तुलसी चौरा/१६
करें। शायद यही लिखा है। फिर दान देने वालों का नाम उसके नीचे धर्मकर्ता के हस्ताक्षर हैं।’
‘उसे ले आना, याद से।’
‘सुनो, यह लम्बा तो नहीं खिंचेगा। ऐसा न हो कि विवाह की तैयारियाँ न हो पायें।’
‘न मुझे नहीं लगता। उन लोगों ने इसमें जल्दबाजी की है। चूँकि मंदिर के भ्रष्ट होने और उसके शुद्धीकरण का मामला है इसलिये जल्दी ही कार्यवाही करने की इच्छा प्रकट की है, उन्होंने। इसलिये केस की सुनवाई भी जल्दी होगी।’
कमली के शंकरमंगलम आने के दिन से लेकर, आज तक की सारे घटनाओं तत्संबंधी गवाहों की एक सूची तैयार कर ली। वे लोग, जो उनके काम आ सकते थे, उन लोगों को कहलवा भेजा।
मंदिर के पुजारियों से मिलना तय हुआ। वेणुकाका ने कमली को बुलबा कर कहा, ‘उन लोगों से यहाँ बात करूँगा। जब वे लोग आएँगे, तुम इसी बैठक में कैसेट रिकार्ड आन कर देना और दीया जलाकर श्लोक पढ़ती रहना। या तो चुप हो जाना या उठ कर चली जाना।’
शाम, पुजारी वेणुकाका से मिलने आए। काका बैठक के झूले पर बैठे थे। पास ही में एक ऊँची चौकी पर दीपदान प्रज्वलित किया गया था। चौकी के नीचे कैसेट रिकार्डर था।
‘ओंकार पूविके देवी। बीणा पुस्तक धारिणी। वेदमादः नमस्तु- भ्यम अवैतप्यप्रयच्छ मे।’
कमली ने श्लोक को गुनगुनाया। पुजारीगण भीतर आए तो वेणुकाका और कमली ने उठकर उनका स्वागत किया।
काका ने एक-एक को प्यार से बुलाकर बेंच पर बिठा दिया। उनके कुछ कहने के पहले ही बे लोग बोले।’ 'यह साक्षात् महालक्ष्मी लगती है। अभी जब यह श्लोक उच्चारण कर रही थी तो मुझे लगा सरस्वती देवी ही यहाँ आ गयी हैं। और हमें इनके खिलाफ कोर्ट में बयान देने को मजबूर किया जा रहा है।'
'अब ऐसा क्या कर दिया है मंदिर में। कौन करवा रहा है यह सब?'
'इसने क्या गलत किया। ऐसा तो सोचना ही पाप है। हमारे और आस्तिकों के तुलना में इन्होंने तो मन्दिर के नियम की पूरी रक्षा की है।'
'अब यही बात आप कोर्ट में आकर बताएँगे?'
'अब वहाँ क्या बताऊँगा, नहीं जानता। पर यह सच है। रोजी रोटी के लिये सीमावय्यर जैसा रटाएगा वैना तो कहना होगा।'
आप हमें गलत नहीं समझें। वे लोग हमें तंग कर रहे हैं। हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है।
'बड़े पुजारी दुखी हो रहे थे। शेष दोनों से कुछ सवाल किए और उनके उत्तर भी मिले। फिर बातचीत की दिशा बदल दी।
'हमने आप लोगों को इसलिए नहीं बुलवाया था। यह तीन ब्राह्मणों को वस्त्र धान करना चाहती थी।' वेणुकाका ने कमली को बुलबाया। उसने तीन थालों में―फल, पान, सुपारी और धोती, उत्तरीय का एक सेट उन्हें भेंट में दिया और उनको प्रणाम किया। उन लोगों ने उसे आशीर्वाद दिया। उनके जाने के बाद केसँट को चलाकर देखा। सारा संवाद दर्ज हो गया था। इसी तरह बाकी लोगों से भी बातचीत कर डाली।
सुनवाई का दिन आ ही गया। उस दिन कचहरी में भीड़ थी, अखबारों ने खूब विज्ञापित कर डाला था।
'प्रतिपक्ष के वकील ने सवाल किया, 'आपने कमली को अपने घर
मेहमान के तौर पर ठहराया और शंकरमंगलम के आस पास के हिन्दू मन्दिरों के दर्शन करवाये। क्या यह सच है?'
