[ २६ ]


सुनहली सीख

सैकड़ों ही कपूत-काया से ।
है भली एक सपूत की छाया ॥
हो पड़ी चूर खोपड़ी ने हो ।
अनगिनत बाल पाल क्या पाया ॥

जो भला है और चलता है सँभल ।
है भला उस को किसी से कौन डर ॥
दैव की टेढ़ी अगर भौहें न हो ।
क्या करेंगे लोग टेढ़ी भौह कर ॥

नेकियों मानते नही बी ।
क्यों उन्ही के लिये न बिख चख लें ॥
वे न तब भी पलक उठायेंगे ।
हम पलक पर अगर ललक रख लें ॥

बढ़ सके तो सदा रहें बढ़ते ।
पर बुरी राह में कभी न बढ़े ॥
चढ़ सकें तो चढ़े किसी चित पर ।
हम किसी की निगाह पर न चढ़े ॥

[ २७ ]


है बहू बेटियाँ जहाँ रहती ।
है दिखाती कलक लीक वही ॥
क्यों न हो झोक ही जवानी की ।
है कभी ताक झाँक ठीक नहीं ॥

क्यों टका सा जवाब उस को दें।
जिस किसी से सदा टके ऐंठे ॥
जो रहें ताकते हमारा मुँह ।
हम उन्ही की न ताक में बैठे ॥

बात ताने की, किसी के भैब की ।
कह न ढे मुंह पर, बचे या चुप रहें ॥
बात सच है, जल मरेगा वह मगर ।
लोग काना को अगर काना कहे ॥

काम मत आप कीजिये ऐसे ।
जो कभी आप को बुरे फल दें ॥
हाथ में लग न जाय मल उस का ।
नाक को बार बार मत मल दें ॥

[ २८ ]


जो सके बोल बोलियाँ प्यारी ।
तो उसे बोल डालना अच्छा ॥
कान में तेल डाल लेने से ।
कान का खाल ‘डालना अच्छा ॥

छोड़ दो छेड़ छाड़ की आदत ।
मत जगा दो अदावते सोई ॥
है बहुत खोदना बुरा होता ।
देख ले कान खोद कर कोई ॥

तब तमाचा न किस तरह लगता ।
आग जब बेलगामपन बोता ॥
हो रहे जब कि लाल पीले थे ।
तब भला क्यों न लाल मुँह होता ॥

है अगर चाहते कुफल चखना ।
तो बुरी चाहते जगा देखे ॥
मुंह लगाना अगर भला है तो ।
क्यों लहू को न मुँह लगा देखें ॥

[ २९ ]


काम मे ला खुला निघरघटपन ।
नाम मरदानगी मिटाना है ॥
बेबसों को लपेट चित पट कर ।
पालना पेट मुँह • पिटाना है ॥

सुन जिसे कोई नही पा कल सके ।
बात ऐसी क्यों निकल मुंह से पड़े ॥
रगतें हित की न जब उन मे रही ।
फूल मुँह से तब झड़े तो क्या झड़े ॥

खुल सकेगा तो नही ताला कभी ।
जो भली रुचि की मिली ताली नही ॥
पान को लाली न लाली रखेगी ।
रह सको मुंह की अगर लाली नही ॥

बेतरह वे न बेतुके बनते ।
श्री न संजीदगी तुम्ही खोते ॥
यों सुलगती न लाग-आग कभी ।
मुँह-लगे जो न मुंह लगे होते ॥

[ ३० ]


निज भरोसे सधा न क्या स्वाधे ।
और का बल-भरोस है सपना ॥
देखना छोड़ दूसरों का मुँह ।
देखते क्यों रहे न मुंह अपना ॥

काम ले बार बार धीरज से ।
कब न जी को कचट गई खाई ॥
क्यों दुखो की चपेट में आवे ।
क्यों पड़े मुँह लपेट कर कोई ॥

रूप औ रग के लिये ही क्यों ।
जो किसी का ललच ललच डाले ॥
रख भलाई, सँभाल भोलापन ।
भूल पाये न मह भले-भाले ॥

चाह जो हो कि दुख नचा न सके ।
पास से सुब नही हिले डोले ॥
पाँव तो देख भाल कर डाले ।
सह सँभाले, संभाल कर बोले ॥

[ ३१ ]


तष रहे किस लिये भले बनते ।
जब भली बात ही नही सीखी ॥
भूल कर चाहिये नही कहना ।
बात कड़वी, कड़ी, बुरी, तीखी ॥

बात कह कर कसर-मरी ऐंठी ।
हो गई बार बार बरबादी ॥
बेसधा काम साध देती है ।
बात सीधी, सधी हुई, सादी ॥

रस न उन का अमर रहे उन मे ।
तो बनें बोलियां सभी सीठी ॥
है लुभाती भला नही किस को ।
बात प्यारी, लुभावनी, मीठी ॥

है बड़ा ही कमाल कर देती ।
है सुरुचि-भाल के लिये रोली ॥
नीव सारी भलाइयों की है ।
बात सच्ची, जँची, भली, भाली ॥

[ ३२ ]


गोद में उस की बड़े ही लाड़ से ।
है बहुत सी रेंग बिरंगी रुचि पली ॥
ढाल देती है निराले, ढंग में।
बात भड़कीली, ढंगीली, रसढली ॥

