चिन्तामणि
के मित्रा,
इंडियन प्रेस, लिमिटेड,
प्रयाग।
मुद्रक:—
श्री अपूर्वकृष्ण बसु
इंडियन प्रेस, लिमिटेड,
बनारस-ब्राञ्च।
निवेदन
इस पुस्तक में मेरी अन्तर्यात्रा में पड़नेवाले कुछ प्रदेश हैं। यात्रा के लिए निकलती रही है बुद्धि, पर हृदय को भी साथ लेकर। अपना रास्ता निकालती हुई बुद्धि जहाँ कहीं मार्मिक या भावाकर्षक स्थलों पर पहुँचती है वहाँ हृदय थोड़ा-बहुत रमता और अपनी प्रवृत्ति के अनुसार कुछ कहता गया है। इस प्रकार यात्रा के श्रम का परिहार होता रहा है। बुद्धिपथ पर हृदय भी अपने लिए कुछ न कुछ पाता रहा है।
बस, इतना ही निवेदन करके इस बात का निर्णय मैं विज्ञ पाठकों पर ही छोड़ता हूँ कि ये निबन्ध विषय-प्रधान है या व्यक्ति प्रधान।
काशी | रामचंद्र शुक्ल |
२-२-१९१९ |
विषय | पृष्ठ | ||
---|---|---|---|
१—भाव या मनोविकार | … | … | १—५ |
२—उत्साह | … | … | ६—१६ |
३—श्रद्धा-भक्ति | … | … | १७—४३ |
४—करुणा | … | … | ४४—५५ |
५—लज्जा और ग्लानि | … | … | ५६—६८ |
६—लोभ और प्रीति | … | … | ६९—९६ |
७—घृणा | … | … | ९७—१०६ |
८—ईर्ष्या | … | … | १०७—१२३ |
९—भय | … | … | १२४—१३० |
१०—क्रोध | … | … | १३१—१४० |
११—कविता क्या है | … | … | १४१—१८६ |
१२—भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | … | … | १८७—१९९ |
१३—तुलसी का भक्ति मार्ग | … | … | २००—२०६ |
१४—'मानस' की धर्म-भूमि | … | … | २०७—२१२ |
१५—काव्य में लोक-मंगल की साधनावस्था | … | … | २१३—२२६ |
१६—साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद | … | … | २२७—२४१ |
१७—रसात्मक बोध के विविध रूप | … | … | २४२—२७१ |
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