चन्द्रकांता सन्तति 3/10.5
अब हम अपने पाठकों को उस तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलते हैं जो कमलिनी के अधिकार में है अर्थात् वह तालाब के बीचोंबीच वाला मकान जिसमें कुछ दिन तक कुँअर इन्द्रजीतसिंह को कमलिनी के बस में रहना पड़ा था।
आजकल इस मकान में कमलिनी की प्यारी सखी तारा रहती है। नौकर, मजदर प्यादे, सिपाही सब उसी के अधीन हैं क्योंकि वे लोग इस बात को बखूबी जानते हैं कि कमलिनी तारा को अपनी सगी बहिन से बढ़ कर मानती है और तारा के कहे को टालना कदापि पसन्द नहीं करती। कमलिनी के कहे अनुसार तारा कुछ दिनों तक कमलिनी ही की सुरत बनाकर उस मकान में रही और इस बीच में वहाँ के नौकर-चाकरों को इसका गुमान भी न हुआ कि कमलिनी कहीं बाहर गई और यह तारा है, बल्कि उन लोगों को यही विश्वास था कि तारा को कमलिनी ने किसी काम के लिए भेजा है, मगर उस दिन से जब से कमलिनी ने मनोरमा को गिरफ्तार किया था और अपने तिलिस्मी मकान में भिजवा दिया था, तारा अपनी असली सूरत में ही रहती है और समय-समय पर कमलिनी के हाल-चाल की खबर भी उसे मिला करती है।
देवीसिंह और भूतनाथ को साथ लिए हुए राजा गोपालसिंह ने जब किशोरी और कामिनी को कैद से छुड़ाया था तो उन दोनों को भी कमलिनी की इच्छानुसार इसी तिलिस्मी मकान में पहुँचा दिया था। पहुँचाते समय देवीसिंह और भूतनाथ को साथ लिए हुए स्वयं राजा गोपालसिंह किशोरी तथा कामिनी के संग आये थे। उस समय का थोड़ा-सा हाल यहाँ लिखना उचित जान पड़ता है।
किशोरी और कामिनी को लिए हुए जब राजा गोपालसिंह उस मकान के पास पहुँचे तो खबर करने के लिए भूतनाथ को तारा के पास भेजा। उस समय तारा किसी काम के लिए तालाब के बाहर आई हुई थी जब उसकी भूतनाथ से मुलाकात हुई। भूतनाथ को देखकर तारा खुश हुई और उससे कमलिनी का समाचार पूछा जिसके जवाब में भूतनाथ ने उस दिन से जिस दिन कमलिनी तारा से आखिरी मर्तबे जुदा हुई थी आज तक का हाल कह सुनाया जिसमें राजा गोपालसिंह का भी हाल था और अन्त में यह भी कहा कि "किशोरी और कामिनी को कैद से छुड़ा कर कमलिनी की इच्छानुसार उन दोनों को यहाँ पहुँचा देने के लिए स्वयं राजा गोपालसिंह आये हैं, थोड़ी ही दूर पर हैं और तुमसे मिलना चाहते हैं।"
तारा को इसका गुमान भी न था कि राजा गोपालसिंह अभी तक जीते हैं या मायारानी के कैदखाने में हैं। आज भूतनाथ की जुबानी यह हाल सुनकर खुशी के मारे तारा की अजब हालत हो गई। भूतनाथ ने उसके चेहरे की तरफ देखकर गौर किया तो मालूम हुआ कि राजा गोपालसिंह के छूटने की खुशी बनिस्बत कमलिनी के तारा को बहुत ज्यादा हुई, बल्कि वह सोचने लगा कि ताज्जुब नहीं कि खुशी के मारे तारा की जान निकल जाय, और वास्तव में यही बात थी भी। तारा के खूबसूरत भोले चेहरे पर हँसी तो साफ दिखाई दे रही थी, मगर साथ ही हँसी के गला फँस जाने के कारण उसकी आवाज रुक-सी गई थी, वह भूतनाथ से कुछ कहना चाहती थी, मगर कह नहीं सकती थी। आँखों से आँसुओं की बूंदें गिर रही थीं और बदन में पल-पल भर में हलकी कॅंप कंपी हो रही थी।
जब भूतनाथ ने तारा की यह हालत देखी तो उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ, मगर यह सोचकर उसने अपने ताज्जुब को दूर किया कि अक्सर ऐसा भी हुआ करता है कि अगर घर के स्वामी पर आई हुई कोई बला टल जाती है तो बनिस्बत सगे रिश्तेदारों के ताबेदारों को विशेष खुशी होती है। मगर इतना सोचने पर भी भूतनाथ की यह इच्छा हुई कि तारा की इस बढ़ी हुई खुशी को किसी तरह कम कर देना चाहिए, नहीं तो ताज्जुब नहीं कि इसे किसी तरह का शारीरिक कष्ट उठाना पड़े। इसी विचार से भतनाथ ने तारा की तरफ देख के कहा "भूतनाथ–राजा गोपालसिंह छूट गये सही, मगर अभी उनकी जिन्दगी का भरोसा न करना चाहिए।
तारा-(चौंककर) सो क्यों? सो क्यों?
