चंद्रकांता संतति भाग 4
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ २३६ से – २४१ तक

 

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संध्या होने में अभी दो घण्टे से ज्यादा देर है मगर सूर्य भगवान् पहाड़ की आड़ में हो गए इसलिए उस स्थान में जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला हैं, पूरब की तरफ वाली पहाड़ी के ऊपरी हिस्से के सिवाय और कहीं धूप नहीं है। समय अच्छा और स्थान बहुत ही रमणीक मालूम पड़ता है। भैरोंसिंह एक पेड़ के नीचे बैठे हुए कुछ बना रहे हैं और किशोरी, कामिनी तथा कमला बॅगले से कुछ दूर पर एक पत्थर की चट्टान पर बैठी बातें कर रही हैं।

कमला ने कहा, "बैठे-बैठे जी घबरा गया !"

कामिनी-तो तुम भी भैरोंसिंह के पास जा बैठो और पेड़ की छाल को छील- छीलकर रस्सी बँटो।

कमला- जी मैं ऐसे गन्दे काम नहीं करती। मेरा मतलब यह था कि अगर हुक्म हो तो मैं इस पहाड़ी के बाहर जाकर इधर-उधर की कुछ खबर ले आऊँ या जमानिया में जाकर इसी बात का पता लगाऊँ कि राजा गोपालसिंह के दिल से लक्ष्मीदेवी की मुहब्बत एकदम क्यों जाती रही जो आज तक उस बेचारी को पूछने के लिए एक चिड़िया का बच्चा भी नहीं भेजा।

किशोरी–बहिन, इस बात का तो मुझे भी बड़ा रंज है। मैं सच कहती हूँ कि हम लोगों में से कोई भी ऐसा नहीं है जो उसके दुःख की बराबरी करे। राजा गोपालसिंह की बदौलत उसने जो-जो तकलीफें उठाई, उन्हें सुनने और याद करने से कलेजा काँप जाता है। मगर अफसोस, राजा गोपालसिंह ने उसकी कुछ भी कदर न की।

कामिनी-मुझे सबसे ज्यादा केवल इस बात का ध्यान रहता है कि बेचारी लक्ष्मीदेवी ने जो-जो कष्ट सहे हैं, उन सभी से बढ़कर उसके लिए यह दुःख है कि राजा गोपालसिंह ने पता लग जाने पर भी उसकी कुछ सुध न ली। सब दुःखों को तो वह सह गई मगर यह दुःख उससे सहा न जायेगा। हाय-हाय, गोपालसिंह का भी कैसा पत्थर का कलेजा है !

किशोरी-ऐसी मुसीबत कहीं मुझे सहनी पड़ती तो मैं पल भर भी इस दुनिया में न रहती। क्या जमाने से मुहब्बत एकदम जाती रही? या राजा गोपालसिंह ने लक्ष्मी- देवी में कोई ऐब देख लिया है?

कमला--राम-राम, वह बेचारी ऐसी नहीं है कि किसी ऐब को अपने पास आने दे। देखो, अपनी छोटी बहिन की लौंडी बनकर मुसीबत के दिन उसने किस ढंग से बिताए। मगर उसके पतिव्रत धर्म का नतीजा कुछ भी न निकला।

किशोरी-इस दुःख से बढ़कर दुनिया में कोई भी दुःख नहीं है। (पेड़ पर बैठे हुए एक काले कौए की तरफ इशारा करके) देखो बहिन, यह काग हमीं लोगों की तरफ मुंह करके बार-बार बोल रहा है। (जमीन पर से एक तिनका उठाकर) कहता है कि तुम्हारा कोई प्रेमी यहाँ चला आ रहा है।

कामिनी-(ताज्जुब से) यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ ? क्या कौए की बोली तुम पहचानती हो, या इस तिनके में कुछ लिखा है, या यों ही दिल्लगी करती हो?

किशोरी–मैं दिल्लगी नहीं करती सच कहती हूँ। इसका पहचानना कोई मुश्किल बात नहीं है।

कामिनी--बहिन, मुझे भी बताओ। तुम्हें इसकी तरकीब किसने सिखाई थी?

