चंद्रकांता संतति भाग 4
देवकीनन्दन खत्री

दिल्ली: भारती भाषा प्रकाशन, पृष्ठ १८ से – २२ तक

 

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भूतनाथ अब बिल्कुल आजाद हो गया। इस समय उसकी ताकत उतनी ही है जितनी आज के दस दिन पहले थी और जितने आज के दस दिन पहले उसके ताबेदार थे उतने ही आज भी हैं। पाठक जानते ही हैं कि भूतनाथ अकेला है बल्कि बहुत से आदमी उसके नौकर भी हैं जो इधर-उधर घूम-फिरकर उसका काम किया करते हैं। भूतनाथ ने जब से नकली बलभद्रसिंह से यह सुना कि 'उसकी बहुत ही प्यारी चीज मेरे कब्जे में है जिसे वह लामा घाटी में छोड़ आया था' तब से वह और भी परेशान हो गया था। वह बहुत प्यारी चीज क्या थी ? बस, वही उसकी स्त्री जिसके पेट से नानक पैदा हुआ था और जिसे उसने नागर की मेहरबानी से पुनः पा लिया था। वास्तव में भूतनाथ अपनी प्यारी स्त्री को लामाघाटी में ही छोड़ आया था।

भूतनाथ इस समय जमानिया जाने के बदले लामाघाटी ही की तरफ रवाना हुआ और तीसरे दिन संध्या के समय उस घाटी में जा पहुँचा जिसे वह अपना घर समझता था।

यहाँ पर हम पाठकों के दिल में लामाघाटी की तस्वीर खींचकर भूतनाथ की ताकत और उसके स्वभाव या खयाल का कुछ अन्दाज करा देना मुनासिब समझते हैं। लामाघाटी में किसी अनजान आदमी का जाना बहुत कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था। ध्यानशक्ति की सहायता से यदि आप वहाँ जायें तो सबके पहले एक छोटी-सी पहाड़ी मिलेगी जिस पर चढ़ने के एक बारीक पगडण्डी दिखाई देगी। जब उस पगडण्डी की राह से पहाड़ी के ऊपर चढ़ जायेंगे तो तीन तरफ मैदान और पश्चिम तरफ केवल आधा कोस की दूरी पर एक बहुत ऊँचा पहाड़ मिलेगा। उसके पास जाने पर मालूम होगा कि ऊपर चढ़ने के लिए कोई रास्ता या पगडण्डी नहीं है और न पहाड़ के दूसरी तरफ जाने का ही मौका है। परन्तु खोजने की कोई आवश्यकता नहीं, आप उस पहाड़ी के नीचे पहुंचकर दाहिनी तरफ घूम जाइये और जब तक एक छोटा-सा झरना आपको न मिले बराबर चले ही जाइये। वह दो-तीन हाथ चौड़ा झरना आपका रास्ता काट के बहता होगा, उसे लांघने की कोई आवश्यकता नहीं। आप बाईं तरफ आँख उठाकर देखेंगे तो बीस-पच्चीस हाथ की ऊंचाई पर एक छोटी-सी गुफा दिखाई देगी, आप बेधड़क उस गुफा में चले जाइये जिसके अन्दर बिल्कुल अँधेरा होगा और बनिस्बत बाहर के अन्दर गर्मी कुछ ज्यादा होगी। कोस भर तक बराबर उस गुफा के अन्दर-ही-अन्दर चलने के बाद जब आप बाहर निकलेंगे तो एक हरा-भरा छोटा-सा मैदान नजर आएगा। वह मैदान छोटे-छोटे जंगली फलों और लताओं से ऐसा भरा होगा कि दूर से देखने वालों को तो आनन्द मगर उसके अन्दर जाने वाले के लिए आफत समझिये। उसमें जाने वाला तीस-चालीस कदम मुश्किल से जाने के बाद इस तरह फंस जायगा कि निकलना कठिन होगा। उस मैदान के किनारे- किनारे दाहिनी तरफ और फिर बाईं तरफ घूम जाना होगा और जब आप बाहर पश्चिम


