तुलसी चौरा/६
उसे कमली इस रूप में बेहद खूबसूरत लग रही थी। इतनी कि मन हुआ उसे अपने सीने से लगा ले। पर चुप ही रहा।
अम्मा भी उसे बहुत प्यार करती हैं। कमली तो जान भी दे सकती है। पर वह कतई नहीं चाहता कि अम्मा और कमली के बीच में हल्का सा मनमुटाव भी हो। कमली का मन तो फूल सा कोमल है। उसको सौजन्यता किसी भी समस्या को सुलझा सकेगी, इसका पूरा विश्वास उसे था। उसकी सारी चिंता अम्मा को लेकर थी। पुरुष दूधमुँहे उम्र से केवल एक ही स्त्री से प्यार करता है, यह होती है माँ। युवावस्था में वह प्रेम दूसरी युवती का हो जाता है। लिहाजा माँ के भीतर की ईर्ष्या उस नवागत युवती के लिए होती है। रवि को लगा, माँ के गुस्से का कारण कहीं यह स्वाभाविक ईर्ष्या तो नहीं? हालाँकि अभी तक आधिकारिक तौर पर भावी बहू के रूप में उसका परिचय नहीं करवाया गया है। अम्मा को संदेह है!
स्नान के बाद शुद्ध कपड़ों में ही भीतर प्रवेश की अनुमति है।
कालेज के दिनों में रवि अक्सर अम्मा को छेड़ा करता था, 'घर पर ही मंदिर प्रवेश संघर्ष समिति बनानी होगी, अम्मा।'
पता नहीं अम्मा कमली से क्या का कह दें। वह स्वयं भी कमली के लिये बाहर ही खड़ा रहा। कमली की तंगी बाहों को अम्मा और बाऊ दोनों ने ही घूर कर देखा। अम्मा ने तो मुँह भी बिचका दिया। अच्छा हुआ कमली पारू से बातों में लगी थी, ध्यान नहीं दिया।
पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद लेकर बाहर बैठक में गए, बसँती लौट आयी थी। बाऊ जी ने ही पहल की थी। 'खाना ऊपर भिजवा दूँ, या यहीं पत्तल बिछा दिया जाए?'
कमली सबके साथ पत्तल में खाते को तैयार थी। परोसने में कामाक्षी का हाथ बँटा कर, सबको खिलाने के बाद खाने की इच्छा थी। पर क्या अम्मा कमली को चौके में घुसने देंगी। रवि और बसंती दोनों ने ही इसमें फेर बदल कर दिया। बोली, 'काका और काकी नीचे खा लेंगे। तुम, कमली, पारू और कुमार ऊपर आराम से बतियाते हुए खाना। आज तो मैं भी यहीं खाऊँगी। बुजुर्गों को तंग करना ठीक नहीं। हम लोग ऊपर ही बैठ लेंगे। बसंती ने स्थिति को संभाल लिया था। शर्मा जी भांप गए। उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। 'ठीक ही तो कह रही है। ऐसा ही करो।' शर्मा जी कुछ और नहीं कह पाये। रवि कमली को लेकर ऊपर चला गया।
बसंती, कुमार और पार्वती चौके से खाना ऊपर ले जाने लगे। उनके ऊपर आने के पहले जो थोड़ा वक्त हाथ लगा था रवि ने कमली को दो तीन बातें बता दी। कुमार और पारू को अपने हाथ से घड़ी देने को कहा। अम्मा की परम्परावादिता, कट्टरपन को साफ शब्दों में न बताकर प्रकारान्तर से बोला, 'कुछ भी हो, उसे आराम से लेना। पुरातन पंथी गाँव है यह। लोग भी कट्टर और हठधर्मी हैं। यहाँ मैनर्स जैसी बातों की अपेक्षा नहीं की जा सकती।'
'आप जो मुझे यूं बताकर, अनुरोध सा कर रहे हैं, यही अटपटा लगता है, बस।' कमली हँस दी।
कमली ने परोसने में उत्साह दिखाया। दो पापड़ उसके हाथों से फूट गए, तो बसंती ने उसे बिठा दिया। 'तुम बैठ जाओ। आदत पड़ जाएगी, फिर यह काम करना।
खाने से निपट कर रवि थकान से चूर सोने चला गया।
कुमार और पार्वती को बुलाकर उनकी घड़ियाँ दे दीं। बसंती को सेंट की बोतल पकड़ाती बोली, 'बसंती, यदि रोज एक टोकरी भर चमेली के फूलों का वादा करो, तो ये तमाम इत्र सड़क पर फेंक दूं।'