किशोरी–-मेरी माँ ने मुझे एक श्लोक याद करा दिया था। उसका मतलब यह है कि जब काले कौए (काग) की बोली सुने तो एक बड़ा-सा साफ तिनका जमीन पर से उठा ले और अपनी उँगलियों से नाप के देखे कि कितनी अंगुल का है। जितनी अंगुल हो उसमें तेरह और मिलाकर सात-सात करके जहाँ तक उसमें से निकल सकें और जो कुछ बचे उसका हिसाब लगाये। एक बचे तो लाभ होगा, दो बचे तो नुकसान होगा, तीन बचे तो सुख मिलेगा, चार बचे तो कोई चीज मिलेगी, पाँच बचे तो किसी मित्र का दर्शन होगा, छः बचे तो कलह होगी, सात बचे या यों कहो कि कुछ भी न बचे तो समझो कि अपना या अपने किसी प्रेमी का मरना होगा। बस, इतना ही तो हिसाब है।

कामिनी--तुम तो इतना कह गई, लेकिन मेरी समझ में तो कुछ भी न आया। यह तिनका जो तुमने उँगली से नापा है, इसका हिसाब करके समझा दो, तो समझ जाऊँगी।

किशोरी--अच्छा देखो, यह तिनका जो मैंने नापा था, छह अंगुल का है। इसमें तेरह मिला दिया तो तो कितना हुआ?

कामिनी--उन्नीस हुआ।

किशोरी--अच्छा, इसमें से कितने सात निकल सकते हैं?

कामिनी—(सोचकर) सात और सात चौदह, दो सात निकल गए और पांच बचे! अच्छा, अब मैं समझ गई, तुम अभी कह चुकी हो कि अगर पांच बचे तो किसी मित्र का दर्शन हो। अच्छा, अब वह श्लोक सुना दो क्योंकि श्लोक बड़ी जल्दी याद हो जाया करता है।

किशोरी–सुनो-

काकस्य वचनं श्रुत्वा ग्रहीत्वा तृणमुत्तमम्।
त्रयोदशसमायुक्ता मुनिभिः भागमाचरेत्।।
1 2 3 4 5
लाभं कष्टं महासौख्य भोजनं प्रियदर्शनम्।
6 7
कलहो मरणं चैव काको वदति नान्यथा।

(हँसकर) श्लोक तो अशुद्ध है!

किशोरी-अच्छा-अच्छा, रहने दीजिये, अशुद्ध है तो तुम्हारी बला से, तुम बड़ी पण्डित बनकर आई हो तो अपना शुद्ध करा लेना!

कामिनी—(कमला से)खैर, तुम्हारे कहने से मान लिया जाये कि श्लोक अशुद्ध है मगर उसका मतलब तो अशुद्ध नहीं है।

कमला-नहीं-नहीं, मतलब को कौन अशुद्ध कहता है। मतलब तो ठीक और सच है।

कामिनी-तो बस फिर हो चुका। बीबी, दुनिया में श्लोक की बड़ी कदर होती है, पण्डित लोग अगर कोई झूठी बात भी समझाना चाहते हैं तो झट श्लोक बनाकर पढ़ देते हैं, सुननेवाले को विश्वास हो जाता है, और यह तो वास्तव में सच्चा श्लोक है।

कामिनी ने कहा ही था कि सामने से किसी को आते देख चौंक पड़ी और बोली, "अहा हा, देखो, किशोरी बहिन की बात कैसी सच निकली! लो, कमलारानी देख लो और अपना कान पकड़ो!"

जिस जगह किशोरी, कामिनी और कमला बैठी बातें कर रही थीं उसके सामने की तरफ इस स्थान में आने का रास्ता था। यकायक जिस पर निगाह पड़ने से कामिनी चौंकी वह लक्ष्मीदेवी थी, उसके बाद कमलिनी और लाड़िली दिखाई पड़ी और सबके बाद इन्द्रदेव पर नजर पड़ी।

किशोरी—देखो बहिन, हमारी बात कैसी सच निकली!

कामिनी-बेशक-बेशक!