1. 'लामा घाटी' एक पहाड़ी स्थान का नाम है। और उत्तर के कोने में पहुँचेंगे तो एक गुफा मिलेगी। आप उस गुफा के अंदर चले जाइये। लगभग दो-सौ कदम जाने के बाद जब आप बाहर निकलेंगे तो अनपढ़ और मोटे-मोटे पत्थर के ढोकों से बनी हुई दीवारें मिलेंगी जिसके बीचोबीच में एक बहुत बड़ा लकड़ी का दरवाजा लगा है। यदि दरवाजा खुला है तो आप दीवार के उस पार चले जाइये और एक पुरानी मगर बहुत बड़ी इमारत पर नजर डालिए। यद्यपि यह मकान बहुत पुराना है और कई जगह से टूट भी गया है तथापि जो कुछ बचा है बहुत मजबूत और पचासों बरसात सहने योग्य है, जिसमें अब भी कई बड़े-बड़े दालान और कोठरियां मौजूद हैं और उसी मकान या स्थान का नाम 'लामाघाटी' है। भूतनाथ के आदमी या नौकर-चाकर इसी मकान में रहते हैं और अपनी स्त्री को भी वह इसी जगह छोड़ गया था। उसके सिपाही जो बड़े ही दिमागदार, बहुत कट्टर और साथ ही इसके ईमानदार भी थे, गिनती में पचास से कम न थे और भूतनाथ के खजाने को हिफाजत बड़ी मुस्तैदी और नेकनीयती के साथ करते थे तथा बड़े-बड़े कठिन कामों को पूरा करने के लिए भूतनाथ की आज्ञा पाते ही मुस्तैद हो जाते थे। उस मकान के चारों तरफ बहुत बड़ा मैदान छोटे-छोटे जंगली खूब- सूरत पौधों से हरा-भरा बहुत ही खूबसूरत मालूम पड़ता था और उसके बाद भी चारों तरफ की पहाड़ियों के ऊपर जहाँ तक निगाह काम कर सकती थी छोटे-छोटे खूबसूरत पेड़- पौधे दिखाई पड़ते थे।

भूतनाथ इसी लामाघाटी में पहुँचा। पहुँचने के साथ ही चारों तरफ से उसके आदमियों ने खुशी-खुशी उसे घेर लिया और कुशल-मंगल पूछने लगे। भूतनाथ सभी से हँसकर मिला और 'हाँ, सब ठीक है, मेरा आना जिस लिये हुआ उसका हाल जरा ठहरकर कहूँगा' इत्यादि कहता हुआ अपनी स्त्री के पास चला गया जो बहुत दिनों से उसे देखे बिना बेताव हो रही थी। हँसी-खुशी से मिलने के बाद दोनों में यों बातचीत होने लगी-

स्त्री--तुम बहुत दुबले और उदास मालूम पड़ते हो!

भूतनाथ--हाँ, इधर कई दिन मुसीबत ही में कटे हैं।

स्त्री--(चौंककर) सो क्यों, कुशल तो है?

भूतनाथ--कुशल क्या, जान बच गई यही गनीमत है।

स्त्री--सो क्यों ? तुम्हारा भेद खुल गया?

भूतनाथ--(ऊँची सांस लेकर) हां, कुछ खुल ही गया।

स्त्री--(हाथ मलकर) हाय-हाय, यह तो बड़ा ही गजब हुआ!

भूतनाथ--बेशक गजब हो गया।

स्त्री--फिर तुम बचकर कैसे निकल आये?

भूतनाथ--ईश्वर ने एक सहायक भेज दिया जिसने अपनी जमानत पर महीने भर के लिए मुझे छोड़ दिया।

स्त्री--तो क्या महीने भर के बाद तुम्हें फिर हाजिर होना पड़ेगा?

भूतनाथ--हाँ।

स्त्री--किसके आगे ?

भूतनाथ--राजा वीरेन्द्रसिंह के आगे। स्त्री--राजा वीरेन्द्रसिंह से क्या सरोकार ? तुमने उनका तो कभी कुछ बिगाड़ा नहीं था।

भूतनाथ--इतनी ही तो कुशल है कि वह दूसरी जगह जाने के बदले सीधा लक्ष्मीदेवी के पास चला गया।

स्त्री--(चौंककर) हैं, क्या लक्ष्मीदेवी जीती है?