शर्मा ने स्वीकार किया। कमली को शपथ लेने के लिए बाइबिल दिया गया।
पर उसने गीता मंगवा कर उसे छूकर शपथ लिया।
'आपने हिन्दू मंदिरों के दर्शन किए हैं, सच है।'
कमली ने कहा 'हाँ'।
'इसका मतलब दोनों ने ही अपनी गलती मान ली तो आगे सुन- वाई क्या की जाए। अब तो भी लार्ड बस संप्रेक्षण के लिये कोई रास्ता सुझा दिया जाए।'
तब वेणुकाका कमली और शर्मा जी के वकील की हैसियत से हर वाद का खंडन किया।
सब ज़ज ने उन्हें अपना पक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति दी।
'कमली जैसी विदेशी युवती को अपने घर ठहराने तथा उसे मन्दिरों के दर्शन करवाने में कानून क्या गलत है।'
'कमली, विदेशी ही नहीं, वह दूसरे धर्म की है।'
मुझे इस पर एतराज है। कमली दूसरे धर्म की नहीं, उसने कई वर्षों से हिंदू धर्म और हिन्दू संस्कृति को अपना रखा है।
बेणुकाका के इतना कहते ही, प्रतिपक्ष के वकील ने इस बात की पुष्टि के लिए साक्ष्य की मांग की।
वेणुकाका ने साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति मांगनी चाही। सबसे पहले शंकरमंगलम सेंट एन्टोनी चर्च के पादरी को बुलवाया गया। पादरी ने बताया कि इस युवती को कभी भी चर्च में आते नहीं देखा। उल्टे इसे साड़ी पहने और कुंकुम का टीका लगाए शिवालयों में देखा है। प्रतिपक्ष के वकील ने पादरी से कुछ सवाल करने चाहे, पर असफल रहे।
इसके बाद रवि ने गवाही दी। फ्रांस के विश्वविद्यालय में किस
तरह भारतीय दर्शन के प्रोफेसर की हैसियत से वह कमली से मिला और छात्र के रूप में कमली को भारतीय संस्कृति से कितनी रुचि रही―यह सारी बातें बतायी। इसके बाद अखबार वाला कनैया, फूल वाला माली पंडारम, फलवाला बरदन―सभी ने एकमत से कमली
की आस्था की तारीफ की!
एस्टेक्ट के मालिक सारंगपाणि नायडू ने अपनी गवाही में बताया कि किस तरह उसने पहली मुलाकात अष्टाक्षर मन्त्र की विशद चर्चा की। उनकी धारणा थी की क्रमली अपने व्यवहार में पूर्ण रूप से हिन्दू धर्म के प्रति समर्पित है।
प्रतिपक्ष के वकील ने रोककर पूछा, आप कहते हैं कि अष्टाक्षर मन्त्र का अर्थ आप से पूछा था। तो इससे क्या यह नहीं साबित होता कि उसे इस बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी।'
'ऐसा तो मैंने नहीं कहा। उसने मन्त्र की व्याख्या की और यह जानना चाहा कि मैं इस बारे में क्या जानता हूँ।' नायडू बोले। कोर्ट में हँसी फैल गयी।
कमली के भरत नाट्यम के गुरु, कर्नाट संगीत के गुरु ने भी अपनी गवाही में बताया कि उसने उन्हें गुरु का पूरा सम्मान दिया। उसके नियम अनुष्ठानों की प्रशंसा की। उनके अनुसार आम हिन्दुओं की तुलना में उसमें श्रद्धाभाव अधिक है। वह नृत्य यहाँ संगीत सिखने आती है? बाहर ही चप्पल उतार दिया करती है। हाथ पाँव धोकर पूजा घर में मत्था टेककर ही वह पाठ शुरू करती है।
अंतिम साक्ष्य इरैमुडिमणि का था। उन्होंने गीता की सौगन्ध के बजाय, आत्मा की सौगन्ध ली। प्रतिपक्ष के वकील ने ऐसे नास्तिक के साक्ष्य को बेईमानी करार दिया। पर न्यायाधीश का विचार था कि उन्हें अपनी बात कहने की स्वतन्त्रता है। 'हिन्दू संस्कृति के इन तमाम साक्ष्यों से अधिक हिन्दुत्व इस कमली में है।'
हमारे संगठन में जब वह भाषण देने आयी थी, उसने सर्वप्रथम ईश्वर की स्तुति की। उसके बाद ही अपना भाषण प्रारम्भ किया।
वकील बीच में कुछ नहीं पूछ पाए। वेणुकाका ने पूरे मुद्दे को ढंग से रखा और उन्हें समझाते हुए अपना तर्क प्रस्तुत किया।
