दृश्य-दर्शन  (1928) 
महावीर प्रसाद द्विवेदी

कलकत्ता: सुलभ ग्रंथ प्रचारक मंडल, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – भूमिका तक

 

रंगमहल-रहस्य

(ऐतिहासिक उपन्यास)

(मुग़ल बादशाहोंके अन्तःपुरके गुप्त रहस्य)

जगद्विख्यात मुग़ल सम्राट अकबरको शासन व्यवस्था,शरा अग्रवानीके नशेमें मस्तः शाहजादियोंको विलास-लीला,शाहजादा सलीम ( शाहंशाह जहाँगीर) की प्रम-लिप्सा,भारतको उस समयकी राजधानी आगगके गुण्डोंको नृशंसता,महाराज बीरवलकी शासन-चातुरी आदि का सजीव वर्णन पढ़कर दङ्ग रह जाइएगा। इतिहास और उपन्यस का ऐसा अदभुत मेल और कहीं मिलना असम्भव है। पृष्ठ संख्या ७०० तिनरंगा कवर मुख्य ४।।) महसूल अलंग।

मिलनेका पता—
बीसवीं सदी पुस्तक लय,
गऊघाट, मिर्ज़ापुर सिटी ( यू॰ पी॰ )

दृश्य-दर्शन




लेखक

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी





सुलभ-ग्रन्थ प्रचारक मण्डल,

३६, शंकरघाष लेन, कलकत्ता।

प्रकाशक
सुलम-अन्य प्रचारक मण्डल,
३६, शंकरघोंष लेन,
कलकत्ता।





मूल्य १)

सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रथम संस्करण






मुद्रक

महादेवप्रसाद सेठ,

बालकृष्ण प्रेस,

कलकत्ता।

नगरों की सैर जरूर ही करना चाहिए। अपने देश के कितने ही

तीर्थ-स्थान और कितने ही ऐतिहासिक स्थल ऐसे हैं जिनका सम्बन्ध अपने धर्म और अपनी पुरानी प्रभुता से बहुत घना है। उनके दर्शन करना और उनके सम्बन्ध की ऐतिहासिक बातें जानना हम लोगों के लिए अन्य अनेक दृष्टियों से तो लाभदायक है ही, पुण्य वर्धक भी है। जो लोग किसी कारण से अपने देश के भी प्रसिद्ध स्थानों की यात्रा करने में समर्थ नहीं उन्हें, यदि वे अपनी भाषा हिन्दी पढ़ सकते हैं तो,ऐसे स्थानों के वर्णन से पूर्ण पुस्तके ही पढ़कर अपनी ज्ञानोन्नति करना अपना कर्तव्य समझना चाहिए।

इसी उद्देश की सिद्धि के लिए अपने देश के कुछ प्रसिद्ध स्थानों, नगरों और राज्यों के सम्बन्ध में लिखे गये लेखों का यह संग्रह प्रकाशित किया जाता है। इन लेखों में से केवल एक लेख का सम्बन्ध अपने देश से नहीं । वह देश है बलगारिया। वह कृषि प्रधान है और कितने ही विषयों में अपने देश,भारत,से विशेष समता रखता है। तत्सम्बन्धी वर्णन से हम बहुत कुछ शिक्षा लाभ भी कर सकते हैं। इसी से उसपर लिखा गया लेख भी इस पुस्तक में सम्मिलित कर दिया गया है। तिबत और नेपाल ये दोनों देश बहुत कुछ भारत ही की सभ्यता और उसी के धर्म से अनुस्पूत हुए हैं। इसीसे उनके सम्बन्ध के भी लेख इसमें रख दिये गये हैं।

दौलतपुर (रायबरेली) महावीरप्रसाद द्विवेदी
१० मई १९२८

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