कमला-कृष्ण जिन्न सच ही कह गये थे कि मैं उन तीनों को भी जल्द ही यहां भिजवा दूंगा।

किशोरी—(खड़ी होकर) चलो, हम लोग आगे चलकर उन्हें ले आवें।

ये तीनों लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाड़िली को देखकर बहुत ही खुश हुईं और वहाँ से उठकर कदम बढ़ाती हुई उनकी तरफ चलीं। वे तीनों बीच वाले मकान के पास पहुँचने न पाई थीं कि ये सब उनके पास जा पहुंची और इन्द्रदेव को प्रणाम करने के बाद आपस में बारी-बारी से एक-दूसरे के गले मिलीं। भैरोंसिंह भी उसी जगह आ पहुंचे और कुशलक्षेम पूछकर बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद सब कोई मिलकर उसी बंगले में आए जिसमें किशोरी, कामिनी और कमला रहती थीं और इन्द्रदेव बीच वाले दोमंजिले मकान में चले गये जिसमें भैरोंसिंह का डेरा था।

यद्यपि वहाँ खिदमत करने के लिए लौंडियों की कमी न थी, तथापि कमला ने अपने हाथ से तरह-तरह की खाने की चीजें तैयार करके सभी को खिलाया-पिलाया और मुहब्बत-भरी हँसी-दिल्लगी की बातों से सभी का दिल बहलाया। रात के समय जब हर एक काम से निश्चिन्त होकर एक कमरे में सब बैठी तो बातचीत होने लगी।

किशोरी--(लक्ष्मीदेवी से)जमाने ने तो हम लोगों को जुदा कर दिया था मगर ईश्वर ने कृपा करके बहुत जल्द मिला दिया।

लक्ष्मीदेवी--हाँ बहिन, इसके लिए मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ। मगर मेरी समझ में अभी तक नहीं आता कि ये कृष्ण जिन्न कौन हैं जिनके हुक्म से कोई भी मुंह नहीं मोड़ता। देखो तुम भी उन्हीं की आज्ञानुसार यहां पहुंचाई गईं और हम लोग भी उन्हीं की आज्ञा से यहाँ लाए गए। जो हो मगर कोई शक नहीं कि कृष्ण जिन्न बहुत ही बुद्धिमान और दूरदर्शी हैं। यह सुनकर हम लोगों को बड़ी खुशी हुई कि कृष्ण जिन्न की चालाकियों ने तुम लोगों की जान बचा ली।

कामिनी--यह खबर तुम्हें कब मिली?

लक्ष्मीदेवी--इन्द्रदेवजी जमानिया गये थे। उसी जगह कृष्ण जिन्न की चिट्ठी पहुँची जिससे सब हाल मालूम हुआ और उसी चिट्ठी के मुताबिक हम लोग यहाँ पहुँचाये गए।

किशोरी--जमानिया गये थे ! राजा गोपालसिंह ने बुलाया होगा?

लक्ष्मीदेवी--(ऊंची साँस लेकर)वे क्यों बुलाने लगे? उन्हें क्या गर्ज पड़ी थी ? हाँ, हमारे पिता का पता लगाने गए थे, सो वहाँ जाने पर कृष्ण जिन्न की चिट्ठी ही से यह भी मालूम हुआ कि भूतनाथ उन्हें छुड़ाकर चुनारगढ़ ले गया। ईश्वर उसका खूब भला करे, भूतनाथ बात का धनी निकला।

किशोरी–-(खुश होकर)भूतनाथ ने यह बहुत बड़ा काम किया। फिर भी उसके मुकदमे में बड़ी उलझन निकलेगी।

कामिनी--इसमें क्या शक है?

किशोरी--अच्छा तो जमानिया में जाने से और भी किसी का हाल मालूम हुआ?

कमलिनी–-हाँ, दोनों कुमारों से दूर से मुलाकात और बातचीत हुई क्योंकि वे तिलिस्म तोड़ने की कार्रवाई कर रहे थे, और वहीं इन्द्रदेव ने अपनी लड़की इन्दिरा को पाया और अपनी स्त्री सरयू को भी देखा।

किशोरी–-(चौंककर और खुश होकर) यह बड़ा काम हुआ ! वे दोनों इतने दिनों तक कहाँ और कैसे मिलीं?

लक्ष्मीदेवी-–वे दोनों तिलिस्म में फंसी हुई थीं, दोनों कुमारों की बदौलत उनकी जान बची।

इस जगह लक्ष्मीदेवी ने सरयू और इन्दिरा का किस्सा पूरा-पूरा बयान किया जिसे सुनकर वे तीनों बहुत प्रसन्न हुईं और कमला ने कहा, "विश्वासघातियों और दुष्टों के लिए उस समय जमानिया वैकुण्ठ हो रहा था!"