चमेली को गूंथने की कला को देखकर कमली आश्चर्थ में पड़ गयी। गूंथने की तेजी देखकर बह हैरान रह गयी।
हम लोग जिन कामों के लिए मशीनों की मदद लेते हैं, भारतीय स्त्रियाँ उन्हें अपने कोमल हाथों से करती हैं। ऐसा लगता है, प्रत्येक स्त्री कलाओं की देवी रही होगी। कामाक्षी काकी; यानी कि तुम्हारी सासू और फुर्ती से फूल गूंथती हैं। रंगीली बनाना, फूल गूंथना, गिट्टियाँ खेलना, पल्लांगुषि खेलना, अम्मानै खेलना, कौड़ियाँ खेलना, खाना बनाना―काकी हर काम में माहिर हैं। गाना भी खूब गाती हैं। बसंती ने कहा।
'यह अम्मानै क्या है?' कमली ने पूछा।
बसंती ने पारू से वहफार पीतल की गोलियाँ मँगवाई। नीबू के आकार की गोलियों से खेला जाने वाला यह खेल, बसंती ठीक से खेल नहीं पाती थी। आदत जो नहीं थी। बसंती को उसी क्षण लगा कि वह खुद शहरी सभ्यता में अपनी जमीन से जुड़ी चीजों को भूलती जा रही है। तीन गोलियों को लगातार ऊपर फेंक एक हाथ से उन्हें लोक भी नहीं पायी।' तुम रुको कमली, मैं काकी को बुला लाती हूँ। वह तो पाँच गोलियाँ लगातार लोकती हैं। बसंती नीचे उतर गयी।
काकी चौके की चौखट के पास ही पटरे पर सिर रखे लेटी हुई थी। बसंती ने धीमे से झाँक कर देखा। कहीं सी तो नहीं गयी। न, जगी हुई थी।
'तूने अम्मानै सँगवाये थे! कुछ और चाहिये?' काकी स्वयं उठ बैठी।
थके हुए चेहरे में भी कितना तेज था! बसंती उन्हें देखती रही। मानो मह रही हो कि वह इस घर की गृह लक्ष्मी है, अन्न पूर्ण है। गंभीर तेज, तप से निखरा शरीर, ऋषि पत्नी की तरह लग रही थों वे।
बसंती को भय था, कहीं काकी निष्ठुरता से उसके प्रस्ताव को ठुकरा न दें।
'हमारी पारंपरिक कलाएँ, गीत, खेल, हमारे रीति रिवाजों को देखने समझने की खूब जिज्ञासा है कमली में! काकी, आप अम्मानै खेलकर दिखाएँगी? मुझसे तो बना नहीं।' 'उसने तो बाँह उखाड़ने वाला ब्लाउज पहन रखा है, री।'
'अगर उसे पता चल जाए कि आपको यह अच्छा नहीं लगा, तो अगले ही क्षण उसे उतार फेंकेगी। आपके प्रति इतनी श्रद्धा है उसके मन में।'
'मैं कौन होती हूँ री उसकी, कि मेरे प्रति श्रद्धा रखे। यहाँ ठहर गयी है, इसलिये कहना पड़ रहा है। मठ के उत्तराधिकारी के धर कोई फिरंगिन नंग धड़ंग धूमे तो लोग हमारे बारे में क्या कहेंगे?'
मैं उसे समझा दूँगी, काकी? फिलहाल आप ऊपर चलिए न!'
बसंती अपना वाक्य खत्म करे इससे ही कामाक्षी का तीखा स्वर उसे काट गया।
'मैं ऊपर नहीं आती। उसे देखना है, तो नीचे आ जाए। यही खेल कर दिखा दूँगी।'
'अभी आयी, काकी!' बसंती ऊपर लपकी। इतना ही हो गया तो बहुत समझो।
उसे लगा, काकी में सुबह वाली निष्ठुरता उतनी नहीं रही। चेहरे का कसाव अब कुछ ढीला पड़ गया था। पार्वती ने बताया था कि कमली की दी हुई घड़ियों की अम्मा ने तारीफ की थी। बसंती इस खिंचाव को अपने ढंग से कम करना चाहती थी। काकी की तारीफ कमली से और कमली की प्रशंसा काकी से कर, वह चाहती थी कि दोनों एक दूसरे के प्रति रुचि लें।
ऊपर पहुँच कर बसँती ने सबसे पहले कमली का बिना बाहों बाला ब्लाउज बदलवा दिया।
'कमली, हम लोग नीचे ही चलते हैं। काकी नहीं बुला रही हैं। शी ईज ए स्ट्रैंज ट्रेडिशन लिस्ट...!'