'हिन्दू आचार अनुष्ठानों को या मन्दिर की पवित्रता को हमारे मुवक्किल से कोई खतरा नहीं है। यह मात्र दर्शन लिए श्रद्धालु की तरह गयी थी। यह पूरा केस उन्हें बदनाम करने की नियत से तैयार किया गया है। यहाँ कानूनन् कुछ भी गलत नहीं हुआ हैं। शुद्धीकरण की कोई भी आवश्यकता नहीं है।
कल और आज भी उन्हीं मन्दिरों में पूजा, भजन बाकायदे किये जा रहे हैं यदि ऐसा कुछ हुआ होता और मन्दिर भ्रष्ट हो गया होता तो इसे तो श्रद्धालुभक्तों के लिए बन्द कर दिया जाना चाहिए था। पर ऐसा नहीं किया गया।
प्रतिपक्ष के वकील ने कुछ कहना चाहा। पर न्यायाधीश ने उसे नहीं माना और काका को आगे कहने का आदेश दिया।
'फिर मेरे मुवक्किल ने इन मन्दिरों, संस्थाओं इनसे जुड़े लोगों के
समक्ष अपने को श्रद्धालु साबित किया है। यह रसीद देखिए। शिव
मन्दिर के पुननिर्माण के लिए आस्तिक हिन्दुओं से ली जाने वाली
रसीद है। यह इसमें मन्दिर के धर्माधिकारी के हस्ताक्षर भी हैं। यह
कैसा विरोधाभास है, कि इस मुकदमें को दायर करने वालों में यह
धर्माधिकारी भी हैं। यदि मेरे मुवक्किल को मन्दिर में प्रवेश करने की
योग्यता नहीं है तो अर्द्धमण्डप तक उन्हें प्रवेश की अनुमति देना फिर
उन्हें पाँच सौ रुपये की रसीद भी देना……यह सब क्या है। फिर
इस रसीद में देखिये ऊपर क्या लिखा है। हिन्दू आस्तिकों से मन्दिर
के लिए उनसे चन्दे की रसीद। जहाँ मतलब पैसे का हो वहाँ आपने उन्हें हिन्दू आस्तिक मान लिया पर जब बात दर्शन की आयी तो
आपके लिए ये विधर्मी हो गए। यह कैसा अन्याय है? यहाँ अदालत
को यह सूचित कर देना चाहता हूँ कि मेरी मुवक्किल जब मन्दिरदर्शनार्थ गयी थी तब उन्होंने यह दान मन्दिर के निर्माण के लिए दिया था। तब धर्माधिकारी को मन्दिर की पवित्रता भंग होने का विचार क्यों नहीं आया? इतने दिनों के बाद अगर आया है, तो क्या इसके पीछे कोई वजह नहीं हो सकती?
प्रतिपक्ष के वकील ने फिर कुछ कहना चाहा। पर न्यायाधीश ने वेणुकाका को बोलने की अनुमति दी।
बेणुकाका ने अपना पूरा पक्ष प्रस्तुत किया, रसीद भी न्यायाधीश के पास रख दी और बैठ गये। अगले दिन बहस के लिए अदालत स्थगित कर दी गयी।
इस मुकदमें की कार्यवाही को देखने के लिए भूमिनाथपुरम शंकर- मंगलम से कई लोग आए और अदालत से बाहर निकलने पर सभी को पत्रकारों ने घेर लिया और धड़ा-धड़ फोटो खींचने लगे। कई वकीलों ने बेणुकाका की तारीफ की।
सीमावय्यर भी प्रेक्षकों की भीड़ में थे। वहाँ से खिसकने लगे।
'विश्वेश्वर देखो, सब कुछ कर दिया और पानी के सांप की तरह कैसे निकल भागे।' इरैमुडिमणि ने―शर्मा के कानों में कहा। 'पानी का सांप।'
अव सीमावय्यर नम पड़ गया था। कचहरी से लौटते रास्ते में मण्डी में रुकवाकर बेणूकाका ने विवाह के लिए सब्जी वाले को पेशगी दी, तो शर्मा जी ने धीमे से कहा, 'अब केस पहले निपट जाए।'
'केस की चिंता तुम मत करो।' वेणुकाका ने शर्मा को उत्साह से हिलाया।
उनका आत्म विश्वास, साहस और उत्साह, शर्मा के लिए नहीं
बाकी लोगों के लिए भी आश्चर्य का विषय था।
अगले दिन की सुनवाई के दौरान जब प्रतिपक्ष के वकील ने इस मुकदमें की खासियत को मद्देनजर रखते हुए कुछ और साक्ष्यों को प्रस्तुत करने की अनुमति चाही, तो वेणुकाका ने इस पर आपत्ति की। पर न्यायाधीश ने उसकी अनुमति देते हुए कहा, 'उनके गवाहों से आप भी प्रश्न कर सकते हैं तब फिर आप चिंता क्यों करते हैं।