भूतनाथ - यह बात मैं इस विचार से कहता हूँ कि मायारानी कुछ न कुछ बखेड़ा जरूर मचावेगी और इसके अतिरिक्त तमाम रिआया को राजा गोपालसिंह के मरने का विश्वास हो चुका है, जिसे कई वर्ष बीत चुके हैं, अब देखना चाहिए उन लोगों के दिल में क्या बात पैदा होती है। खैर, जो होगा देखा जाएगा, अव तुम विलम्ब न करो, वे राह देख रहे होंगे।
भूतनाथ की बातों का जवाब देने का तारा को मौका न मिला और वह बिना कुछ कहे भूतनाथ के साथ रवाना हुई। राजा गोपालसिंह बहुत दूर न थे। इसलिए आधी घड़ी से कम ही देर में तारा वहाँ पहुँच गई और उसने अपनी आँखों से गोपालसिंह, किशोरी, कामिनी और देवीसिंह को देखा। तारा के दिल में खुशी का दरिया जोश के साथ लहरें ले रहा था। निःसन्देह उसके दिल में इतनी ज्यादा खुशी थी कि उसके समाने की जगह अन्दर न थी और बहुतायत के कारण रोमांच द्वारा तारा के एक-एक रोंगटे से खुशी बाहर हो रही थी। तारा के दिल में तरह-तरह के खयाल पैदा हो रहे थे और वह अपने को बहुत सम्हाल रही थी। तिस पर भी राजा गोपालसिंह के पास पहुँचते ही वह उनके कदमों पर गिर पड़ी।
गोपालसिंह-(तारा को जल्दी से उठाकर) तारा, मैं जानता हूँ, तुम्हें मेरे छूटने की हद से ज्यादा खुशी हुई है, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ खासकर इस सबब से कि तुमने कमलिनी का साथ बड़ी नेकनीयती और मुहब्बत के साथ दिया और कमलिनी के ही सबब से मेरी जान बची, नहीं तो मैं मर ही चुका था, बल्कि यों कहना चाहिए कि मुझे मरे हुए पांच वर्ष बीत चुके थे। (लम्बी सांस लेकर) ईश्वर की भी विचित्र माया है। अच्छा, अब जो मैं कहता हूँ, उसे सुनो। क्योंकि मैं यहाँ ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकता।
तारा-(ताज्जुब के साथ) तो क्या आप अभी यहाँ से चले जायेंगे? मकान में न चलेंगे?
गोपालसिंह-नहीं, मुझे इतना समय नहीं। मैं बहुत जल्द कुँवर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और कमलिनी के पास पहुँचना चाहता है।
तारासिंह-क्या वे लोग अभी निश्चिन्त नहीं हुए?
गोपालसिंह-हुए, मगर वैसे नहीं, जैसे होने चाहिए।
गोपालसिंह की बात सुनकर तारा गौर में पड़ गई और देर तक कुछ सोचती रही। इसके बाद उसने सिर उठाया और कहा, "अच्छा कहिये, क्या आज्ञा होती है? (किशोरी और कामिनी की तरफ इशारा करके) इनके छूटने की मुझे बहुत खुशी हुई, इनके लिए मुद्दत तक मुझे रोहतासगढ़ में छिपकर रहना पड़ा था, अब तो कुछ दिन तक यहाँ रहेंगी न?”
गोपालसिंह-हाँ, बेशक रहेंगी। इन्हीं दोनों को पहुँचाने के लिए मैं आया हूँ। इन दोनों को मैं तुम्हारे हवाले करता हूँ और ताकीद के साथ कहता हूँ कि कमलिनी के लौट आने तक इन्हें बड़ी खातिर के साथ रखना, देखो, किसी तरह की तकलीफ न होने पावे। आशा है कि कुँवर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और कमलिनी को साथ लिए हुए मैं बहुत जल्द यहाँ आऊँगा।
तारा-मैं इन दोनों को अपनी जान से ज्यादा मानूँगी। क्या मजाल कि मेरी जान रहते इन्हें किसी तरह की तकलीफ हो। गोपालसिंह-बस यही चाहिए। हाँ, एक बात और भी कहनी है! तारा-वह क्या?