भूतनाथ–-हाँ जीती है। मुझे इस बात की खबर कुछ भी न थी कि कमलिनी के साथ जो तारा रहती है, वह वास्तव में लक्ष्मीदेवी है और बालासिंह को यह बात मालूम हो गई थी, इसलिए वह सीधा लक्ष्मीदेवी के पास चला गया। यदि मुझे पहले लक्ष्मीदेवी की खबर लग गई होती तो आज मैं राजा वीरेन्द्रसिंह के आगे अपनी तारीफ सुनता होता।

स्त्री--तुम तो कहते थे कि बालासिंह मर गया।

भूतनाथ–-हाँ, मैं ऐसा जानता था।

स्त्री--उसी ने तुम्हारी सन्दूकड़ी चुराई थी?

भूतनाथ–-हाँ, जब सन्दूकड़ी उसने चुराई थी, तभी मैं अधमरा हो चुका था। मगर यह सुनकर कि वह मर गया मैं निश्चिन्त भी हो गया था, परन्तु जिस समय वह यकायक मेरे सामने आ खड़ा हुआ मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उसके हाथ में वह गठरी उसी कपड़े में बंधी उसी तरह लटक रही थी जैसी तुम्हारे सन्दुक से चोरी की गई थी और जिसे देखने के साथ ही मैं पहवान गया। ओफ, मैं नहीं कह सकता कि उस समय मेरी क्या हालत थी। मेरे होश-हवास दुरुस्त न थे और मैं अपने को जिन्दा नहीं समझता था। इस बात के दो-चार दिन पहले जब मैं राजा गोपालसिंह के साथ किशोरी और कामिनी को कमलिनी के मकान में पहुँचाने गया था तो उसी समय तारा पर मुझे शक हो गया मगर अपनी भलाई का कोई दूसरा ही रास्ता सोचकर मैं उस समय चुप रहा परन्तु जिस समय बालासिंह से यकायक मुलाकात हो गई और उसने उस गठरी की तरफ इशारा करके मुझसे कहा कि इसमें सुहागिन तारा की किस्मत बन्द है उसी समय मुझे विश्वास हो गया कि तारा वास्तय में लक्ष्मीदेवी है और वह कागज का मुट्ठा भी इसी ने चुरा लिया है जिसे मैंने बड़ी मेहनत से बटोरकर नकल करके रखा था। मैं उस समय बदहवास हो गया और अफसोस करने लगा कि जिन कागजों से मैं फायदा उठाने वाला था वही अब मुझे चौपट करेंगे क्योंकि वह उन्हीं कागजों से मुझी को दोषी ठहराने का उद्योग करेगा। यदि वह सन्दूकड़ी उसके पास न होती तो मैं हताश न होकर और कोई बन्दोबस्त करता परन्तु उस सन्दूकड़ी के खयाल ही से मैं पागल हो गया और उस समय तो मैं बिलकुल ही मुर्दा हो गया जब उसकी बेगम पर मेरी निगाह पड़ी।

स्त्री--(चौंककर) क्या बेगम भी जीती है?

भूतनाथ--हां, उस समय वह उसके साथथी और थोड़ी ही दूर पर एक झाड़ी के अन्दर छिपी हुई थी।

स्त्री--यह बड़ा ही अंधेर हुआ, अगर तुम्हें मालूम होता कि वह जीती है तो तुम अपना नाम भूतनाथ काहे को रखते ! भूतनाथ--नहीं, अगर मुझे उसके मरने में कुछ भी शक होता तो मैं अपना नाम भूतनाथ न रखता। केवल इतना ही नहीं, उसने तो मुझे उस समय एक ऐसी बात कही जिससे मेरी बची-बचाई जान भी निकल गई और मैं ऐसा कमजोर हो गया कि उसके साथ लड़ने योग्य भी न रहा।

स्त्री--सो क्या?

