तिलिस्माती मुँदरी
श्रीधर पाठक

इलाहाबाद: पंडित गिरिधर पाठक, पृष्ठ ६२ से – ६७ तक

 

अध्याय ९

इस तरह वह कई दिनों तक सफ़र करते रहे ओर अख़ीर को कश्मीर से एक रोज़ के रास्ते पर पहुंचे। यहां फ़ौज ठहर गई और रानी मय अपने तमाम दरबारियों के, अपनी फ़तहयाब फ़ौज को लेने के लिये और यह देखने के लिये कि लूट में क्या क्या माल आया है, आई। फ़ौज बड़ी सज धज के साथ खड़ी की गई और रुपये, अशर्फियां, सोने चांदी के जेवर, जवाहिरात, कीमती रेशमी कपड़े, शाल दुशाले, खूबसूरत घोड़े और लौंडी गुलाम जो लूट में आये थे सिपह-सालार के ख़ेमे के सामने नुमाइश के वास्ते बड़े ठाट बाट से सजाये गये। यह नुमाइश बड़ी शानदार थी। रानी एक हाथी पर जिस पर बेशकीमती सुनहली झूल पड़ी हुई थी एक सोने के हौदे में बैठी हुई थी, उसके दरबारी और मुसाहिब उसके पीछे घोड़ों पर सवार थे, उनके पोछे पलटनों की कतारें थीं। जब वह उस जगह के सामने पहुंची जहां लौंडी और गुलाम
लाइन में खड़े किये गये थे, उसकी नज़र राजा की लड़की पर पड़ी; उसे देखते ही वह चौंक पड़ी, और उसका चिहरा पीला पड़ गया। बब्बू हौदे में उसके पीछे बैठा हुआ था; उसकी तरफ मुड़ कर रानी ने उसके कान में कुछ कहा और राजा की लड़की की तरफ़ इशारा किया। पहले तो वह हैरत में आ गया, लेकिन चंद लमहों के बाद हाथी से उतर कर सिपहसालार के पास गया, और उससे बोला कि "लौंडियों में एक को रानी साहिबा ने बहुत पसंद किया है और उसे वह अपनी ख़िदमत में रखना चाहती हैं-उसे वह साथ ले जायेंगी। बाकी को लूट के असबाब के साथ बेच देना चाहिये ताकि लड़ाई का खर्च पूरा हो सके”। बब्बू तब सीधा राजा को लड़की के पास गया-लड़की ख़ौफ़ से कांप रही थी क्योंकि वह जान गई थी कि रानी ने उसे पहचान लिया है। बब्बू ने उस की बांह पकड़ कर उसे अपने साथियों के हवाले किया और हुक्म दिया कि उसे अपने साथ रक्खें। लेकिन उस वक्त एक अजब नज़ारा नज़र आया।

बहुत ऊपर आस्मान में एक झुंड पहाड़ी उक़ाबों का जो चोल की शकल के होते हैं उड़ता हुआ पा रहा था। उस झुंड के बीच में एक काली सी कोई बड़ो चीज़ थी। वह तेजी से उस मैदान के ऊपर आ पहुंचा जहां कि फ़ौज और रानी वगैरह थीं। नज़दीक आने पर देखा गया कि उन चिड़ियों के चक्कर के दर्मियान एक आदमी एक किस्म की पीढ़ी पर बैठा हुआ है, पीढ़ी लम्बे पतले बांसों और रस्सियों से जिनको कि उकाब अपने पंजों में पकड़े हुए हैं लटक रही है। जो आदमी कि पीढ़ी पर बैठा था बुड्ढा था और फ़क़ीर का लिबास पहने हुए था। चिड़ियों को जो हुक्म वह देता था वह उसे बिला तअम्मुल बजा लाने को मुस्तइद नज़र आती

थीं। वह योगी अपनी जगह पर उकाबों के साथ अधर में कुछ देर तक मंडलाता रहा-लोग तअज्जुब में डूबे हुए उसकी तरफ़ एक टक चुपचाप देख रहे थे कि यकायक बुलन्द आवाज़ से वह बोल उठा-"ऐ सिपहसालार, मेरे मुलाज़िम वफ़ादार, मुरार सिंह-ऊपर नज़र कर और देख अपने पुराने आक़ा को। मैं जानता हूं कि जिस वक्त और सब मुझ से सरकश और बेवफ़ा हो गये थे और मैं अपने राज से निकाल दिया गया था, तू उस वक्त भी मेरा सच्चा वफ़ादार था और मेरी शिकस्त उस वक्त सिर्फ़ तेरी गैरमौजूदगी से हुई थी। मुझ को यह भी मालूम है कि मेरा राज दबा लेने वाले की मुलाज़िमत तैने तब तक इख़ियार नहीं की थी जब तक कि मैं कश्मीर छोड़ कर योग साधन करने के लिये गंगोत्री की तरफ़ नहीं चला गया था। मैं चाहता हूं कि तू अपने पुराने मालिक का हुक्म मान और उसे इस बद औरत का जो कि मेरी गद्दी को बेइज्ज़त कर रही है मुक़ाबिला करने में मदद दे"। पहले तो सिपहसालार ने उसे सिर्फ़ ख़याली सूरत या ख़्वाबी शकल समझा, मगर जब उसने अपने पुराने महाराज को आवाज़ और सूरत से पहचान लिया, फ़ौरन अपनी तलवार मियान से खींच ली और ऊंची आवाज़ से कहने लगा-"सिपाहियो, हमारे पुराने महाराज आज बैकुंठ से हमारे पास वापस आये हैं। वह सिपाही जो मेरी और उनकी तरफ़ हों अपने अपने हाथ उठावें"। सारी सिपाह एक आवाज़ से ज़ोर से कहने लगी-"महाराज की जय!" और हर एक सिपाही जोश में आकर अपने हथियारों को घुमाने लगा। बब्बू उस वक्त रानी के पास को दौड़ा और झट-पट हाथी पर अपनी जगह में पहुंच फ़ीलवान को हुक्म दिया कि "जितना तेज़ हो सके शहर को चलो"। फ़ीलवान ने हाथी