वेणुकाका को हल्का सा आभास हो गया था कि वे किन्हें गवाह के रूप में प्रस्तुत करेंगे। उनको कुछ विश्वास था कि वे अपने तर्कों के बल पर उससे निपट लेंगे।
मुकदमें की कार्यवाही देखने के लिए शर्मा, कमली, रवि, बसंती भी कोर्ट में हाजिर थे। भीड़ पिछले दिन से कुछ ज्यादा ही थी।
पहला गवाह इस तरह प्रस्तुत किया गया था जो कि यह साबित कर सके, कि कमली हिन्दू धार्मिक रिवाजों से अनभिज्ञ है।
शिवमन्दिर के मुख्य द्वार के चौकीदार मुत्तूवेलप्पन ने गवाही दी कि दो तीन माह पहले कमली चप्पल पहने ही मन्दिर के भीतर प्रवेश कर गयी। साफ लगा कि वह जानबूझकर तैयार की गयी गवाही है। वेणुकाका ने अपने प्रश्न किए घटना से सम्बन्धित दिन समय सबकी जानकारी माँगी। उसने उत्तर दिया तो बोले। 'दर्शन के वक्त ये अकेली थी कि साथ में कोई और था।'
'न अकेली थी।'
'तो तुमने अपना कार्य पूरा किया या नहीं। उन्हें रोका क्यों नहीं?'
'मैंने तो रोका था! पर ये मानी नहीं।'
किस भाषा में रोका था? और उन्होंने किस भाषा में उत्तर दिया।'
मैंने तोतमिल में कहा था। इन्होंने पता नहीं किस भाषा में उत्तर दिया।
'उनकी भाषा तुम्हारी समझ में नहीं आयी, तो तुम कैसे कह
सकते हो, कि उन्होंने इन्कार किया था।'
'नहीं... वह तमिल में बोली थी।
'पहले तो तुमने बताया कि जाने किस भाषा में बोली थी, और अब कह रहे हो, कि तमिल में बोली है। अब इसमें सच क्या है?'
वे बौखला गये। उत्तर देते नहीं बना। वेणुकाका जाकर अपनी जगह पर बैठ गए। अगले गवाहों से शिव मन्दिर के पुजारी एक-एक कर आए। पहले गवाह थे कैलाश नाथ उम्र कुल अट्ठावन वर्ष, बुजुर्ग। शिवागम का पूर्ण ज्ञान है उन्हें।
गवाह के रूप में उन्होंने, शपथ ली तो शर्मा और वेणुकाका को बेहद तकलीफ हुई, इतने विद्वान व्यक्ति किस तरह झूठी गवाही के लिए तैयार हो गये हैं।
'वह लड़की, हमारे रिवाजों को नहीं जानती ऊपर से उन पर विश्वास भी नहीं करती। मैंने उसे भभूत और बेल पत्र दिये थे उन्होंने पैरों के नीचे उसे डाल कर रौंद दिया।'
वेणुकाका तुरंत बोले, 'पुजारी जी आप यह मन से कह रहे हैं, या किसी के भड़काने पर?'
प्रतिपक्ष के वकील ने इस पर एतराज किया। उनके वाद दो पुजारियों ने लगभग ऐसी ही गवाही दी, कि उसने परिक्रमा गलत ढंग से की। मन्दिर के नियमों का पालन नहीं किया।
'उस वक्त वे अकेली थीं या कोई और था। किस तारीख को किस वक्त यह घटना घटी थी।' बेणुकाका ने तीनों से यही सवाल किया।
तीनों ने एक ही तारीख और समय बताया। और कमली के अकेले ही आने की बात दोहराई।
वेणुकाका सबसे एक सवाल क्यों किए जा रहे हैं। यह प्रतिपक्ष
का वकील समझ नहीं पाया। इसके बाद के गवाहियों में भजन मद
वाले पद्मनाभ अय्यर, बेदधर्म परिपालन सभा के सचिव, हरिहर
गनपाडी, सरपंच मातृभूत्भ, जमींदार स्वामीनाथ। तीनों ने ही एक
बात कही। मन्दिर के दूसरे प्राकार मैं―रति मिथुन मूर्ति के नीचे रवि
और कमली भी उसी मुद्रा में एक दूसरे से लिपटे चूम रहे थे। इसे
दर्शनार्थियों ने भी देखा। ऐसी गन्दी हरकत, वह भी मन्दिर की परि-
कमा में करने वाले को सजा मिलनी चाहिये। कुछ और लोगों ने भी
इसी घटना का हवाला दिया, इसे सुनकर कमली, रवि, शर्मा और
बसंती का खून खौलने लगा। वेणुकाका शांत बने रहे और मुस्कुराते
हुए अपनी जिरह प्रारम्भ की फिर वही सवाल किया।
'यह मिथुन मूर्ति किस प्राकार में है?' किस दिन और किस तारीख को यह घटना घटी थी?'
