चंद्रकांता संतति भाग 4
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १५६ से – १५९ तक

 

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शेरअलीखां बड़ी इज्जत और आबरू के साथ घर भेजे गये, उनके सेनापति महबूबखाँ को भी छुट्टी मिली, भैरोंसिंह मनोरमा की फिक्र में गये, तारासिंह नानक के घर चले और कुछ फौजी सिपाहियों के साथ नकली बलभद्रसिंह लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को लिए हए इन्द्रदेव ने अपने गुप्त स्थान की तरफ प्रस्थान किया। भूतनाथ बातें करता हआ उन्हीं के साथ चल पड़ा और थोड़ी दूर जाने के बाद आज्ञा लेकर अपने अडडे की तरफ रवाना हुआ जो बराबर की पहाड़ी पर था. और देवीसिंह ने न मालूम किधर का रास्ता लिया। राजा वीरेन्द्रसिंह की सवारी भी उसी दिन चुनारगढ़ की तरफ चली और तेजसिंह राजा साहब के साथ गये।

हम सबसे पहले तारासिंह के साथ चलकर नानक के घर पहँचते हैं और उसकी जगतप्रिय स्त्री की अवस्था पर ध्यान देते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि लड़कपन में नानक उत्साही था और उसे नाम पैदा करने की बड़ी लालसा थी, परन्तु रामभोली के प्रेम ने उसका खयाल वदल दिया और उसमें खुदगर्जी का हिस्सा कुछ ज्यादा हो गया। आखीर में जब उसने श्यामा नामक एक स्त्री से शादी कर ली, जिसका जिक्र कई दफे लिखा जा चका है, तब से तो उसकी बुद्धि बिल्कुल ही भ्रष्ट हो गई। नानक की स्त्री श्यामा बड़ी चतुर, लालची और कुलटा थी, मगर नानक उसे पतिव्रता और साब्वी जानकर माता के समान उसकी इज्जत करता था। नानक के नातेदार और दोस्तों की आमद-रफ्त उसके घर में विशेष थी। श्यामा को रुपये-पैसे की कमी न थी और वह अपनी दौलत-जमीन के अन्दर गाड कर रखा करती थी, जिसका हाल सिवाय एक नौजवान खिदमतगार के, जिसका नाम हनुमान था और कोई भी नहीं जानता था। हनुमान यद्यपि नानक का नौकर था परन्तु इस सबब से उसकी माँ कुछ दिनों तक भूतनाथ की खिदमत में रह चुकी थी, वह अपने को नौकर नहीं समझता था, वल्कि घर का मालिक समझता था। नानक की स्त्री उसे बहत चाहती थी, यहाँ तक कि एक दिन उसने अपने मुंह से उसे अपना देवर सीकार किया था, इस सबब से वह और भी सिर चढ़ गया था। नानक के यहाँ एक मजदूरनी भी थी, वह नानक के काम की चाहे न हो, मगर उसकी स्त्री के लिए उपयोगी पात्र थी और उसके द्वारा नानक की स्त्री का बहुत काम निकलता था।

