चन्द्रकान्ता सन्तति 6/24.5
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कुंअर इन्द्रजीतसिंह इस छोटे-से दरबार से उठकर महल में गये और किशोरी के कमरे में पहुंचे। इस समय कमलिनी भी उसी कमरे में मौजूद किशोरी से हँसी-खुशी की बातें कर रही थीं। कुमार को देखकर दोनों उठ खड़ी हुई और जब हँसते हुए कुमार बैठ गये तो किशोरी भी उनके साथ बैठ गई, मगर कमलिनी कमरे के बाहर की तरफ चल पड़ी। उस समय कुमार ने उसे रोका और कहा, "तुम कहाँ चली ? बैठो-बैठो इतनी जल्दी क्या है ?"
कमलिनी--(बैठती हुई)बहुत अच्छा. बैठती हूँ, मगर क्या आज रात को सोना नहीं है ?
कुमार--क्या यह बात मेरे आने के पहले नहीं सुझी थी?
किशोरी--आपको देखकर सोना याद आ गया।
किशोरी की बात ने दोनों को हँसा दिया और फिर कमलिनी ने कहा
कमलिनी--दिलीपशाह के किस्से ने मेरे दिल पर ऐसा असर किया है कि कह नहीं सकती । देखना चाहिये, दुष्टों को महाराज क्या सजा देते हैं । सच तो यह है कि उनके लिए कोई सजा है ही नहीं।
कुमार--तुम ठीक कहती हो, इस समय मैं महाराज के पास से ही चला आता हूँ, वहाँ एक छोटा-सा निजी दरबार लगा हुआ था और कैदियों के ही विषय में बात-चीत हो रही थी, बल्कि यह कहना चाहिये कि आज उन बदमाशों का फैसला लिखा जा रहा था।
कमलिनी--(उत्कण्ठा से)हाँ ! अच्छा, बताइए तो सही दारोगा और जयपाल के लिए क्या सजा तजवीज की गई ?
कुमार--उन्हें क्या सजा दी जायेगी, इसका निश्चय गोपाल भाई करेंगे, क्योंकि महाराज ने इस समय यही हुक्म लिखाया है कि दारोगा, जयपाल, शिखण्डी, हरनाम, बिहारी, मनोरमा और नागर वगैरह जितने जमानिया और गोपाल भाई से सम्बन्ध रखने वाले कैदी हैं, सब उनके हवाले किये जायें और वे जो कुछ मुनासिब समझें उन्हें सजा दें।
कमलिनी--चलिए, यह भी अच्छा ही हुआ, क्योंकि मुझे इस बात का बहुत बड़ा खयाल बना हुआ था कि हमारे रहम-दिल महाराज इन कैदियों के लिए कोई अच्छी सजा नहीं, तजबीज कर सकेंगे, अगर वे लोग जीजाजी के सुपुर्द किए गए हैं तो उन्हें सजा भी वाजिब ही मिल जायेगी।
कुमार--(हँसकर)अच्छा, तुम ही बताओ कि अगर सजा देने के लिये सब कैदी तुम्हारे सुपुर्द किये जाते तो तुम उन्हें क्या सजा देती ?
कमलिनी–-मैं ?(कुछ सोचकर)मैं पहले तो इन सबके हाथ-पैर कटवा डालती, फिर इनके जख्म आराम करवाकर बड़े-बड़े लोहे के पिंजड़ों में इन्हें बन्द करके और सदर चौमुहानी पर लटकाकर हुक्म देती कि जितने आदमी इस राह से जायें वे सब इनके मुंह पर थूककर तब आगे बढ़े।
कुमार--(मुस्कराकर) सजा तो बहुत अच्छी सोची है । तो बस, अपने जीजा साहब को समझा देना कि उन्हें ऐसी ही सजा दें । कमलिनी–-जरूर कहूँगी, बल्कि इस बात पर जोर भी दूंगी । अब यह बताइए कि नानक के लिए क्या हुक्म हुआ है ?
कुमार--केवल इतना ही, जन्म-भर के लिए कैदखाने भेज दिया जाये । बाकी के और कैदियों के लिए भी यही हुक्म हुआ !
किशोरी–-भीमसेन के लिए भी यही हुक्म हुआ होगा?
कुमार--नहीं, उसके लिए दूसरा ही हुक्म हुआ।
किशोरी--वह क्या?
कुमार--वह तुम्हारा भाई है, इसलिए हुक्म हुआ कि तुमसे पूछकर वह एकदम छोड़ दिया जाये, बल्कि शिवदत्तगढ़ की गद्दी पर बैठा दिया जाये।
किशोरी-—जब उसे छोड़ देने का ही हुक्म हुआ तो मुझसे पूछना कैमा !
