातों की ख़बर भी नहीं होती इसलिये छोटी, छोटी बातों पर बिशेष बिचार करना कुछ तारीफ़ की बात नहीं है और निश्चय किए बिना किसी की निंदित बातों पर विश्वास न करना चाहिये. किसी बात मैं संदेह पड़ जाय तो स्वच्छ मन से कह सुनकर उस्की तत्काल सफ़ाई कर लेनी अच्छी है क्योंकि ऐसे झूंटे, झूंटे वहम संदेह और मनःकल्पित बातों से अबतक हज़ारों घर बिगड़ चुके हैं.,,

"खैर! और बातों मैं आप चाहैं जो कहैं परन्तु इतनी बात तो आप भी अंगीकार करते हैं कि मदनमोहन की और मेरी मित्रता के विषय मैं आप नें मेरे विपरीत चर्चा की बस इतना प्रमाण मेरे कहनें की सचाई प्रगट करनें के लिये बहुत है" हरकिशोर कहनें लगा "आप का यह बरताव केवल मेरे संग नहीं है बल्कि सब संसार के संग है आप सब की नुक्तेचीनी किया करते हैं"

"अब तो तुम अपनी बात को सब संसारके साथ मिलाने लगे परंतु तुम्हारे कहनें सै यह बात अंगीकार नहीं हो सक्ती जो मनुष्य आप जैसा होता है वैसाही सब संसार को समझता है मैंनें अपना कर्तव्य समझकर अपनें मन के सञ्चे, सच्चे विचार तुम सै कह दिए अब उन्को मानों या न मानों तुम्हैं अधिकार है", लाला ब्रजकिशोर नें स्वतन्त्रता से कहा.

"आप सच्ची बात के प्रगट होनैं से कुछ संकोच न करैं सम्बन्धी हो अथवा बिगाना हो जिस्सै अपनी स्वार्थ हानि होती है उस्सै मन मैं अन्तर तो पडही जाता है" हरकिशोर कहने लगा "स्यमन्तक मणि के सन्देह पर श्रीकृष्ण बलदेव जैसे भाईयों मैं भी मन चाल पड़ गई ब्रह्मसभा मैं अपमान होनें पर दक्ष और महादेव (ससुर जँवाई) के बीच भी विरोध हुए बिना न रहा."

"तो यों साफ़ क्यों नहीं कहते कि मेरी तरफ से अबतक तुम्हारे मन मैं वही विचार बन रहे हैं. मुझको कहना था वह कह चुका अब तुम्हारे मन मैं आवे जैसे समझते रहो" लाला ब्रजकिशोर नें बेपरवाई सै कहा.

"चालाक आदमियों की यह तो रीति ही होती है कि वह जैसी हवा देखते हैं वैसी बात करते हैं. अबतक मदनमोहन सै आप की अनबन रहती थी अब मुकदमों का समय आते ही मेल हो गया! अबतक आप मदनमोहन सै मेरी मित्रता छुड़ाने का उपाय करते थे अब मुझको मित्रता रखने के लिये समझाने लगे! सच है बुद्धिमान मनुष्य जो करना होता है वही करता है परन्तु औरों का ओलंभा मिटानें के लिये उन्के सिर मुफ़्‌त का छप्पर ज़रूर धर देता है. अच्छा! आप को लाला मदनमोहन की नई मित्रता के लिये बधाई है और आप के मनोर्थ सफल करनें का उपाय बहुत लोग कर रहे हैं" हरकिशोर नें भरमा भरमी कहा.

"यह तुम क्या बक्ते हो मेरा मनोर्थ क्या है? और मैंने हवा देखकर कौन्सी चाल बदली?" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे, "जैसे नाव मैं बैठने वाले को किनारे के वृक्ष चल्ते दिखाई देते हैं इसी तरह तुम्हारी चाल बदल जाने सै तुमको मेरी चाल मैं अन्तर मालूम पड़ता है. तुम्हारी तबियत को जाचनें के लिये तुमनें पहले सै कुछ नियम स्थिर कर रक्खे होते तो तुमको ऐसी भ्रान्ति कभी न होती मैं ठेठ सै जिस्तरह मदन मोहन को चाहता था, जिस तरह तुमको चाहता था, जिस्तरह तुम दोनों की परस्पर प्रीति चाहता था उसी तरह अब भी चाहता हूं परन्तु तुम्हारी तवियत ठिकानें नहीं है इस्सै तुम को बारबार मेरी चाल पर सन्देह होता है सो ख़ैर! मुझै तो चाहै जैसा समझते रहो परन्तु मदनमोहन के साथ बैर भाव मत रक्खो तुच्छ बातों पर कलह करना अनुचित है और बैरी सै भी बैर बढ़ानें के बदले उस्के अपराध क्षमा करनें मैं बड़ाई मिल्ती है."

जी हां! पृथ्वीराज नें शहाबुद्दीन ग़ोरीको क्षमा करके जैसी बड़ाई पाई थी वह सब को प्रगट है" हरकिशोर ने कहा.

"आगे की हानि का सन्देह मिटे पीछे पहले के अपराध क्षमा करनें चाहियें परन्तु पृथ्वीराज नें ऐसा नहीं किया था इसी सै धोका खाया और—"

"बस, बस यहीं रहने दीजिये. मेरा मतलब निकल आया आप अपनें मुख से ऐसी दशा मैं क्षमा करना अनुचित बता चुके उस्सै आगै सुन्कर मैं क्या करूंगा?" यह कह कर हरकिशोर, ब्रजकिशोर के बुलाते, बुलाते उठ कर चला गया.

और ब्रजकिशोर भी इनही बातों के सोच बिचार मैं वहां सै उठ कर पलंगपर जा लेटे.


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    • अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति॥

    नायंलोको स्तिनपरो नमुर्ख संशयात्मनः॥