'बीइंग ट्रेडिशनलिस्ट ईज नाट एट आलं ए क्राइम...। 'बसंती' चलो चलें।' कैमरा और कैसेट रिकार्डर लेकर नीचे चलने को तैयार हो
गयी। भारतीयता, भारतीय रीति रिवाज, आचार अनुष्ठान के संबंध में जब भी उसे क्षमा माँगनी पड़ी है बसंती को लगा कमली का उत्तर तटस्थ और एक सा ही रहता है। यह अपने को इन परंपराओं के अनुरूप ढालने को तैयार है, पर यह कलई नहीं चाहती कि परंपराओं को उसके लिए छोड़ दिया जाए या उनमें कोई ढील दी जाए। दूसरों की संस्कृति को दी जाने वाली यह इज्जत कमली के निजी स्वभाव का अंश था और बसंती को उसका यह स्वभाव बहुत अच्छा लगा। उसे लगा यह गहन अध्ययन और ज्ञान का ही परिणाम हो सकता है। मन जब तक परिपक्व नहीं होता, तब तक दूसरों की भाषा, सभ्यता, संस्कृति के प्रति यह उदार दृष्टिकोण नहीं पनप सकता। 'कल्चरल ईगो' यानी कि सांस्कृतिक अहं ही तो है, कि पूरे विश्व में भाषाई, क्षेत्रीय झगड़े पनपने रहते हैं। इन झगड़ों से बचने का सर्वश्रेष्ठ तरीका यही हो सकता है कि दूसरों की सभ्यता और संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखा जाए। कमली की यह कोमलता, यह संवेदनशीलता बसंती को अच्छी लगी। मन की परिपक्वता और गंभीरता एक सुन्दर स्त्री को और अधिक सुन्दर बना डालती है। कमली और बसंती जब नीचे आयी, दोपहर हो चुकी थी। अम्मा के लोकगीतों में या अम्मानै के खेल में नयापन कुछ नहीं था, पर कमली ने जिस उत्साह के साथ उन्हें कैश करने के लिये कैमरे और कैसेट का उपयोग किया, कुमार और पारु को भी उसमें आनंद आने लगा।
कासाक्षी ने आराम से अम्मानै खेल कर दिखाया। पहले तीन गोलियों से फिर पाँच।
मधुर स्वर में प्रचलित लोक गीत गाकर सुनाया।
'हल्की सी हँसी सजाये होठों पर सखि री,
सुन्दरी, सजी धजी, गहनों से आयी सखि री,
शिव की तपस्या भंग करने चली आयी वह सखि री, कुंकुम का टीका लगाए, कलश से स्तनों वाली है वह सखि री,
बहतीपमाली, शिव को जया चली पथ पर, सखि री।'
काकी अनायास ही अपनी री में गाती जा रही थी। लगा, खेल में ध्यान को केन्द्रित करने के लिये ये लोकगीत गढ़े गये है। कमली ने गीन को रिकार्ड में कद कर लिया मानाने कमरे से चित्र भी लिये। गांव का चौका, गाँव के लेज, आँचलिक गीत······।
'इन खेलों से जुड़े कई लोकगीत है, कमनी, यह गीत पार्वती पर लिखा गया है, बालासर में यह लोकगीतों का अंग बन गया और गाँव की जिंदगी में जुड़ गया। कुछ लोकगीतों में तो इतने खुले वर्णन मिलेंगे कि बस······।'
'हो सकता है, कि ऐसे असाधारण खेनों में ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए ही इन लोकगीतों को गढ़ा गया हो। कई बार जंगल के रास्ते अकं गुजरने वाला पधिक अपने को उत्साहित करने के लिए ही सही, कभी कुछ गुनगुनाता है, कभी सीटी बजाता है। अपने लिये एक काल्पनिक सहयात्री को परिकल्पना जैसा कुछ। लोकगीतों से संबंधित शोध में यही पाया गया है! आगीतों की मौखिक परम्परा है। यदि उनका अनगढ़पन वा कच्चापन का अश्लीलता निवाल दें, तो फिर ये मिट्टी से जुड़े गीत हो ही नहीं सकते।'
'पर यहां तो ऐसे भी स्वयं भू विद्वान हैं, जो इन्हें वैयाकरणिक शुद्धता प्रदान करने लगे हैं।'