भूतनाथ--उसने तुम्हारी तरफ इशारा करके मुझसे कहा कि 'तुम्हारी बहुत ही प्यारी चीज मेरे कब्जे में है जो तुम्हारे बाद बड़ी तकलीफ में पड़ जायेगी और जिसे तुम लामाघाटी में छोड़ आये हो' और यही सबब है कि छूटने के साथ ही सबसे पहले मैं इस तरफ आया, मगर ईश्वर को धन्यवाद है कि तुम उस शैतान के हाथ से बची रहीं और तुम्हें मैं इस समय राजी-खुशी देख रहा हूँ।

स्त्री--उसकी क्या मजाल कि यहाँ आ सके, उसे स्वप्न में भी यहाँ का रास्ता मालूम नहीं हो सकता।

भूतनाथ--सो तो मैं समझता हूँ। परन्तु 'लामाघाटी' का नाम लेने से मुझे उसकी बात पर विश्वास हो गया, मैंने सोचा, यदि वह लामाघाटी तक न गया होता तो लामा- घाटी का नाम भी उसे मालूम न होता और..

स्त्री--नहीं-नहीं, लामाघाटी का नाम किसी दूसरे सबब से उसे मालूम हुआ होगा।

भूतनाथ-–बेशक ऐसा ही है, खैर तुम्हारी तरफ से तो मैं निश्चित हो गया मगर अब अपनी जान बचाने के लिए मुझे असली बलभद्रसिंह का पता लगाना चाहिए।

स्त्री--अब तुम अपना खुलासा हाल उस दिन से कह जाओ जिस दिन से तुम मुझसे जुदा हुए हो।

भूतनाथ ने अपना कुल हाल अपनी स्त्री को कह सुनाया और इसके बाद थोड़ी देर तक बातचीत करके बाहर निकल आया। एक दालान में जिसमें सुन्दर बिछावन बिछा हुआ था और रोशनी बखूबी हो रही थी उसके सब संगी-साथी या सिपाही बैठे उसके आने की राह देख रहे थे। भूतनाथ के आते ही वे सब अदब के तौर पर उठ खड़े हुए तथा वैठने के बाद उसकी आज्ञा पाकर बैठ गये और बातचीत होने लगी।

भूतनाथ--कहो, तुम लोग अच्छे तो हो?

सब--जी,आपके अनुग्रह से हम लोग अच्छे हैं।

भूतनाथ--ऐसा ही चाहिए।

एक--आप इतने दुबले और उदास क्यों हो रहे हैं?

भूतनाथ--मैं एक भारी आफत में फंस गया था बल्कि अभी भी उसमें फंसा ही हुआ हूँ।

सब--सो क्या, सो क्या?

भूतनाथ--मैं तुमसे सब-कुछ कहता हूँ क्योंकि तुम लोग मेरे खैरख्वाह हो और मुझे तुम लोगों का बहुत सहारा रहता है

सब--हम लोग आपके ताबेदार हैं और एक अपने इशारे पर जान देने के लिए तैयार हैं, औरों की बात दूर, खास राजा वीरेन्द्रसिंह से भिड़ जाने की हिम्मत रखते हैं।

भूतनाथ--बेशक ऐसा ही है और इसीलिए मैं कोई बात तुम लोगों से नहीं छिपाता।

इतना कह कर भूतनाथ ने अपना हाल कहना आरम्भ किया। जो कुछ अपनी स्त्री से कह चुका था वह तथा और भी बहुत-सी बातें उसने उन लोगों से कहीं और इसके बाद कई बहादुरों को कई तरह के काम करने की आज्ञा दे फिर अपनी स्त्री के पास चला गया।

दूसरे दिन सवेरे जब भूतनाथ बाहर आया तब मालूम हुआ कि उसके बहादुर सिपाहियों में से चालीस आदमी उसकी आज्ञानुसार 'लामाघाटी' के बाहर जा चुके हैं।

भूतनाथ भी वहाँ से रवाना होने के लिए तैयार ही था और अपनी स्त्री से बिदा होकर बाहर निकला था, अस्तु वह भी एक आदमी को लेकर चल पड़ा और दो ही घण्टे बाद 'लामाघाटी' के बाहर मैदान में जमानिया की तरफ जाता हुआ दिखलाई देने लगा।