गोपालसिंह-मेरा हाल अभी तुम किसी से न कहना, क्योंकि अभी मैं गुप्त रह कर कई काम करना चाहता हूँ, इसी सबब से मैं तुम्हारे मकान में न आया, तुम्हें यहाँ बुलाकर जो कुछ कहना था कहा।
ताला-बहुत अच्छा, जैसा आपने कहा है वैसा ही होगा।
गोपालसिंह-अच्छा तो अब हम लोग जाते हैं।
किशोरी और कामिनी को तारा उस तिलिस्मी मकान में लिवा लाई। भूतनाथ और देवीसिंह पहुँचाने के लिए साथ आये और फिर चले गये।
तारा ने किशोरी और कामिनी को बड़ी इज्जत और खातिरदारी के साथ रखा। इन बेचारियों को अपनी जिन्दगी में तरह-तरह की तकलीफें उठानी पड़ी, इसलिए बहुत दुबली, दुःखी और कमजोर हो रही थीं। तरह-तरह की चिन्ताओं ने उन्हें अधमरा कर डाला था। अब मुद्दत के बाद यह दिन नसीब हुआ कि वे दोनों बेफिक्री के साथ अपनी हालत पर गौर करें और तारा को उसके मोहब्बताने बर्ताव पर धन्यवाद दें।
किशोरी पर कामिनी का और कामिनी पर किशोरी का बड़ा ही स्नेह था, इस समय दोनों एक साथ हैं और यह भी सुन चकी हैं कि कुँवर इन्द्रजीतसिंह और आनंदसिंह मायारानी की कैद से छूट गये और अब कुशलपूर्वक हैं, इसलिए एक प्रकार की प्रसन्नता ने उनकी जिन्दगी की मुझई हुई लता पर आशा रूपी पानी के दो-चार छींटे डाल दिये थे और अब उन्हें ईश्वर की कृपा पर बहत-कुछ भरोसा हो चला था, परन्तु यह जानने के लिए दोनों ही का जी बेचैन हो रहा था कि मायारानी को हम लोगों से इतनी दुश्मनी क्यों है और वह स्वयं कौन है, क्योंकि कैद के बाद देवीसिंह से यह बात न पूछ सकी थी, और न इसका मौका ही मिला था।
उस तिलिस्मी मकान में दो दिन और रात आराम से रहने के बाद तीसरे दिन संध्या के समय जब किशोरी और कामिनी को मकान की छत पर ले जाकर तारा दिलासा और तसल्ली देने के साथ ही साथ चारों तरफ की छटा दिखा रही थी, किशोरी को मायारानी का हाल पूछने का मौका मिला और इस बात की भी उम्मीद हुई कि तारा सब बात अवश्य सच-सच कह देगी। अस्तु किशोरी ने तारा की तरफ देखा और कहा
किशोरी–बहिन तारा, निःसन्देह तुमने हमारी बड़ी खातिर और इज्जत की, तुम्हारी बदौलत हम लोग यहाँ बड़े चैन और आराम से हैं जिसकी अपनी भौंडी किस्मत से कदापि आशा न थी। और ईश्वर की कृपा से कुछ-कुछ यह भी आशा हो गई है कि हम लोगों के दिन अब शीघ्र ही फिरेंगे। इस समय मेरे दिल में बहुत-सी बातें ऐसी हैं, जिनका असल भेद मालूम न होने के कारण जी बेचैन हो रहा है, अगर तुम कुछ बताओ तो..
तारा-वे कौन-सी बातें हैं, कहिये, जो कुछ मैं जानती हूँ अवश्य बताऊँगी।
च० स०-3-6
तारा- मायारानी जमानिया की रानी है, जमानिया में एक भारी तिलिस्म है। जिसके विषय में जाना गया है कि वह कुँवर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के हाथों से टूटेगा; मगर मायारानी चाहती है कि वह तिलिस्म न टूटने पावे, इसी सबब से वह इतना बखेड़ा मचा रही है।
किशोरी- और कमलिनी कौन हैं? मैं उनका नाम कई दफे सुन चुकी हूँ और यह भी मानती हूँ कि वह हम लोगों की मदद कर रही हैं।
तारा-मायारानी की दो बहिनें और हैं! (ऊंची साँस लेकर) एक तो ये कमलिनी हैं, जिनके मकान में आप इस समय बैठी हैं, अब मायारानी की चाल-चलन से रंज होकर उससे अलग हो गयीं और दोनों कुमारों की मदद कर रही हैं। और दूसरी सबसे छोटी बहन लाड़िली है जो मायारानी के साथ रहती है। मगर अब सुनने में आया है कि वह भी मायारानी से अलग होकर कमलिनी का साथ दे रही है।
किशोरी-और ये राजा गोपालसिंह और भूतनाथ कौन हैं?