कुमार—-यही कि शायद तुम उसे छोड़ना न चाहो, तो कैद में ही रखा जाये।
किशोरी--भला मैं इस बात को कब पसन्द करूंगी कि मेरा भाई जन्म-भर के लिये कैद रहे ? मगर हां, इतना खयाल जरूर है कि कहीं वह छूटने के बाद पुनः आपसे दुश्मनी न करे।
कुमार--खैर, अगर पुनः बदमाशी करेगा तो देखा जायेगा।
कमलिनी--(मुस्कराती हुई) उसके विषय में चपला चाची से पूछना चाहिये,क्योंकि वह असल में उन्हीं का कैदी है । जब सूअर के शिकार में उन्होंने उसे गिरफ्तार किया था, तो तरह-तरह की कसमें खिलाकर छोड़ा था कि भविष्य में पुनः दुश्मनी पर कमर न बांधेगा।
कुमार--बात तो ऐसी ही थी, मगर नहीं अब वह दुश्मनी का बर्ताव न करेगा।(किशोरी से) अगर कहो, तो तुम्हारे पास उसे बुलवाऊँ जो कुछ तुम्हें कहना-सुनना हो, कह सुन लो।
किशोरी--नहीं-नहीं, मैं बाज आई, मैं स्वप्न में भी उससे नहीं मिलना चाहती, जो कुछ उसकी किस्मत में लिखा होगा, सो भोगेगा।
कुमार--आखिर, उसे छोड़ने के विषय में तुमसे पूछा जायेगा, तो क्या जवाब दोगी?
किशोरी-—(कमलिनी की तरफ देखकर और मुस्कराकर) बस, कह दूंगी कि मेरे बदले चपला चाची से पूछ लिया जाये, क्योंकि वह उन्हीं का कैदी है ।
कुमार--खैर, इन बातों को जाने दो। (कमलिनी से) जमानिया तिलिस्म के अन्दर मायारानी और माधवी के मरने का सबब मुझे अभी तक मालूम न हुआ। इसका पता न लगा कि वे दोनों खुद मर गईं, या गोपाल भाई ने उन्हें मार डाला ! और अगर भाई साहब ने ही उन्हें मार डाला तो ऐसा क्यों किया ?
कमलिनी--इसका असल हाल तो मुझे भी मालूम नहीं है, मैंने दो दफे जीजाजी से इस विषय में पूछा था, मगर वह बात टालकर बतोला दे गये ।
1. देखिर चन्द्रकान्ता सन्तति पहला भाग, आठवां बयान । कुमार--मैंने भी एक दफे उनसे पूछा था, तो यह कहकर रह गए कि फिर कभी बता देंगे।
किशोरी-–बहिन लक्ष्मीदेवी को इसका हाल जरूर मालूम होगा।
कमलिनी--उन्हें बेशक मालूम होगा। उन्होंने भुलावा देकर जरूर पूछ लिया होगा । इस समय तो वे अपने रंगमहल में होंगी, नहीं तो मैं जरूर बुला लाती ।
कुमार--नहीं, आज तो अकेली ही अपने कमरे में बैठी होंगी, क्योंकि इस समय गोपाल भाई इन्द्रदेव को साथ लेकर कहीं बाहर गये हैं। मुझसे कह गये हैं कि कल पहर-दिन तक आयेंगे।
कमलिनी--तब तो कहिये मैं जाकर बुला लाऊँ !
कुमार--अच्छा जाओ कमलिनी उठकर चली गई और थोड़ी ही देर में लक्ष्मीदेवी को साथ लिए हुए आ पहुँची।
लक्ष्मी--(मुस्कराती हुई)कहिये क्या है, जो इतनी रात गये मेरी याद आई है ?
कुमार--मैंने सोचा कि आज आप अकेली उदास बैठी होंगी, अतएव मैं ही बुलाकर आपका दिल खुश करूँ।
लक्ष्मी--(हँसकर)क्या बात है ! बेशक आपकी मेहरबानी मुझ पर बहुत ज्यादा रहती है । (बैठकर) यह बताइये कि आप लोगों में किसी तरह की हुज्जत-तकरार तो नहीं हुई है जो मुझे फैसला करने के लिए बुलाया है ?
कुमार--ईश्वर न करे ऐसा हो, हाँ, इतना जरूर है कि माधवी और मायारानी की मौत के विषय में तरह-तरह की बातें हो रही हैं, क्योंकि उन दोनों के मरने का असल हाल तो किसी को मालूम नहीं है और न भाई साहब ने पूछने पर किसी को बताया ही, इसलिए आपको तकलीफ दी है, क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि आपने किसी-न-किसी तरह यह हाल जरूर पूछ लिया होगा।
लक्ष्मी--(मुस्कराकर)बेशक, बात तो ऐसी ही है, मैंने जिद करके किसी-न-किसी तरह उनसे पूछ तो लिया, मगर सुनने से घृणा हो गई। इसीलिए वे भी यह हाल किसी से खुलकर नहीं कहते और समझते हैं कि जो कोई सुनेगा, उसी को घृणा होगी। इसी खयाल से आपको भी उन्होंने टाल दिया होगा।
कुमार-आखिर, उसमें क्या बात है, कुछ भी तो बताओ !