दौड़ाया और रानी और बब्बू भाग गये होते लेकिन सिपह-सालार ने कुछ सवारों को उनका पीछा करने का हुक्म दिया। सवार बहुत जल्द उनके पास पहुंच गये और तीरन्दाज़ों ने फ़ीलवान की तरफ़ तीर खींच कर उससे कहा कि "रुक जाओ, वरना तीर तुम पर छोड़ दिये जायंगे"। फ़ीलवान ने देखा कि भागना फुजूल होगा इस लिये हाथी को रोक दिया। उसके बाद रिसाला वहां पर आ पहुंचा और बब्बू और रानी दोनों कैद कर लिये गये।

महाराज तब लौंडी गुलामों की तरफ़ मुखातिब हो कर पूछने लगे “मेरी प्यारी दोहती कहां है?" उसी वक्त राजा की लड़की उनके पैरों पर आकर गिर पड़ी। उन्होंने उसे उठा कर छाती से लगा लिया और बोसे लिये, फिर उसे अपने साथ हाथी पर सवार करा कर ले जाने की तैयारी की, लेकिन लड़की ने अर्ज़ की कि "मेरी मुसीबत की साथन और दोस्त दयादेई को भी ले चलिये" पस वह भी बैठा ली गई और कश्मीर के बुड्ढे महाराज अपनी फ़ौज के साथ अपनी पुरानी राजधानी पर क़ाबिज होने के लिए आगे बढ़े। तोता राजा की लड़की के बाजू पर बैठा हुआ शहर के लोगों की जयकार पर बड़ी खूबी के साथ सिर झुकाता जाता था, कौए दोनों खुशी से भरे हुए ऊपर उड़ते चलते थे। वह राज-महल के बाग़ में अपने पुराने बसेरे को चले गये। और उकाबों का गिरोह, अपनो ड्यूटी अदा करके अपने पहाड़ी मुक़ामो को रवाना हुआ।

राजा की लड़की ने महलों में पहुंचते ही पहला काम जो किया यह था कि अपने नाना से अर्ज़ की कि दयादेई की मां और बाप को कि जिन्हों ने उस के साथ ऐसा नेकी का सलूक किया था लाहौर से बुलवा लिया जाय। पस यह बुलवा

लिये गये और उन्हें महलों के पास एक उमदा मकान रहने। के लिये दे दिया गया ताकि राजा की लड़की दयादेई से रोज़ मिल सके और दोनों अपना बहुत सा वक्त एक दूसरी की लुहबत में बिता सकें। अपने पुराने मददगार मिहर्बान बुड्ढे माहीगीर को-भी वह नहीं भूली-उसे उसने महाराज से सिफ़ारिश करके राजघराने की कश्तियों का दारोग़ा बनवा दिया।

लेकिन सब से ज़ियादा तारीफ़ का काम जो राजा की लड़की ने किया यह था कि अपने नाना से कह कर उन सब लड़कियों और लड़कों को जो लौंडी और गुलाम के तौर पर लाहौर से लाये गये थे फिर लाहौर को वापस भिजवा दिया। कश्मीर की रानी को कि जिसकी शरारत से उस लड़की को इतनी मुसीबतें उठानी पड़ी थीं राज के कानून से उसकी बुरी हरकतों के वास्ते फांसी की सजा मिलनी चाहिये थी लेकिन राजकुमारी ने इतनी सख्त सज़ा उसको न होने दी, उसे सिर्फ़ जनम कैद दी गयी और राजधानी से बहुत दूर एक पुराने किले में आराम के साथ उसके रहने का बन्दोबस्त करा दिया गया, और उसका लड़का संस्कृत का इल्म हासिला करने के लिये बनारस भेज दिया गया। बब्बू की भी जान बख़्श दी गयी-लेकिन वह कश्मीर से निकाल दिया गया।

महाराज अपनी दीहती के शादी के लायक होने तक कश्मीर में राज करते रहे। जब वह १८ बरस की हुई उसकी शादी लाहौर के राजा के बड़े लड़के से कर दी गयी। जब से राजकुमारी की सिफ़ारिश से वह लौंडी गुलाम जिन्हें लाहौर से कश्मीर की रानी की फ़ौज पकड़ लाई थी फिर लाहौर को भेज दिये गये थे तब से लाहौर के राजा और कश्मीर के महाराज में बड़ी दोस्ती पैदा हो गयी थी, और लाहौर का

बड़ा राजकुमार जो कभी २ कश्मीर आकर महाराज के यहां रहा करता था महाराज को बहुत पसन्द। आ गया था-वह हर बात में लायक था। महाराज ने उसको अपनी दोहती से शादी के काबिल हर सूरत से समझा। इस लिये उसी के साथ उस राजकुमारी को ब्याह दिया और दूसरा कोई वारिस न होने से उसी को अपना सारा राज दे दिया।

बाद इसके महाराज फिर योग-साधन करने के लिये गंगोत्री को चले गये।




इति