'यह राजनीतिज्ञों द्वारा दी जाने वाली नयाँ उपसंरकृति है, बसंती। साधारण साधारण बातों को बढ़ाचढ़ाकर प्रस्तुत करना और पान- विक रूप में अदाधारक बालों को खन्न होने देना । यह साजिश है।'
बसंती को लगा कि जिस बात की चर्चा के लिये ही दीन बार सौ गृपठों की जयधो में एक ही काश्य में कमली ने सफलता से कह डाला है। स्थानोत्तर भारत की इन एक कार ने संपूर्ण का परिभाषित कर दिया है। कमली ने एक-एक कर सभी बातें जानभारी लो :
उस गोरी युवती को तमिल में बातें करते देख काकाजी को आश्चर्य होने लगा। काकाजी ने पुरी जिंदगी में कभी अपनी को नहीं बुना था। बसंती के कलाक्षी को बुम करने के लिहाज में टेकिर चला दिया जा : कमली के कान में फुसफुसाई, 'दूर ही रखना इस कार को इसमा कबर बनने का है। चमड़ा छु जाए तो कार सवार कर।'
काकी शरमाई भी अपने ही भाएं मीनों को सुन रही थी। कमली, एक छात्रा बोलर हाथ बांधेनु मात्र से उनके चेहरे को निहार रही थी। कैसी मोहक मुना थी, उसकी आखों में
सड़क पर कार के समाने आज आयी। अगले ही क्षण बेगु काका का स्वर और धारपर लेटे मंदिर शमी का स्वर भी सुनाई दिया।
'बाऊ जी, पडोसाले हाँय गए थे। अभोनीटे है। शायद!' बसंती बाहर चली गयी।
'क्यों पसंती? बाह्य और आंतरिक मामले कैसे हैं। कोई इंप्रूवमेंट?'
बसंनो आशय समर गयी।
'आऊजी' कल्चरल ज' का काम चल रहा है। काको ने अम्मान का गोत माया, कमला ने इसे रिकार्ड कर लिया और दुवारा काकी को सुनका की। काकी को अच्छा लग रहा है, कि विदेशी युवती इन बातों से तचि ले रही है। पर···।'
पर क्या?
'कमल और राव के संबंधों की बात: यदि वे जान जाएँ तो पता. नहीं उनका साथै या नहीं।'
'रिश्तों को सुनियाद हैं, पारस्परिक दिवानाबही डिप्लोमेसी हैं।' बेणुकामा मुस्कराये। 'जल्दबाजी में सीधे-सीधे कुछ मत कह बैठना बिटिया। काकी को अपने भ्रम में ही कुछ दिन जी लेने दो वरना घर में कलह मच जाएगा। वह अपने आप बात को समझे यही उचित है। उसे बात को समझने में जितना वक्त लगेगा, हमें इनों दिनों तक तो शांति मिलेगी!' पार्मा जी ने कहा।
वेणुकाका और बसंती ने रवि और कमली के रिश्ते को ले कर जिस सहजता से बातचीत की शर्मा जी उसे उसी सहजता से नहीं ले पाये। पता नहीं कितनी शंकाएं――चिताएँ उन्हें घेरने लगी थीं।
उस रात रवि और कमली को अपने घर रात्रि भोजन के लिए वेणुकाका ने बुलवा लिया।
'आप भी आइए न!' वेणुकाका ने शर्मा जी को भी आमंत्रित किया। उन्होंने औपचारिकतावश ही बुलाया था। वे जानते थे शर्मा जी आने से रहे।
'आप क्या हैं? एस्टेट के मालिक हैं। अपने दोस्तों को बुला- येंगे। शहरी सभ्य लोग होंगे। मैं तो कर्मकांडी ब्राह्मण हूँ। हमें छोड़िए। रवि और कमली को बुलाना ही उचित है उन्हें ले जाइवे! हमारे प्रतिनिधि के रूप में कुमार और पारू को भिजवा दूँगा।'
रवि अभी तक सो रहा था। वेणुकाका रुके रहे, कि वह जगे तो उससे भी कह दें।
तभी सड़क पर चाँदी की मूठ वाली छड़ी लिए राजसी चाल में चार किसानों के साथ एक व्यक्ति आते दिखे। जरीदार धोती और उत्तरीय, माथे पर चंदन का टीका, मुँह में पान!