तारासिंह अपने दो चेलों को साथ लिए रोहतासगढ़ से रवाना होकर भेस बदले हए तीसरे ही दिन नानक के घर पहुंचा। ठीक दोपहर का समय था और नानक अपने किसी दोस्त के यहाँ गया था, मगर उसका प्यारा खिदमतगार हनुमान दरवाजे पर बैठा अपने पड़ौसी साईसों और कोचवानों के साथ गप्पें लड़ा रहा था। तारासिंह थोड़ी देर तक इधर-उधर टहलता और टोह लेता रहा। जब उसे मालूम हो गया कि हनुमान नानक का प्यारा नौकर है और उम्र में भी अपने से बड़ा नहीं है तो वहाँ से लौटा और कुछ दूर जाकर किसी सुनसान अँधेरी गली में मकान किराए पर लेने का बन्दोबस्त करने लगा। संध्या होने के पहले ही इस काम से भी निश्चिन्ती हो गई अर्थात् उसने एक बहुत बड़ा मकान किराये पर ले लिया, जो मुद्दत से खाली पड़ा हुआ था, क्योंकि लोग उसमें भूतप्रेतों का वास समझते थे और कोई उसमें रहना पसन्द नहीं करता था। उसमें जाने के लिए तीन रास्ते थे और उसके अन्दर कई कोठरियाँ ऐसी थीं कि यदि उसमें किसी को बन्द कर दिया जाये, तो हजार चिल्लाने और ऊधम मचाने पर भी किसी बाहर वाले को खबर न हो। तारासिंह ने उसी मकान में डेरा जमाया और बाजार जाकर दो ही घण्टे में वे सब चीजें खरीद लाया, जिनकी उसने जरूरत समझी और जो एक अमीराना ढंग से रहने वाले आदमी के लिए आवश्यक थीं। इस काम से भी छुट्टी पाकर उसने मोमबत्ती जलाई और आईना तथा ऐयारी का बटुआ सामने रखकर अपनी सूरत बदलने का उद्योग करने लगा। शीघ्र ही एक खूबसूरत नौजवान अमीर की सूरत बनाकर वह घर से बाहर निकला और मकान में एक चेले को छोड़ कर नानक के घर की तरफ रवाना हुआ। दूसरा चेला जो तारासिंह के साथ था उसे बहुत-सी बातें समझाकर दूसरे काम के लिए भेजा।

जब तारासिंह नानक के मकान पर पहुंचा, तो उसने हनुमान को दरवाजे पर बैठा पाया। इस समय हनुमान अकेला था और हुक्का पीने का बन्दोबस्त कर रहा था। उसके पास ही ताक (आला) पर एक चिराग जल रहा था जिसकी रोशनी चारों तरफ फैल रही थी। तारासिंह हनुमान के पास जाकर खड़ा हो गया। हनुमान ने बड़े गौर से उसकी सूरत देखी और रौब में आकर हुक्का छोड़ के खड़ा हो गया। उस समय चिराग की रोशनी में तारासिंह बड़े शान-शौकत का आदमी मालुम पड़ रहा था। खूबसूरती बनाने की तारासिंह को जरूरत न थी, क्योंकि वह स्वयं खबसरत और नौजवान आदमी था, परन्तु रूप बदलने की नीयत से उसने अपने चेहरे पर रोगन जरूर लगाया था, जिससे वह इस समय और भी खूबसूरत और शौकीन लग रहा था।

तारासिंह को देखते ही हनुमान उठ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला, 'हुक्म !'

तारासिंह--हमारे साथ एक नौकर था, वह राह भूल कर न मालूम कहाँ चला गया, उम्मीद थी कि वह हमको ढूंढ़ने के बाद सीधा घर पर चला जायेगा, मगर इस समय प्यास के मारे हमारा गला सूखा जा रहा है।

हनुमान--(एक छोटी चौकी की तरफ इशारा करके) सरकार इस चौकी पर वैठ जायें, मैं अभी पानी लाता हूँ।

इतना सुनकर तारासिंह चौकी पर बैठ गया और हनुमान पानी लाने के लिए अन्दर चला गया। थोड़ी देर में पानी का भरा हुआ एक लोटा और गिलास लिए हनुमान बाहर आया और तारासिंह को पीने के लिए गिलास में पानी ढाल कर दिया, उसी समय तारासिंह ने दरवाजे का पर्दा हिलते हुए देखा और यह भी मालूम किया कि कोई औरत भीतर से झांक रही है। पानी पीने के बाद तारासिंह ने पाँच रुपये हनुमान के हाथ में दिये और वहां से उठकर दूसरी तरफ का रास्ता लिया।

हनुमान केवल एक गिलास पानी पिलाने के बदले में पांच रुपये पाकर बड़ा ही प्रसन्न हुआ और दाता की अमीरी पर आश्चर्य करने लगा। उसे विश्वास हो गया कि यह कोई बड़ा भारी अमीर आदमी या कोई राजकुमार है और साथ ही इसके दिल का अमीर तथा जी खोल कर देने वाला भी है।