तारा-भूतनाथ कमलिनी का ऐयार है और राजा गोपालसिंह जमानिया के राजा हैं, मायारानी इन्हीं की स्त्री है। पाँच वर्ष हुए जब यह बात मशहूर हुई थी कि राजा गोपालसिंह का देहान्त हो गया, यहाँ तक कि कमलिनी को भी इस बात में शक न रहा, क्योंकि उनके देखते राजा गोपालसिंह की दाह-क्रिया की गई थी। हां लोगों को अगर किसी तरह का कुछ शक था तो केवल इतना कि राजा गोपालसिंह को मायारानी ने जहर दे दिया। खैर, जमाने से राजा गोपालसिंह की जगह मायारानी जमानिया का राज्य कर रही है। इधर जब मायारानी ने दोनों कुमारों को कैद कर लिया तो कमलिनी उन्हें छुड़ाने के लिए जमानिया गई। उस समय कमलिनी को किसी तरह मालूम हआ कि राजा गोपालसिंह के विषय में मायारानी ने धोखा दिया था और वे मरे नहीं, बल्कि मायारानी ने उन्हें कैद कर रखा है। तब कमलिनी ने बड़े उद्योग से गोपालसिंह जी को कैद से छुड़ाया, मगर राजा साहब की यह राय हुई कि हमारे छूटने का हाल अभी किसी को मालूम न होना चाहिए, किसी मौके पर हम अपने को जाहिर करेंगे। मैंने यह जो कुछ आपसे कहा, बहुत ही मुख्तसिर में कहा है नहीं तो इस बीच में ऐसे-ऐसे काम हए हैं कि सुनने रो आश्चर्य होता है। मैंने जब भूतनाथ की जुबानी सब हाल सुना तो आश्चर्य और हँसी से मेरी अजब हालत थी।
किशोरी-तो तुम खुलासा क्यों नहीं कहतीं? क्या कहीं जाना है या कोई जरूरी काम है?
तारा-(हँसकर) जाना कहाँ है और काम ही क्या है? अच्छा, मैं कहती हूँ सुनिये।
तारा ने भूतनाथ का खुलासा हाल कह सुनाया। वह जिस तरह नागर और मायारानी को धोखा देकर उनसे मिल गया और जिस खूबसुरती से किशोरी और कामिनी को नागर की कैद से छुड़ा लाया, उसके कहने के बाद यह भी कहा कि भूतनाथ मायारानी को और भी धोखा देगा। वह मायारानी से वादा कर आया है कि राजा गोपालसिंह को जो तुम्हारी कैद से छूट गये हैं बहुत जल्द गिरफ्तार करके तुम्हारे पास ले आऊँगा तुम उन्हें अपने हाथ से मार कर निश्चिन्त हो जाना। निःसन्देह बड़ी ही दिल्लगी होगी जब मायारानी को विश्वास हो जायगा कि कैद से छूट जाने पर भी राजा गोपालसिंह जीते न बचे।
तारा की जुबानी भूतनाथ का हाल सुनकर किशोरी और कामिनी को बड़ा ताज्जुब हुआ और उसके विषय में देर तक तीनों में बातचीत होती रही। अन्त में किशोरी ने तारा से पूछा, "जब तुम राजा गोपालसिंह के पास गई थीं और उन्होंने मुझे तुम्हारे सुपुर्द किया था उस समय तुमने मेरी तरफ देखकर यह कहा था कि 'इनके लिए मुझे मुद्दत तक छिपकर रोहतासगढ़ के किले में रहना पड़ा था' तो क्या वास्तव में तुम रोहतासगढ़ के किले में उस समय थों जब मैं वहाँ बदकिस्मती के दिन काट रही थी? अगर तुम वहां थीं तो लाली और कुन्दन का हाल भी तुम्हें जरूर मालूम होगा।"
किशोरी की बातों का तारा कुछ जवाब देना ही चाहती थी कि एक प्रकार की आवाज सुनकर चौंक पड़ी और घबरा कर उस पुतली की तरफ देखने लगी जो वहाँ छत पर एक छोटे से चबूतरे के ऊपर सिर नीचे और पैर ऊपर किये खड़ी थी।
पाठक इस मकान की अवस्था को भूल न गये होंगे, क्योंकि इस मकान और पुतलियों का हाल हम सन्तति के तीसरे भाग में लिख चुके हैं। इस समय जब तारा ने इस पुतली को तेजी के साथ नाचते हुए पाया तो घबरा गई, बदहवास होकर उठ खड़ी हुई और कहने लगी-"हाय बड़ा अनर्थ हुआ, अब हम लोगों की जान बचती नजर नहीं आती! हाय-हाय, बहिन कमलिनी, न जाने इस समय तू कहाँ है। हाय, अब मैं क्या करूँ!"