'क्यों शर्मा, सुना है तुम्हारा बेटा आया है?' पान की पीक थूकते हुए बोले।
'हाँ। आइए सीमावय्यर जी!' 'शर्मा जी उठकर खड़े हो गये।
पर वेणुकाका न उठे, न अभिवादन ही किया। उनका चेहरा घृणा
से विकृत हो गया। उनके भाव से लगा शर्मा का अभिवादन करना भी उन्हें अच्छा नहीं लगा।
'नहीं, जरा जल्दी में हूँ। फिर आऊँगा।' वेणुकाका को यहाँ बैठे देखकर सीमावय्यर कतरा कर निकल गए!
'चोर है, पक्का। पता नहीं किस जमीन के झगड़े को उकसाने गया है।' वेणुका का बड़बड़ाए। शर्मा जी ने बात अनसुनी कर दी।
रवि के उठते ही, उसे भी रात्रि भोज के लिए आमंत्रित किया और बसंती को लेकर तैयारियों के लिए घर चले गये।
रात्रि भोज में लगभग दस बीस लोग थे। कमली ही आकर्षण का केन्द्र रही। अधिकांश लोग एल्टेट के मालिक थे।
कमली के सामने बैठे बेणुकाका के मित्र शारंगपाणि नायडू के माथे के तिलक को देखकर कमली भाप गयी कि वे वैष्णव हैं। अत: उनसे अण्टाक्षर मंत्र और रामानुज के बारे में पूछने लगी।
नायडू उसे समझा नहीं सके। लिहाजा पैरिस के नाइट क्लब के बारे में पूछने लगे। अष्टाक्षर मंत्र के बारे में जानकारी की इच्छुक विदेशी युवती और नाइट क्लबों के बारे में उत्सुक दक्षिण भारतीय अधेड़ बैष्णव के बीच इस विरोधाभास का आनन्द रवि ले रहा था।
श्रीमठ के शंकरमंगलम उत्तराधिकारी पं॰ विश्मेश्वर शर्मा के प्रमुख कार्यों में एक कार्य, मठ की जमीन को बटाई पर उठाना भी हैं। उस शाम पट्टेदारों की बैठक बुलाई गई है। इसी बैठक में या अगली बैठक में बटाई तय करनी होगी। अक्सर पश्चिमी पहाड़ी में जब बारिस शुरू होने लगती है, बटाई की बात तय कर ली जाती है।
रवि के आने की हड़बड़ी में शर्मा जी इस बैठक की बात भूल ही गए थे।
रवि, कमली के साथ जब पार्वती और कुमार जाने लगे, श्री... मठ के कारिन्दे ने आकर उन्हें याद दिला दिया। मठ को डाक भी दे गया। बैठक का ध्यान आते ही शर्मा जी को सीमावय्यर की याद आ गयी।
आज चार किसानों को लिये वे जिस तरह जा रहे थे, निश्चित रूप से बैठक से इसका कोई न कोई संबंध होगा। सीमावय्यर बिना किसी काम के यूं भीड़ लगाकर नहीं चलते।
गांवों में इस तरह को बैठकें अमूमन रात आठ बजे शुरू होती हैं, और रात दस ग्यारह तक चलती हैं। किसानों को इसी वक्त फुर्सत मिलती है। शंकरमंगलम में शतप्रतिशत खेतिहर लोगों की आबादी है। बादल धोखा भले ही दे दें, अगत्स्य नदी के तटवर्ती क्षेत्र की जमीन उर्वरा है। मठ की सम्पत्ति के बाग बगीचे, दो तीन गौशालायें, विवाह मंडप, मकान, खाली जमीन, सभी इसी गांव में ही तो थे।
दो तीन वर्ष पहले तक शर्मा जी केवल धार्मिक कार्यों की देख रेख किया करते थे। बटाई की आमदनी, मकान, विवाहमंडप के किराये, उनका हिसाब किताब सब सीमावय्यर के जिम्मे था। काफी घपला होने लगा, शिकायतें भी पहुँची, लिहाजा वह जिम्मेदारी भी शर्मा जी पर आ गयी।
शर्मा जी सीमावय्यर से बैर मोल लेना नहीं चाहते थे। पर कोई दूसरा रास्ता नहीं था। आचार्य ने स्वयं शर्मा जी को बुलवाकर उन्हें इस उत्तरदायित्व को सम्हालने का आदेश दिया। शर्मा से 'न' करते नहीं बना। इसके बाद शर्मा जी और सीमावय्यर के बीच एक दूरी आ गयी। औपचारिकतावश दोनों मिलते थे, पर सीमावय्यर के भीतर आग लगी हुई थी।
ईमानदार व्यक्ति बेईमान और कपटी को एकबारगी क्षमा भी कर देगा पर बेईमान व्यक्ति कतई एक ईमानदार को सहन नहीं कर