'यह मूर्ति दुसरी परिक्रमा के उत्तरी कोने पर है।' पर वह दिन और समय का उल्लेख नहीं कर पाये।
तुरन्त वेणुकाका ने कहा, 'चौकीदार ने चप्पल वाली जिस घटना का उल्लेख किया है, उसी तारीख को यह घटना या उसके किसी और तारीख को।'
'उसी दिन की यह घटना घटी थी।' तीनों गवाहों ने यह बात दोहराई। अन्तिम गवाही धर्माधिकारी की थी। मन्दिर के लिये कमली द्वारा दिया गया चन्दा, कमली ने स्वयं नहीं दिया, बल्कि उसके नाम पर किसी और ने वह रसीद बनवा ली। ये मान गये कि हस्ताक्षर उनके हैं। वेणुकाका ने तुरन्त कहा, 'क्या यह नियम नहीं बनाया गया था कि दस पांच के बन्दे के अलावा सो या उसके ऊपर के चन्दे की वसूली मन्दिर के भीतर देवालय के दफ्तर में होगी।'
धर्माधिकारी सकपका भये। समझ नहीं पाये कि यह नियम इन्हें कैसे मालूम हो गया। क्योंकि समिति की एक निजी बैठक में यह निर्णय लिया गया। उनकी गवाही झूठी पड़ गयी। साबित हो गया कि कमली के नाम पर बाहर यह धन्दा नहीं जमा किया गया।
तमाम गवाहों को देणुकाका ने झूठा साबित कर दिया। 'अदालत से निवेदन करता हूँ कि पुजारियों ने यहाँ, जो भी गवाही दी है, वह झूठी है, इसको प्रमाणित करने के लिये मैं यह कैसेट चलाता हूँ।' वेणुकाका ने कैसेट आन किया। अदालत ने उसे ध्यान से सुना।
वेणुकाका ने दुबारा उसे चलाया। कमली का श्लोक पाठ और तुरन्त वाद संवाद―यह तो साक्षात् महालक्ष्मी लगती है। अभी जब यह श्लोक उच्चारण कर रही थी मुझे लगा सरस्वती देवी ही यहाँ आ गयी हैं। और हमें इनके खिलाफ कोर्ट में गवाही देने को मजबूर किया जा रहा है।
'हमारे और आस्तिकों की तुलना में इन्होंने मन्दिर के नियमों की पूरी रक्षा की है।'
'कोर्ट में क्या कहूँगा कह नहीं सकता। पर यह सच है। सब जज ने इसे ध्यान से सुना, कुछ नोट किया तीनोंपु जारी हकबका गये!'
'यह आप की ही आवाज है।' काका ने पूछा।
'मेरे घर आप लोगों ने स्वयं आकर बातचीत चलायी थी। क्या यह सच नहीं है।'
वे लोग इन्कार नहीं कर सके।
'विपक्ष के वकील ने लाख समझाने की कोशिश की कि यह इन पुजारियों को धमका कर लिया गया बयान हो सकता है। पर न्याया- धीश नहीं माने। टेप रिकार्डर वाले प्रकरण ने तीनों पुजारियों को चुपा दिया था।
…यहाँ तक कि गवाहों ने भी इसकी अपेक्षा की थी प्रतिपक्ष के वकील का रहा सहा विश्वास भी खत्म हो गया था।
इसके बाद वेणुकाका ने बताया कि उनके मुवक्किल ने फ्रेंच में सौन्दर्य लहरी, कनकधारा स्तोत्र, भजगोबिंदम् का अनुवाद किया है। इसके लिए हिन्दू धर्म चर्चा को प्रशंसा भी प्राप्त ही है इस सम्बन्ध में मठ के मैनेजर का पत्र भी उन्होंने दिखाया।