धन रतन धुन उन्हें नहीं रहती ।
है नहो मोहने उन्हे मेवे ॥
मानियों का यही मनाना है ।
मान कर बात, मान रख लेवे ॥

हो न भारी सके कभी हलके ।
है न छिपती खुली हुई बातें ॥
तोलने के लिये भला किस को ।
तुल गये कह तुली हुई बातें ॥

है बड़ी बेहूदगी जो काम की।
बात सुनने के लिये बहरे बने ॥
नो किसी गँव की न गहराई रही ।
जो न गहरी बात कह गहरे बने ॥

[ ३३ ]

छेद जिस मे अनेक हैं उस में।
सोच लो पौन का ठिकाना क्या॥
कढ़ गई कढ गई चली न चली।
साँस का है भला ठिकाना क्या॥

याद प्रभु को करें जियें जब तक।
लोक-हित की न बुझ सके प्यासें॥
हम गॅवा में इन्हें नहीं यों ही।
हैं बड़ी हो अमोल ए सॉसें॥

जी सका सब दिनों हवा पी जो।
उस बिचारे के पास ही क्या है॥
किस तरह से सुचित्त हो कोई।
साँस की आस पास ही क्या है॥

जो भले भाव भूल में डालें।
तो उन्हें प्यार साथ पोसा क्या॥
जो भला कर सको तुरत कर लो।
साँस का है भला भरोसा क्या॥

[ ३४ ]


है वही फूला सुखी जो कर सका।
वह न फूला दुख दिया जिस ने सहा॥
फूल जैसा फूल जो पाता नहीं।
दम किसी का फूलता तो क्या रहा॥

मान की चाह है हमे तो हम।
और का मान कर न कम देवें॥
काम साधें कमीनपन न करें।
दाम लेवे मगर न दम देवें॥

धाँधली मे हवा हवस की पड़।
क्यों मचाता अनेक ऊधम है॥
जो रहा राम मे न रमता तो।
दाम दम का छदाम से कम है॥

जो मरम जानते दया का हम।
तो उजड़ता न एक भी खोंता॥
क्यों न होता दुलार दुनिये में।
प्यार का पाठ कठ जो होता॥

[ ३५ ]


मोतियों से पिरो न क्यों देवें।
कब समझदार हो सके संठे॥
लठ के लठ ही रहेंगे वे।
लंठ लें कठ मे, पहन कठे॥

जब किसी का पॉव हे हम चूमते।
हाथ बाँधे सामने जब है खड़े॥
लाख या दो लाख या दस लाख के।
क्या रहे तब कठ मे कठे पड़े॥

क्या हुआ प्यार-पालने में पल।
जो नही है कमाल भेजे में॥
वे रखे जॉय कालिजों में भी।
जो गये है रखे कलेजे मे॥

मन मरे दूर हो अमन जिस से।
सुख पिसे, चूर चूर होने की॥
है बनाती कड़ा नहीं किस को।
वह कड़ाई कड़े कलेजे की॥

[ ३६ ]


तब भला किस तरह भलाई हो।
भर गई भूल जब कि भेजे में॥
तब सके गाँठ हम कहाँ मतलब।
पड़ गई गॉठ, जब कलेजे मे॥

बन पराया मिले परायापन।
कब तपाया हमे नहीं तप ने॥
और के हाथ मे न दिल दे दे।
दिल सदा हाथ में रखें अपने॥

यात उलझी बहॅक बहॅक न कहे।
बात सुलझी सँभल सँभल बोलें॥
पड़ न पावे गिरह किसी दिल।
लें गिरह बाँध दिल गिरह खोलें॥

बेबसी है बरस रही जिस पर।
तीर उस पर न तान कर निकले॥
यह कसर है बहुत बड़ी दिल की।
ससहुए पर, न दिल कसर निकले॥

[ ३७ ]


बीज बो कर बुरे बुरे फल के।
कब भले फल फले फलाने से॥
दुख मिले क्यों न और को दुख दे।
दिल जले क्यों न दिल जलाने से॥

छोड़ दे छल, कपट, छिछोरापन।
देख कर छबि न जाय बन छैला॥
और माल पर न हो मायल।
दिल किसी मैल से न हो मेला॥

वह भरा है भयावनेपन से।
है हलाहल भरा हुआ प्याला॥
साँप काला पला उसी में है।
काल मे है कराल दिल काला॥

मान औरों की न मनमानो करे।
क्यों रहे अभिमान कर हठ ठानता॥
है इसी में मान रहता मान का।
ले मना, जो मन नहीं है मानता॥

[ ३८ ]

और का बार बार दिल दहला।
भूल कर मन न जाय बहलाया॥
तो उमंगें न आस को कुचलें।
मन अगर है उमग पर आया॥

बीज मीठे जाँय क्यों बोये नहीं।
है अगर यह चाह मीठे फल चखें॥
फ्त रखें, जो पत रखाना हो हमें।
चक है मन रख न जो हम मन रखे॥

सूझ कर सूझता नहीं जिन को।
वे उन्हें दूर को सुझाते हैं॥
काम है सूझ बूझ का करते।
पेट को आग जो बुझाते हैं॥

है बड़ा वह जो पराया हित करे।
हित हितू का कोन करता है नहीं॥
है भला वह, पेट जो पर का भरे।
कौन अपना पेट भरता है नहीं॥