दूसरे दिन संध्या के पहले ही हनुमान ने तारासिंह को अपने दरवाजे के सामने से जाते देखा और उसके साथ एक नौकर को भी देखा जो बड़े शान के साथ कीमती कपड़े पहने और तलवार लगाए, तारासिंह के पीछे-पीछे जा रहा था। हनुमान ने उठकर तारासिंह को बड़े अदब के साथ सलाम किया। तारासिंह ने अपने नौकर को जो वास्तव में उसका चेला था, कुछ कहकर हनुमान के पास छोड़ा और आगे का रास्ता लिया।

तारासिंह के नौकर में और हनुमान में दो घण्टे तक खूब बातचीत हुई, जिसे हम यहाँ लिखना नापसन्द करते हैं, हाँ, इस बातचीत का जो कुछ नतीजा निकला वह अवश्य दिखाया जायेगा क्योंकि नानक के घर की जाँच करने ही के लिए तारासिंह का आना इस शहर में हुआ था।

बहुत देर तक बातचीत करने के बाद तारासिंह का नौकर उठ खड़ा हआ और हनुमान के हाथ में कुछ देकर घर का रास्ता लिया जहाँ तारासिंह उसके आने का इन्तजार कर रहा था। जब तारासिंह ने नौकर को आते देखा तो पूछा--

तारासिंह--कहो, क्या हुआ?

नौकर--सब ठीक है, वह तो आपको देख भी चुकी है।

तारासिंह--हाँ, रात को जब मैं वहां पानी पी रही था, टाट का पर्दा हिलते हुए देखा था, तो और भी कुछ हालचाल मालूम हुआ?

नौकर--जी हाँ, बड़ी-बड़ी बातें हुईं। वह तो पूरी खानगी है, कल दोपहर के पहले मैं आपको उन लोगों के नाम भी बताऊँगा, जिनसे उसका ताल्लुक है और उम्मीद है कि कल वह स्वयं बन-ठनकर आपके पास आवे।

तारासिंह--ठीक है, तो क्या तुम्हें उसका नाम भी मालूम हुआ?

नौकर--जी हाँ, उसका नाम श्यामा है और अपने पति अर्थात् नानक के लिए तो वह रूपविता नायिका है।

तारासिंह--बड़े अफसोस की बात है। निःसन्देह भूतनाथ के लिए यह एक कलंक है। ऐसी औरत का पति इस योग्य नहीं कि हम लोग उसे अपने पास बिठावें या उसका छआ पानी भी पीयें। खैर, अब तुम घर में बैठो, मैं गश्त लगाने के लिए जाता हूं।

दूसरे दिन दोपहर के समय तारासिंह का वही नौकर नानक के घर से निकला तथा इधर-उधर से घूमता-फिरता तारासिंह के पास आया और बोला, "आज प्रयासाने कई प्रेमियों के नाम मैं लिख लाया हूँ।"

तारासिंह--अच्छा बताओ तो सही, शायद उन लोगों में से किसी को मैं जानता हूँ या किसी का नाम भी सुना हो। नौकर--श्यामा के एक प्रेमी का नाम 'जलशायी बाबू' है।

तारासिंह---(गौर करके) जलशायी बाबू को तो मैं जानता हूँ, वे तो बड़े नेक और बुद्धिमान हैं।

नौकर--जी हाँ, वही लम्बे और गोरे से, वे तरह-तरह के कपड़े राजधानी से लाकर उसे दिया करते हैं, और दूसरे प्रेमी का नाम 'त्रिभुवन नायक' है और उन्हें महत्व की पदवी भी है, और तीसरे प्रेमी का नाम मायाप्रसाद है जो राजा साहब के कोषाध्यक्ष हैं, और चौथे प्रेमी का नाम आनन्दवन बिहारी है, और पाँचवें।

तारासिंह--बस-बस-बस, मैं विशेष नाम सुनना पसन्द नहीं करता।

नौकर--जो हुक्म, (एक कागज दिखाकर) मैं तो पचीसों नाम लिख लाया हूँ।

तारासिंह--ठीक है, तुम इस फेहरिस्त को अपने पास रखो, आवश्यकता पड़ने पर महाराज को दिखाई जायेगी, हमारा काम तो उसके आज यहाँ आ जाने से ही निकल जायेगा।

नौकर--जी हाँ, आज वह यहाँ जरूर आवेगी, हनुमान मेरे साथ आकर घर देख गया है।