लक्ष्मी--माधवी को तो उन्होंने नहीं मारा, मगर मायारानी को जरूर मारा,और इस बेइज्जती और तकलीफ से मारा कि सुनने से रोंगटे खड़े होते हैं । यद्यपि माधवी को उन्होंने कुछ भी नहीं कहा, मगर मायारानी की मौत की कार्रवाई वह देख न सकी, जो उसके सामने की जाती थी और उसी डर से वह बेहोश होकर मर गई। इसमें कोई ऐसी अनूठी बात नहीं है, जो सुनने लायक हो । मुझे वह हाल बयान करते, भी लज्जा और घृणा होती है, अत:-
कुमार--बस-बस, मैं समझ गया, इससे ज्यादा सुनने की मुझे कोई जरूरत नहीं है, केवल इतना ही जानना था कि उनकी मौत के विषय में कोई अनूठी बात तो नहीं हुई। लक्ष्मी-जी नहीं। अच्छा, यह तो बताइए कि कल कैदी लोगों के विषय में क्या किया जायेगा ? दिलीपशाह का किस्सा तो समाप्त हो गया और अब कोई ऐसी बात मालूम करने के लायक भी नहीं रह गई है।
कुमार-कैदियों का मामला तो कब का साफ हो गया, इस समय तो महाराज ने उनके विषय में हुक्म भी लिखा दिया है, जो कल या परसों तक दरबार में सबको सुना दिया जायेगा।
लक्ष्मी-किस-किसके लिए क्या हुक्म हुआ है ?
इसके जवाब में कुमार ने फैसले का सब हाल बयान किया, जो थोड़ी देर पहले किशोरी और कमलिनी को सुना चुके थे।
लक्ष्मी-बहुत अच्छा फैसला हुआ है।
किशोरी-(हँसकर)क्यों न कहोगी। तुम्हारे दुश्मन तुम्हारे कब्जे में दे दिए गए, अव तो दिल खोलकर बदला लोगी।
लक्ष्मी-बेशक ! (कुमार से) हाँ, यह तो बताइए कि भूतनाथ ने अपनी जीवनी लिखकर दे दी या नहीं?
कुमार-नहीं, आज देने वाला है ।
लक्ष्मी-और हम लोगों को उस तिलिस्मी मकान का तमाशा कब दिखाया जायेगा जिसमें लोग हँसते-हँसते कूद पड़ते हैं ?
कुमार-परसों या कल उसका भेद भी सब पर खुल जायेगा।
लक्ष्मी-अच्छा, यह बताइए कि आपके भाई साहब कहाँ गये हैं ?
किशोरी-(हँसकर, ताने के ढंग पर) आखिर रहा न गया ! पूछे बिना जी नहीं इतने में ही बाहर की तरफ से आवाज आई, "इसमें भी क्या किसी का इजारा है? ये अपनी चीज की खबरदारी करती हैं किसी दूसरे की जमा नहीं छीनती ! बहुत दिनों के बाद जो खोई चीज मिलती है, उसके लिए अकारण पुन: खो जाने का खटका बना ही रहता है, इसलिए अगर उन्होंने पूछा तो बुरा ही क्या किया !" इस आवाज के साथ-ही-साथ कमला पर सबकी निगाह पड़ी, जो मुस्कराती हुई कमरे के अन्दर आ रही थी।
किशोरी-(हँसती हुई)यह आई लक्ष्मीबहिन की तरफदार बीबी नक्को, तुमको यहाँ किसने बुलाया था?
कमला--(मुस्कराती हुई) बुलायेगा कौन ? क्या मेरा रास्ता देखा हुआ नहीं है ? यह बताओ कि तुम लोग इस आधी रात के समय इतना शोर-गुल क्यों मचा रहे हो ?
किशोरी-(मसखरेपन के साथ हाथ जोड़कर) जी, हम लोगों को इस बात की।खबर न थी कि इस शोर-गुल से आपकी नींद उचट जायेगी और फिर सादी चारपाई पर पड़े रहना मुश्किल हो जायेगा।
कुमार--यह कहो कि अकेले जी नहीं लगता, लोगों को खोजती-फिरती हूँ।
कमला--जी हाँ, आप ही को खोज रही थी। कुमार--अच्छा, तो फिर आओ, बैठ जाओ, और समझ लो कि मैं मिल गया।
कमला--(बैठकर किशोरी से) आज तुम्हें कोई आराम न करने देगा। (कुमार से) कहिए, दिलीपशाह का किस्सा तो खत्म हो गया। अब कैदियों को कब सजा दी जायेगी?
कुमार--कैदियों का फैसला हो गया, उसमें किसी को ऐसी सजा नहीं दी गई जो तुम्हारी पसन्द हो।
इतना कहकर कुमार ने पुनः सब हाल बयान किया।
कमला--तो मैं बहिन लक्ष्मीदेवी के साथ जरूर जमानिया जाऊंगी और दारोगा वगैरह की दुर्दशा अपनी आँखों से देखूगी।
थोड़ी देर तक इसी तरह की हँसी-दिल्लगी होती रही, इसके बाद लक्ष्मीदेवी और कमला अपने-अपने ठिकाने चली गई।