लक्ष्मीदेवी--तभी तो मुझे ऐसे-ऐसे दुःख भोगने पड़े जिनसे अभी तक छुटकारा नहीं मिला, मगर मैं नहीं कह सकती कि अब मेरी क्या गति होगी और मुझे क्या करना होगा।

किशोरी--क्या जमानिया में इन्द्रदेव से राजा गोपालसिंह ने तुम्हारे विषय में कोई बातचीत नहीं की?

लक्ष्मीदेवी--कुछ भी नहीं, सिर्फ इतना कहा कि तुम उन तीनों बहिनों को कृष्ण जिन्न की आज्ञानुसार वहाँ पहुँचा दो जहाँ किशोरी, कामिनी और कमला हैं, वहाँ स्वयं कृष्ण जिन्न जाएंगे, उसी समय जो कुछ वे कहेंगे सो करना। शायद कृष्ण जिन्न उन सभी को यहाँ ले आवें।

कामिनी--(हाथ मलकर) बस ! लक्ष्मीदेवी--बस, और कुछ भी नहीं पूछा और न इन्द्रदेवजी ही ने कुछ कहा, क्योंकि उन्हें भी इस बात का रंज है।

किशोरी--रंज तो होना ही चाहिए जो भी सुनेगा। उसी को इसका रंज होगा। वे तो बेचारे तुम्हारे पिता ही के बराबर ठहरे, क्यों न रंज करेंगे ! (कमलिनी से) तुम तो अपने जीजाजी के मिजाज की बड़ी तारीफ करती थीं!

कमलिनी-–बेशक वे तारीफ के ही लायक हैं, मगर इस मामले में तो मैं आप हैरान हो रही हूँ कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ! उनके सामने ही दोनों कुमारों ने बड़े शौक से तुम लोगों का हाल इन्द्रदेव से पूछा और सभी को जमानिया में बुला लेने के लिए कहा, मगर उस पर भी राजा साहब ने हमारी दुखिया बहिन को याद न किया, आशा है कि कल तक कृष्ण जिन्न भी यहाँ आ जायेंगे, देखें, वह क्या करते हैं!

लक्ष्मीदेवी--करेंगे क्या, अगर वह मुझे जमानिया चलने के लिए कहेंगे भी तो मैं इस बेइज्जती के साथ जाने वाली नहीं हूँ। जब मेरा मालिक मुझे पूछता ही नहीं तो मैं कौन सा मुंह लेकर उसके पास जाऊँ और किस सुख के लिए या किस आशा पर इस शरीर को रखू!

कमला--नहीं-नहीं, तुम्हें इतना रंज नहीं करना चाहिए...

कामिनी--(बात काटकर)रंज क्यों न करना चाहिए ! भला इससे बढ़कर भी कोई रंज दुनिया में है ! जिसके सबब से और जिसके खयाल से इस बेचारी ने इतने दुःख भोगे और ऐसी अवस्था में रही, वही जब एक बात न पूछे तो कहो रंज हो कि न हो ? और नहीं तो इस बात का खयाल ही करते कि इसी की बहिन या उनकी साली की बदौलत उनकी जान बची, नहीं तो दुनिया से उनका नाम-निशान भी उठ जाता।

लाड़िली--बहिन, ताज्जुब तो यह है कि इनकी खबर न ली तो न सही अपनी

च० स०-4-15

उस अनोखी मायारानी की सूरत तो आकर देख जाते जिसने उनके साथ

कामिनी—(जल्दी से)हाँ, और क्या ? उसे भी देखने न.आए ! उन्हें तो चाहिए था कि रोहतासगढ़ पहुँचकर उसकी बोटी-बोटी अलग कर देते!

इस तरह से ये सब बड़ी देर तक आपस में बातें करती रहीं। लक्ष्मीदेवी की अवस्था पर सभी को रंज, अफसोस और ताज्जुब था। जब रात ज्यादा बीत गई तो सभी ने चारपाई की शरण ली। दूसरे दिन उन्हें कृष्ण जिन्न के आने की खबर मिली।